संजय गुप्ता@indore. इंदौर नगर निगम के 150 करोड़ के फर्जी बिल घोटाले में 3 और आरोपियों की जमानत याचिका स्पेशल कोर्ट से खारिज हो गई। इसमें कैशियर राजकुमार साल्वी और निगम के तत्कालीन डिप्टी डायरेक्टर और वर्तमान में संयुक्त संचालक अनिल गर्ग और डिप्टी डायेरक्टर समरसिंह परमार शामिल है।
खुद को बताया बेकसूर
इन सभी आरोपियों ने कहा कि उनका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है, उनका काम फाइल आने पर ऑडिट करना और फिर आगे एकाउंट विभाग में राशि भुगतान के लिए भेज देना है। जो फाइल आई उसी को आगे बढ़ाया। इस घोटाले में बेवजह उनका नाम आया है और कोई भूमिका नहीं है।
पुलिस की जांच में सामने आई भूमिका
वहीं शासन की ओर से अतिरिक्त शासकीय अभिभाषक श्याम दांगी ने इन बातों का खंडन करते हुए पुलिस जांच में सामने आए साक्ष्य और तथ्य पेश किए। इसमें बताया गया कि घोटाले की फाइलों में सामने आया है कि इन्होंने पहले ही ऑडिट बना लिया था, बिल पेश होने के पहले के ही पे आर्डर पास हो गए। यह कैसे संभव है? इससे मिलीभगत साफ जाहिर है। फाइलों में एक दिन में पांच-पांच किमी लंबी ड्रेनेज लाइन डालना बताया है तो वहीं 500-500 चेंबर ढक्कन एक दिन में बदलना बताया गया है जो संभव ही नहीं है। लेकिन इस मामले में ऑडिट विभाग ने कोई भी तथ्य चेक करने की जरूरत ही नहीं समझी। यह सभी की सांठगांठ से किया गया बड़ा आर्थिक घोटाला है। ऐसे में जमानत का अधिकार नहीं बनता है। सभी तर्कों को सुनने के बाद विशेष न्यायाधीश डीपी मिश्रा ने जमानत आवेदन खारिज कर दिया।
अभी तक 2 को मिली जमानत
इस घोटाले में निगम के कई अधिकारी और ठेकेदार गिरफ्तार हुए हैं। इसमें से एक निगम अधिकारी मुरलीधर को हाईकोर्ट से जमानत मिली है तो वहीं महिला ठेकेदार रेणु वढेरा को जिला कोर्ट से मेडिकल आधार पर जमानत मिली है। इसके अलावा सभी अभी जेल में ही बंद है और पुलिस जांच अभी जारी है।
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