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BHOPAL.मध्यप्रदेश सरकार अपने ही सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के सामने बेबस नजर आ रही है। सरकार की 15 से ज्यादा कंपिनयां और निगम सालों से हिसाब ही नहीं दे रहे हैं। ज्यादातर निगम, बोर्ड और कंपनियां अनियोजित गतिविधियों और अधिकारियों के फैसलों से घाटे में जा रही हैं। राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम और आवास एवं अधोसंरचना विकास बोर्ड को पिछले सालों में बड़ा नुकसान हुआ है।
इस वजह से कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट करोड़ों रुपए के निवेश के बावजूद जनउपयोगी साबित नहीं हो सके हैं। यह खुलासा भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी कैग की हाल ही में जारी रिपोर्ट में हुआ है। सरकारी कार्यप्रणाली की कमी से सरकार को करोड़ों का नुकसान हुआ। योजनाओं में देरी से हितग्राहियों पर विपरीत असर पड़ा।
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गलत फैसलों से पिटे आईटी प्रोजेक्ट
अधिकारियों के गलत फैसले और अनदेखी की वजह से कई परियोजनाओं पर काम ही नहीं हो सका है। राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम द्वारा प्रदेश में आईटी पार्कों विकसित करने के प्रोजेक्ट शुरू किए। लेकिन इन्हें व्यवस्थित नहीं किया।
नतीजा ऐसे 240 भूखंडों में से केवल 26 पर ही व्यावसायिक गतिविधियां शुरू हो पाई हैं। इस वजह से सरकार के लक्ष्य के मुकाबले केवल 4 प्रतिशत ही रोजगार सृजित हो सके। वहीं आईटी सेक्टर की मांग के मुताबिक प्रोजेक्ट न होने का खामियाजा करीब 6 करोड़ रुपए के नुकसान के रूप में उठाना पड़ा है।
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आईटी पार्कों में खाली पड़े भूखंड
प्रदेश में आईटी सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम और MPHIDB के बीच अनुबंध हुआ। सरकार ने इस पर करोड़ों रुपए खर्च किए। इंदौर, भोपाल और जबलपुर में आईटी पार्क और कॉमन यूटिलिटी सेंटर विकसित किए गए।
दोनों संस्थाएं आवंटन की योजना में लड़खड़ा गईं। नतीजा इंदौर में 24 करोड़ भोपाल में 4 करोड़ और जबलपुर में 1 करोड़ रुपए निर्माण पर बर्बाद हो गए। जबलपुर में 2020 में 1.32 एकड़ पर बिना सीमांकन के आईटी विकसित किया गया। भूमि विवाद के कारण साढ़े 4 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
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ठेकेदार- अफसरों की साठगांठ
सरकार को नुकसान पहुंचाने में लघु उद्योग निगम भी पीछे नहीं है। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में निगम की ठेकेदारों से साठगांठ भी उजागर हुई है। इससे MSME, रोजगार सृजन और सामाजिक-आर्थिक विकास को भी नुकसान हुआ है। MSME नीति के तहत इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने में लघु उद्योग निगम पीछे रहा है। वहीं ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने न रायल्टी में कटौती नहीं की और न टेंडर शर्तों की अनदेखी करने पर जुर्माना लगाया। इस वजह से 4.45 करोड़ का नुकसान हुआ। वहीं निर्माण कार्य भी डेढ़ से दो साल पिछड़ते रहे।
सोलर प्रोजेक्ट में हुई लेटलतीफी
कंट्रोलर एवं ऑडिटर जनरल की रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के प्रोजेक्ट भी दूसरे राज्यों से पीछे रहे हैं। 12018 मेगावाट के लक्ष्य के मुकाबले 2023 तक केवल 5732 मेगावाट सौर ऊर्जा का ही उपयोग किया जा सका। गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडू, राजस्थान और महाराष्ट्र के मुकाबले मध्यप्रदेश काफी पीछे रह गया। सोलर पार्कों के लिए दी गई जमीन का टैक्स न वसूलने से निगम को साढ़े 27 करोड़ का नुकसान हुआ। रूफटॉप सोलर सिस्टम इंस्टालेशन में छह से डेढ़ माह की देरी हुई। निगम अधिकारियों की अनदेखी से पीएम कुसुम और सीएम सोलर पंप योजनाओं का लाभ किसान नहीं उठा पाए। किसान परेशान होते रहे।
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तीन साल में 12 हजार करोड़ का घाटा
कैग की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी कंपनियों को तीन वर्षों में भारी नुकसान हुआ। अधिकारियों के गलत फैसलों और नीतियों से यह नुकसान हुआ। वित्त वर्ष 2020-21 में 3970 करोड़, 2021-22 में 6473 करोड़ और 2022-23 में 1891 करोड़ का नुकसान हुआ। निगम और बोर्ड को तीन वर्षों में 136.49 करोड़ का घाटा हुआ। कुल मिलाकर तीन वर्षों में 12 हजार करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ।
घाटे में चल रही ये सरकारी कंपनी
1. मध्य प्रदेश पूर्व क्षेत्र बिजली कंपनी
2. मध्य प्रदेश पश्चिम क्षेत्र बिजली कंपनी
3. मध्य प्रदेश मध्य क्षेत्र बिजली कंपनी
4. पीथमपुर जल प्रबंधन लिमिटेड
5. मध्य प्रदेश प्लास्टिक पार्क विकास निगम
6. मध्य प्रदेश होटल कॉर्पोरेशन लिमिटेड
7. मध्य प्रदेश जल निगम मर्यादित
8. मध्य प्रदेश औद्योगिक विकास निगम
10. मध्य प्रदेश अर्बन डेव्लपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड
11. मध्य प्रदेश वित्त विकास निगम लिमिटेड
12. सागर स्मार्ट सिटी लिमिटेड
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