सैलरी के बाद भी महाधिवक्ता ने लिए सरकार से करोड़ों रुपए, कई आरोपों के साथ दायर हुई याचिका

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में महाधिवक्ता प्रशांत सिंह के खिलाफ को वारंटो याचिका दायर की गई है। उन पर पद का दुरुपयोग कर करोड़ों रुपए लेने और कई अनियमितताओं के आरोप हैं। याचिका की पहली सुनवाई अप्रैल के पहले सप्ताह में होगी।

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Neel Tiwari
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एमपी के महाधिवक्ता प्रशांत सिंह Photograph: (the sootr)

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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में महाधिवक्ता प्रशांत सिंह के खिलाफ को वारंटो (Quo Warranto) याचिका दायर की गई है। इस याचिका को ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन ने दायर किया है, जिसमें महाधिवक्ता पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। उनके संवैधानिक पद पर बने रहने पर प्रश्नचिह्न लगाया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि महाधिवक्ता ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए कई अनियमितताएं की हैं। इससे समाज के एक बड़े वर्ग को नुकसान पहुंचा है। याचिका में विभिन्न तथ्यों और कानूनी पहलुओं का उल्लेख करते हुए अदालत से न्याय की मांग की गई है। इस मामले की पहली सुनवाई अप्रैल के पहले सप्ताह में होने वाली है, जो कानूनी और राजनीतिक हलकों में विशेष चर्चा का विषय बन सकती है।

याचिका में लगाए गए आरोप

ओबीसी आरक्षण विरोधी रुख: याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि प्रशांत सिंह ने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित किए गए अंतरिम आदेशों की गलत व्याख्या की। इस कथित गलत व्याख्या के कारण ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित नौकरियों और शैक्षणिक अवसरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। याचिका में कहा गया है कि इस प्रकार की कानूनी राय देने से प्रदेश के लाखों ओबीसी युवाओं के अधिकार प्रभावित हुए हैं, जिससे वे रोजगार के अवसरों से वंचित हो गए। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि यदि महाधिवक्ता ने सही ढंग से इन आदेशों को प्रस्तुत किया होता, तो ओबीसी समुदाय को अधिक न्याय मिल सकता था। इस आरोप को गंभीरता से लेते हुए अदालत से मांग की गई है कि वह महाधिवक्ता की भूमिका की जांच करे और उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए।

वित्तीय अनियमितता एवं भ्रष्टाचार: महाधिवक्ता के खिलाफ वित्तीय भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए गए हैं। याचिका में कहा गया है कि महाधिवक्ता को राज्य निधि से उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर वेतन दिया जाता है, जो सरकार द्वारा निर्धारित है। इसके बावजूद, उन्होंने और उनके सहयोगी शासकीय अधिवक्ताओं ने विभिन्न सरकारी विभागों से कानूनी पैरवी के नाम पर अलग से बड़ी धनराशि वसूली। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि महाधिवक्ता ने अकेले नर्सिंग काउंसिल और मेडिकल यूनिवर्सिटी से करोड़ों रुपये से अधिक की राशि वसूल की। इसके अलावा, उन्होंने विधिक अभिमत देने के नाम पर भी करोड़ों रुपये प्राप्त किए। यह आरोप लगाया गया है कि सरकार के स्पष्ट निर्देश होने के बावजूद कि सरकारी विधि अधिकारियों को वेतन के अतिरिक्त अलग से भुगतान नहीं किया जाएगा, महाधिवक्ता ने इन नियमों का उल्लंघन किया। याचिका में मांग की गई है कि इस वित्तीय अनियमितता की गहन जांच कराई जाए और दोष सिद्ध होने पर महाधिवक्ता के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए।

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संवैधानिक कर्तव्यों की अवहेलना: महाधिवक्ता पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अपने संवैधानिक दायित्वों का सही तरीके से पालन नहीं किया और अपने पद का दुरुपयोग किया। याचिका में कहा गया है कि महाधिवक्ता ने समुदाय विशेष के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर कार्य किए, जिससे संविधान में निहित समानता और निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि महाधिवक्ता का यह रवैया न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है और इससे समाज में असमानता बढ़ी है। इस आरोप को बेहद गंभीर मानते हुए अदालत से अपील की गई है कि वह महाधिवक्ता के कार्यकाल की जांच करे और उनके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करे।

विधि अधिकारी नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद: महाधिवक्ता कार्यालय में विधि अधिकारियों की नियुक्तियों को लेकर भी गंभीर आरोप लगाए गए हैं। याचिका में कहा गया है कि इन नियुक्तियों में किसी भी वैधानिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और चयन प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी। महाधिवक्ता पर यह आरोप है कि उन्होंने अपने करीबी और चहेते व्यक्तियों को बिना किसी योग्यता जांच के पद प्रदान किए, जिससे योग्य उम्मीदवारों को मौका नहीं मिला। इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि महाधिवक्ता कार्यालय में ओबीसी, एससी, एसटी और महिलाओं को समुचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया, जिससे यह साबित होता है कि नियुक्तियों में पक्षपात हुआ है। याचिका में अदालत से मांग की गई है कि इन नियुक्तियों की स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जाए और दोषी पाए जाने पर महाधिवक्ता के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

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महाधिवक्ता के खिलाफ जांच की मांग

याचिकाकर्ताओं, अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह और उदय कुमार, ने हाईकोर्ट से क्योवरंटो रिट जारी करने की मांग की है, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि क्या महाधिवक्ता प्रशांत सिंह संवैधानिक रूप से अपने पद पर बने रहने के योग्य हैं या नहीं। इसके अलावा, याचिका में आरक्षण अधिनियम की धारा छह के तहत प्रशांत सिंह के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की भी मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं ने यह भी अनुरोध किया है कि एक हाई पावर कमेटी गठित कर महाधिवक्ता के पूरे कार्यकाल की बारीकी से जांच की जाए और यदि उन पर लगे आरोप सिद्ध होते हैं, तो उन्हें पद से हटाया जाए। इसके अतिरिक्त, ओबीसी वर्ग की बड़ी आबादी को ध्यान में रखते हुए, याचिका में मांग की गई है कि अगला महाधिवक्ता इस वर्ग से नियुक्त किया जाए, ताकि सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो सके।

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अप्रैल माह में हो सकती है हाईकोर्ट में सुनवाई

मध्य प्रदेश हाइकोर्ट इस याचिका पर अप्रैल के पहले सप्ताह में सुनवाई करेगा। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, यह याचिका प्रदेश की राजनीति और कानूनी जगत में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन सकती है। ओबीसी वर्ग  सहित बड़ी आबादी को प्रभावित करने वाले इस मामले में अदालत का फैसला दूरगामी प्रभाव डाल सकता है। कानूनी विशेषज्ञों और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस मामले में न्यायालय द्वारा उठाए गए कदम आने वाले दिनों में प्रदेश की कानूनी और सामाजिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं। याचिकाकर्ताओं को उम्मीद है कि न्यायालय इस याचिका पर गहन विचार करेगा और एक निष्पक्ष निर्णय लेकर न्याय को सुनिश्चित करेगा।

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