मध्यप्रदेश सरकार के श्रम कानून संशोधन पर कर्मचारियों का भारी विरोध, आंदोलन की चेतावनी
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा श्रम विभाग में किए गए तीन संशोधनों को कर्मचारी संगठनों ने काला कानून बताया है। इन संशोधनों से 40 से 50 लाख श्रमिक प्रभावित होंगे। संगठनों ने सरकार को आंदोलन की चेतावनी दी है।
मध्य प्रदेश में श्रमिक वर्ग एक बार फिर सड़कों पर उतरने के लिए तैयार है। श्रम विभाग द्वारा किए गए तीन बड़े संशोधनों से कर्मचारियों में आक्रोश है। 3 जून 2023 को पचमढ़ी में हुई कैबिनेट बैठक में इन संशोधनों को मंजूरी दी गई। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि इन बदलावों से लाखों श्रमिकों की स्थिति पर बुरा असर पड़ेगा।
श्रम कानूनों में तीन महत्वपूर्ण संशोधन
1. ठेका श्रम (नियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970:
इस संशोधन के तहत, ठेका श्रमिकों की सीमा 20 से बढ़ाकर 50 कर दी गई है। इसका मतलब है कि अब छोटे व्यवसायों में 50 ठेका श्रमिकों को काम पर रखा जा सकता है, जिन्हें श्रम कानूनों का लाभ नहीं मिलेगा। इससे ठेका श्रमिकों की स्थिति और खराब हो सकती है। उन्हें सुरक्षा, न्यूनतम वेतन और कामकाजी अधिकारों से वंचित किया जा सकता है।
असर...
अधिक श्रमिकों को ठेके पर रखा जा सकेगा, जिससे स्थायी रोजगार की संख्या कम हो जाएगी।
श्रमिकों को न्यूनतम लाभ और सुरक्षा नहीं मिलेंगे।
ठेकेदारों द्वारा श्रमिकों का शोषण बढ़ेगा, जिनके पास अधिकारों की कोई सुरक्षा नहीं होगी।
2. कारखाना अधिनियम, 1948:
इस संशोधन में, कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों की सीमा को बढ़ाकर बिजली के साथ 20 और बिना बिजली के 40 कर दिया गया है। इससे छोटे कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को श्रम कानूनों का लाभ नहीं मिलेगा। यह बदलाव मुख्य रूप से छोटे कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए खतरे का कारण बन सकता है।
असर...
छोटे कारखानों में श्रमिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
इन कारखानों में कामकाजी स्थितियों का खराब होना तय है।
मजदूरों के स्वास्थ्य और सुरक्षा पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
3. औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947:
इस संशोधन के तहत, हड़ताल या तालाबंदी से पहले नोटिस का प्रावधान सभी औद्योगिक प्रतिष्ठानों में लागू करने के लिए विस्तारित किया गया है। पहले यह प्रावधान केवल बड़े उद्योगों में था। अब यह सभी उद्योगों पर लागू होगा, जिससे मजदूरों की हड़ताल करने की क्षमता पर अंकुश लगेगा।
असर...
मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार पर प्रतिबंध लगाया जाएगा।
उनके अधिकारों की रक्षा करना कठिन हो जाएगा।
हड़ताल करने की क्षमता पर अंकुश लगने से मजदूरों की आवाज दब सकती है।
कर्मचारी संगठनों ने इन संशोधनों को "काला कानून" करार दिया है। उनके अनुसार, इन बदलावों से 40 से 50 लाख श्रमिक प्रभावित होंगे। अस्थाई और आउटसोर्स श्रमिक कर्मचारी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष वासुदेव शर्मा ने कहा कि सरकार ने पहले ही श्रमिकों को न्यूनतम वेतन से वंचित किया है। अब इन संशोधनों से श्रमिकों की स्थिति और भी खराब हो जाएगी।
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संगठनों की चेतावनी...
यदि सरकार ने इन संशोधनों को वापस नहीं लिया, तो कर्मचारी संगठनों ने पूरे प्रदेश में आंदोलन की घोषणा की है।
मंत्रालय के सामने आदेश की प्रतियां जलाने की धमकी दी गई है।
कांग्रेस और भाजपा दोनों ने इस मुद्दे पर अपनी-अपनी राय दी है। कांग्रेस ने इसे सरकार की मजदूर विरोधी नीति बताया है और कहा कि यह बदलाव श्रमिकों के शोषण को बढ़ावा देंगे। वहीं, बीजेपी ने कहा कि सरकार सभी वर्गों के हित में निर्णय ले रही है और अगर कर्मचारियों को कोई आपत्ति है तो उस पर विचार किया जाएगा।
मध्यप्रदेश सरकार ने इन संशोधनों को कर्मचारियों की भलाई के लिए लागू किया है, लेकिन कर्मचारी संगठन इसे पूरी तरह से अनुचित मानते हैं। सरकार ने हाल ही में नए श्रम कानूनों को मंजूरी दी है, जिनका उद्देश्य श्रमिकों के अधिकारों को सुरक्षित करना है। हालांकि, कर्मचारी संगठनों का कहना है कि यह बदलाव श्रमिकों के जीवन स्तर को और खराब कर देगा।
श्रम कानून संशोधन | कर्मचारी संगठन विरोध
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