केस से पहले कलेक्टर की मंजूरी पर सहमत नहीं वनकर्मी, मांग रहे पुलिस जैसा पॉवर

मध्य प्रदेश पुलिस मुख्यालय ने अब ड्यूटी के दौरान वनकर्मियों के खिलाफ सीधे केस दर्ज न करने का आदेश जारी किया है। लेकिन वनकर्मियों के संगठन इस आदेश से संतुष्ट नहीं हैं और इसे प्रभावी नहीं मानते हैं।

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Sanjay Sharma
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MP Forest workers not satisfied with the order of Bhopal Police Headquarters
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BHOPAL. ड्यूटी के दौरान हुए विवाद- झगड़े के आरोप और शिकायतों पर अब पुलिस सीधे तौर पर केस दर्ज नहीं करेगी। इसके लिए पुलिस मुख्यालय ने प्रदेश के सभी रेंज और जोनल अधिकारियों को आदेश जारी कर दिया है। प्रदेश के वनकर्मी लगातार पुलिस कार्रवाई को लेकर नाराजगी जताते रहे हैं। विदिशा के लटेरी और बुरहानपुर में वनकर्मियों की सख्ती के बाद उनके खिलाफ केस दर्ज होने को लेकर प्रदेशव्यापी आंदोलन भी किए जाते रहे हैं। कुछ दिन पहले ही वन विभाग के अधिकारियों ने शासन और पुलिस मुख्यालय को इसको लेकर पत्र लिखा था। जिसके बाद पुलिस मुख्यालय द्वारा आदेश जारी किए गए हैं। हांलाकि प्रदेश के वनकर्मी इस आदेश से संतुष्ट नहीं हैं।

वनकर्मचारियों के संगठन इस आदेश को कारगर नहीं मानते। उनका कहना है ऐसे आदेश पहले भी जारी होते रहे हैं। अक्सर वन अमले की कार्रवाई के बाद राजनीतिक दबाव या समुदाय विशेष के विरोध को शांत करने के चक्कर में उन पर ही केस दर्ज कर दिए जाते हैं। वनकर्मी जंगलों की सुरक्षा और वन्य जीवों के संरक्षण की कार्रवाई के दौरान अपनी जान को जोखिम से बचाने के लिए पुलिस की तरह अधिकार मांग रहे हैं।

वनकर्मी मांग रहे पुलिस जैसे अधिकार

वन कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष निर्मल तिवारी का कहना है 17 फरवरी को भोपाल पीएचक्यू (Police Headquarters) से आदेश जारी किया गया है। आदेश में उल्लेख है कि ड्यूटी के दौरान होने वाले विवादों में अब वनकर्मियों पर सीधे ही अपराध दर्ज नहीं किया जाएगा। इसके लिए पहले संबंधित जिले के कलेक्टर की अनुमति की आवश्यकता होगी। कलेक्टर द्वारा कराई जाने वाली जांच के बाद ही जिम्मेदारी तय होने पर वन अधिकारी या कर्मचारियों पर केस दर्ज किए जा सकेंगे। तिवारी के अनुसार ऐसे आदेश पहले भी जारी किए गए हैं। जब तक पुलिस की तरह बल प्रयोग और हथियार चलाने का अधिकार नहीं मिलता तब तक ऐसे आदेश कारगर साबित नहीं होंगे। इसको लेकर विभाग प्रस्ताव भेजता रहा है लेकिन गृह विभाग में इसे नकार दिया जाता है।

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पुलिस मुख्यालय की चिट्ठी ने बढ़ाई हलचल

दरअसल, PHQ की अपराध अनुसंधान विभाग द्वारा पुलिस आयुक्त भोपाल, इंदौर और सभी पुलिस अधीक्षकों को दिए गए हैं। पीएचक्यू से यह पत्र वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक और वन बल प्रमुख द्वारा 29 अक्टूर 2024 को लिखी गई चिट्ठी के जवाब में भेजा गया है। वन विभाग के प्रमुख ने वन कर्मियों पर होने वाली पुलिस कार्रवाई और उनके आंदोलन को देखते हुए यह पत्र लिखा था। अब मध्य प्रदेश में वन विभाग के रेंजर, वनपाल और वन रक्षकों के खिलाफ पुलिस तभी केस दर्ज करेगी जब कलेक्टर इस संबंध में आदेश जारी करेगा या कलेक्टर की जांच में यह साबित हो जाएगा कि इनके खिलाफ केस दर्ज किया जाना जरूरी है। वन अधिकारियों और कर्मचारियों को यह रियायत तब दी जाएगी जब वे ड्यूटी के दौरान बल और शस्त्रों का प्रयोग करेंगे।

प्राणरक्षा के लिए भी नहीं चला सकते हथियार

वन कर्मचारी संघ के प्रदेश महामंत्री संदीप बोरीवाल, रायसेन जिला अध्यक्ष प्रभात यादव, सागर जिला इकाई के अध्यक्ष राजू यादव, वन एवं वन्यजीव संरक्षण संघ की विदिशा इकाई के जिलाध्यक्ष अतुल कुमार कुशवाहा पीएचक्यू के आदेश को कारगर नहीं मानते। उनका कहना है जंगल में गश्त के दौरान अकसर पेड़ काटने और शिकार करने वालों से भिड़ना पड़ता है। प्रदेश में वनकर्मियों पर हमले और हत्या की अनगिनत वारदात सामने आती रही हैं। हर साल प्रदेश में 50 हजार से ज्यादा वन अपराध दर्ज होते हैं। बीते एक दशक में 70 से ज्यादा वनकर्मी ड्यूटी के दौरान हुए हमलों में जान गवां चुके हैं। इसके बावजूद गश्त के दौरान लकड़ी माफिया और शिकारी जब हमला करते हैं तो जान बचाने के लिए भी वनकर्मी हथियार नहीं उठा सकते। यदि मजबूरी में गोली चला दें या किसी पर सख्ती कर दें तो पुलिस उन्हें ही आरोपी बना देती हैं। इस आदेश से कोई बदलाव नहीं आएगा। सरकार को वनकर्मियों को अधिकार देने होंगे। ड्यूटी के दौरान उन पर हमला हो तो वे अपनी जान बचा सकें।

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12 साल में कबाड़ हो गईं बंदूकें और रिवॉल्वर

वन विभाग ने 12 साल पहले प्रदेश के वन क्षेत्रों की सुरक्षा करने वाले रेंजर, डिप्टी रेंजर, वन रक्षकों के लिए बंदूक और रिवॉल्वर खरीदे थे। ये साढ़े तीन हजार से ज्यादा बंदूक और रिवॉल्वर अब कबाड़ हो चले हैं क्योंकि विभाग वनकर्मियों को हथियार चलाने का अधिकार ही नहीं दिला सका। यानी जिस उद्देश्य को लेकर लाखों रुपए की खरीदी की गई वह वन विभाग और गृह विभाग के अफसरों में सामंजस्य न बनने की वजह से पूरा ही नहीं हो पाया। पुलिस की तरह फोर्स का दर्जा मिलने पर वनकर्मी मनमानी करेंगे इस आशंका के चलते गृह विभाग रोड़ा अटकाता आ रहा है।

फोर्स का दर्जा मिले बिना सब बेकार

वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि दस साल से भी पहले विभाग ने तीन हजार से ज्यादा बंदूक और रिवॉल्वर खरीदे थे। इन्हें जंगल में ड्यूटी करने वाले वनकर्मियों को उपलब्ध कराना था ताकि वे लकड़ी चोर, शिकारियों का मुकाबला कर पाएं। लेकिन वनकर्मियों को पुलिस की तरह हथियार का उपयोग करने के प्रस्ताव को गृह मंत्रालय ने खारिज कर दिया। शासन से पहले भी वनकर्मियों को सीधे तौर पर कार्रवाई न किए जाने के परिपत्र जारी किए गए हैं, लेकिन जब तक वन अमले को पुलिस बल की तरह विशेष अधिकार प्राप्त नहीं दिए जाते ये कारगर नहीं होंगे। वन क्षेत्र में गश्त के दौरान माफिया या शिकारियों से भिड़ंत में जीवन रक्षा के लिए वनकर्मी शस्त्र का उपयोग करते हैं तो पुलिस दबाव में केस दर्ज कर ही लेती है। वहीं मामला कोर्ट पहुंचने पर वनकर्मी की परेशानी और भी बढ़ जाती है क्योंकि तब वनकर्मी ये साबित नहीं कर पाते कि किस अधिकार से उन्होंने हथियार उपयोग किया है।

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ये हैं चर्चित घटनाएं

जुलाई 2019: बुरहानपुर जिले के नेपानगर की बदनापुर बीट में वनभूमि से कब्जा हटाने के दौरान अतिक्रमणकारियों से हुए झगड़े के बाद रेंजर और उनके साथी वनकर्मियों पर पुलिस द्वारा अपराध दर्ज किया गया था। कार्रवाई से गुस्साए जनजातीय वर्ग के लोग के हमले में एसडीओ फॉरेस्ट सहित दर्जन भर वनकर्मी भी जख्मी हुए थे। इस घटना की जांच के बाद कुछ अधिकारियों पर भी कार्रवाई की गई थी।

अगस्त 2022: विदिशा जिले के लटेरी वन परिक्षेत्र में लकड़ी काटने गए आदिवासी युवकों से वन अमले का आमना- सामना हो गया था। जंगल में दोनों पक्षों में भिड़ंत के दौरान एक युवक की गोली लगने से मौत हो गई थी, जबकि कुछ जख्मी भी हुए थे। इस मामले में एक रेंजर, दो डिप्टी रेंजर सहित करीब 8 वनकर्मियों पर हत्या का अपराध दर्ज किया गया था। मामले की सुनवाई अब कोर्ट में चल रही है।

फैक्ट फाइल

  • बीते 14 साल में मध्य प्रदेश में ड्यूटी के दौरान 74 वनकर्मियों को माफिया, लकड़ी चोरों और शिकारियों के हमले में जान गंवानी पड़ी है।
  • मार्च 2022 में रायसेन के सिलवानी में लकड़ी चोरों ने दबिश देने पहुंचे रेंजर की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी।
  • फरवरी 2021 में लकड़ी माफिया ने देवास के पुंजापुरा में वनरक्षक मदनलाल वर्मा की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
  • जून 2021 में भोपाल के बैरसिया क्षेत्र में वनभूमि से कब्जा हटाने गए वनकर्मी अतिक्रमणकारियों के हमले में जख्मी हो गए थे।
  • 12 साल पहले वन विभाग ने तीन हजार से ज्यादा बंदूक और रिवाल्वर खरीदी थीं, लेकिन वन अमले को फोर्स का दर्जा न मिलने से अब तक उन्हें चलाने का अधिकार नहीं है। इस वजह से कोई भी वनकर्मी ड्यूटी पर गोली चलाता है तो उसके विरुद्ध अपराध दर्ज होता है।

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