भ्रष्टाचार मामले में सरकारी कर्मचारी को अनुचित लाभ देने वाले सेशन जज पर विभागीय जांच के आदेश

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार मामले में शिवपुरी के सत्र न्यायाधीश विवेक शर्मा पर विभागीय जांच के आदेश दिए। कोर्ट ने पाया कि जज ने आरोपी को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए गंभीर धाराओं को हटाया।

author-image
Neel Tiwari
New Update
highcourt-judg

Photograph: (thesootr)

Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

मध्‍य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने एक भ्रष्टाचार के मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए न केवल आरोपी की जमानत अर्जी खारिज की, बल्कि ट्रायल कोर्ट के जज के आचरण पर भी सवाल खड़े किए हैं।

कोर्ट ने पाया कि शिवपुरी के प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (विवेक शर्मा) ने आरोपी को अनुचित लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से गंभीर धाराओं को हटाकर केवल हल्की धारा लगाई, जिससे आरोपी को जमानत का रास्ता आसान हो गया।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले की विभागीय जांच कराने और संबंधित जज के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का आदेश दिया है। हालांकि इस फैसले में बिना सबूत की गई जज पर टिप्पणी को लेकर निचली अदालत में जजों का आक्रोश भी सामने आ रहा है।

पांच करोड़ से अधिक की गड़बड़ी का आरोप

मामला शिवपुरी जिले का है, जहां रूप सिंह परिहार नामक एक सरकारी कंप्यूटर ऑपरेटर पर ज़मीन अधिग्रहण मुआवजे की राशि में हेराफेरी करने का आरोप है।

जांच में सामने आया कि जिन किसानों को लगभग 6.55 लाख रुपए मिलने थे, उनकी जगह आठ लोगों को करीब 25.55 लाख रुपए स्थानांतरित किए गए। इसमें से अकेले आरोपी रूप सिंह और उसकी पत्नी के खातों में 73 लाख रुपये से अधिक जमा हुए, जबकि कुल गड़बड़ी का आंकड़ा 5.10 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।

आरोप यह भी है कि आरोपी ने कलेक्टर कार्यालय के आदेशों से छेड़छाड़ की, फर्जी दस्तावेज तैयार किए और यहां तक कि राजस्व अभिलेखों में आग लगाकर सबूत मिटाने की कोशिश भी की। इस मामले में आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 409, 420, 467, 468, 471, 120बी और 107 सहित भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराएं भी लगाई गई थीं।

ये खबरें भी पढ़ें...

सिख समुदाय के आनंद विवाह पंजीकरण पर नियम बनाने सभी राज्यों को SC का आदेश

इंदौर में किसानों का उग्र आंदोलन, बोले–फसल बीमा नहीं मिला, खाद भी नहीं है, सरकार का ध्यान नहीं

हाईकोर्ट ने की जमानत खारिज

आरोपी की पांचवीं जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस राजेश कुमार गुप्ता ने कहा कि यह मामला सार्वजनिक धन के बड़े पैमाने पर गबन का है, जिसमें अभी भी कई तथ्य सामने आने बाकी हैं।

कोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट ने गंभीर धाराओं को हटाकर केवल धारा 406 (आपराधिक विश्वासभंग) बनाए रखा, जिससे आरोपी को अनुचित लाभ पहुंचाने का प्रयास किया गया।

हाईकोर्ट ने साफ कहा कि ट्रायल कोर्ट का यह फैसला संदेहास्पद और उद्देश्यपूर्ण प्रतीत होता है। ऐसे में आरोपी को जमानत देना सार्वजनिक धन की सुरक्षा और न्यायिक प्रक्रिया, दोनों के खिलाफ होगा। नतीजतन, आरोपी की जमानत अर्जी खारिज कर दी गई।

Be indian-Buy indian

जज पर विभागीय जांच के आदेश

सबसे अहम बात यह रही कि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में मामले को केवल आरोपी तक सीमित नहीं रखा। कोर्ट ने कहा कि प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, शिवपुरी (विवेक शर्मा) ने धारा कम करके आरोपी को लाभ देने का प्रयास किया, जिससे उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई जरूरी है।

इस आदेश की प्रति हाईकोर्ट के प्रिंसिपल रजिस्ट्रार (विजिलेंस) को भेजी गई है, ताकि इसे मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जा सके और जज के खिलाफ विभागीय जांच शुरू की जा सके। 

ये खबरें भी पढ़ें...

MP Weather Update: शिप्रा नदी का बढ़ा जलस्तर, इंदौर में बच्चा नाले में बहा, जानें MP के मौसम का हाल

मंत्री विजय शाह की कमिश्नर को धमकी! पौधा लगाते हुए बोले-पेड़ मुरझाया तो आपकी सांसें बंद

निचली कोर्ट में जजों को फैसले से आपत्ति

एक ओर हाईकोर्ट का यह रुख निचली अदालतों की जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। वहीं जिला एवं सेशन जजों में इसे लेकर आपत्ति भी है। 

पद की गरिमा और वर्किंग कंडीशंस के चलते जज सामने तो नहीं आ रहे पर एक जिला अदालत जज ने बताया कि हाईकोर्ट जज के द्वारा बिना किसी सबूत के एक जज पर सीधे-सीधे भ्रष्टाचार की टिप्पणी को जस्टिस अतुल श्रीधरन के उसे आदेश से जोड़कर देखा जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि हाईकोर्ट के जज खुद को सामंत समझते हैं।

सेशन जज विभागीय जांच जमानत खारिज सत्र न्यायाधीश ग्वालियर खंडपीठ मध्यप्रदेश हाईकोर्ट
Advertisment