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BHIND. भिंड के 29 वर्षीय जैनेंद्र निगम आज डीएसपी बन गए हैं। पुलिस की वर्दी तक पहुंचने का रास्ता कांटों से भरा था। घर जला। पिता पर NSA लगा। परिवार सड़क हादसे में टूट गया। खुद महीनों जेल में रहा। बीमारी और गरीबी दोनों से जूझता रहा। फिर भी उसने हिम्मत नहीं छोड़ी।
जैनेंद्र कभी बदले के लिए नहीं लड़े। सिर्फ एक सपना उसके मन में था कि पिता को गर्व महसूस कराना है। आज वह सपना सच हो गया है। MPPSC परीक्षा में 12वीं रैंक पाकर जैनेंद्र अब DSP बन गए हैं।
यह कहानी केवल सफलता की नहीं है। यह उस संघर्ष की कहानी है, जो एक युवक को राख से उठाकर आसमान तक ले गया।
झूठे आरोप ने सबकुछ तबाह किया
भिंड में हुए एक हमले के बाद जैनेंद्र की जिंदगी उलट गई। घर को लूट लिया गया। आग लगा दी गई। पिता, भाई और उनके खिलाफ पुलिस में मुकदमा दर्ज किया गया। नतीजा यह हुआ कि सबको जेल हो गई।
जैनेंद्र बताते हैं, यह सब बदले की भावना से हुआ। गांव के कुछ लोग उनकी जमीन पर कब्जा करना चाहते थे। इनकार करने पर उन्होंने चालें चलीं और कई गलत आरोप लगाए। जनवरी 2021 में जब उन्हें जमानत मिली, तब वह पूरी तरह बिखर चुके थे। परिवार टूट गया था। हालात बेहद कठिन थे।
फिर इंदौर में नई शुरुआत
जमानत के बाद जैनेंद्र ने ठान लिया कि वे टूटेंगे नहीं। रिश्तेदारों से थोड़ा पैसा उधार लेकर वह इंदौर पहुंच गए। कमरा छोटा था। साधन सीमित थे, लेकिन उसका इरादा मजबूत था। वह सुबह से रात तक पढ़ाई करते।
तभी कोविड लॉकडाउन शुरू हो गया। सब कुछ बंद। ऊपर से एक भयानक हादसा हुआ। इसमें उनकी मां और भाई गंभीर रूप से घायल हो गए। हालात और बिगड़ गए, लेकिन वह डिगे नहीं।
डीएसपी जैनेंद्र निगम का सफर...
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परीक्षा और मलेरिया-टाइफाइड का दर्द
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मेन्स परीक्षा का वक्त आया तो जैनेंद्र की किस्मत ने एक और परीक्षा ले ली। उन्हें मलेरिया और टाइफाइड ने जकड़ लिया। तेज बुखार, कंपकंपी और कमजोरी हो गई। डॉक्टर ने आराम करने को कहा, लेकिन वह पीछे नहीं हटे। जैनेंद्र कहते हैं, मेरे पास रुकने का विकल्प नहीं था। यह मेरे जीवन की लड़ाई थी।
अगस्त 2024 में कोर्ट ने उन पर लगे सभी मामले खत्म कर दिए। जैनेंद्र और उनके परिवार को बरी कर दिया गया। लंबे संघर्ष के बाद उन्हें आखिरकार न्याय मिल ही गया। और 2025 का नवंबर आते-आते उनकी मेहनत रंग लाई।
MPPSC परिणाम में 12वीं रैंक के साथ उन्होंने DSP पद हासिल कर लिया। आज वही युवक, जिसे कभी हथकड़ी लगाई गई थी, अब खाकी पहनकर कानून और इंसाफ की रक्षा करेगा।
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मुझे परिवार चाहिए, बदला नहीं
खबरों में आने के बाद भी जैनेंद्र विनम्र हैं। वे कहते हैं, मेरे मन में किसी के लिए कोई गुस्सा नहीं है। मेरा बस एक मकसद था कि परिवार को खुशी दूं। मैं खुश हूं कि पिता का सपना पूरा हो गया।
यह सिर्फ एक युवक की सफलता नहीं, विश्वास और जिद की कहानी है। वो कहते भी हैं ना कि हौसला हो तो अंधेरे से भी रोशनी निकलती है। चंबल के जैनेंद्र इसका सबसे बड़ा सबूत हैं।
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