क्राइम पेट्रोल जैसी कहानी... MP पुलिस ने अमेरिका की थ्योरी से सुलझाई मर्डर मिस्ट्री, सलाखों के पीछे पहुंचा हत्यारा

मध्‍य प्रदेश के दमोह जिले में जयराज पटेल की हत्या के मामले में पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया। जयराज के पिता लक्ष्मण पटेल ने अपने बेटे की अस्थियों के लिए 13 महीने तक संघर्ष किया।

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Ravi Kant Dixit
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दमोह जयराज पटेल हत्याकांड
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Damoh Jayraj Patel Murder Case : 28 मार्च 2023... यह वही तारीख थी, जब लक्ष्मण पटेल ने अपने बेटे जयराज को खो दिया था। वह अचानक लापता हो गया। कुछ दिन बाद गांव के बाहर स्थित तालाब के किनारे एक नरकंकाल मिला। लक्ष्मण को एक पल नहीं लगा। उन्होंने कपड़ों से पहचान लिया कि कंकाल उनके बेटे का ही है। यह हृदय विदारक ( दिल दहला देने वाला ) नजारा देखकर उनका हलक सूख गया। घर में जयराज की मां यशोदा बेसुध हो गई। मामला हत्या का था, इसलिए पुलिस आई। जांच-पड़ताल हुई। फिर कानूनी दांव-पेच ऐसे उलझे कि 13 महीने तक लक्ष्मण को जयराज की अस्थियां नहीं मिलीं। अपने 'लाल' का वे अंतिम संस्कार नहीं कर पाए। यही टीस लिए वे थानों के चक्कर काटते रहे। थानेदार से लेकर एसपी और भोपाल मुख्यालय तक गुहार लगाई, लेकिन कहीं बात नहीं बनी। 

इस मामले को 'द सूत्र' ने प्रमुखता से उठाया तो मई 2024 में लक्ष्मण को बेटे की अस्थियां नसीब हुईं। जरा सोचकर देखिए किसी के घर में एक ही संतान हो और उसकी भी लाश मिले तो उन मां-बाप की हालत कैसी होगी? बेटे की दास्तां कहते-कहते आज भी लक्ष्मण का गला भर आता है।

दिल दहला देने वाली इस घटना का अब पुलिस ने खुलासा करते हुए जयराज का कत्ल करने वाले आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है... जानिए क्या है दास्तां...कैसे आरोपी तक पहुंची पुलिस...क्या आईं अड़चनें... आरोपी का क्या है जयराज से कनेक्शन...

आज की 'द सूत्र' की यह पड़ताल मध्यप्रदेश की दिल दहला देने वाली घटना पर केंद्रित है। आपको ये दास्तां किसी टीवी धारावाहिक जैसी लग सकती है, लेकिन इस घटना के सभी पात्र काल्पिनक नहीं, बल्कि असली हैं।

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एमपी के दमोह जिले का है यह मामला...

यह मामला मध्यप्रदेश के दमोह जिले के पिपरिया छक्का गांव का है। किसान लक्ष्मण पटेल का इकलौता बेटा जयराज 10वीं का विद्यार्थी था। वह दमोह के सेंट जॉन्स स्कूल में पढ़ता था। 29 मार्च 2023 को वह गांव से लापता हो गया। लक्ष्मण ने थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। 

दिन बीतते गए। लक्ष्मण और यशोदा की धड़कनें बढ़ रही थीं। न हलक से खाना अंदर जा रहा था, न आंख लग रही थी। करवटें बदलते रात कट जाती थी। सुबह फिर पथराई आंखें बेटे को खोजने लगती थीं। जयराज को याद कर बार-बार दोनों फफक पड़ते थे। 45 दिन ​बाद खबर आई कि गांव के बाहर तालाब के किनारे खेत में एक नरकंकाल पड़ा है। पुलिस पहुंची तो उन्होंने शिनाख्त के लिए गांव वालों को बुलाया। इसी में लक्ष्मण पटेल और उनकी पत्नी यशोदा भी थी। नरकंकाल के पास पड़े कपड़ों से उन्होंने तुरंत पहचान लिया कि यह उन्हीं के बेटे का कंकाल है।

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जब डीएनए मैच नहीं हुआ

इस घटना में कई मोड़ आए। पुलिस ने जांच शुरू की। शुरुआत में सबको लग रहा था कि नरकंकाल जयराज का ही है। यह पुख्ता करने के लिए पुलिस ने सागर की फॉरेंसिक लैब में कंकाल का डीएनए टेस्ट कराया। रिपोर्ट आई तो पता चला कि कंकाल का डीएनए लक्ष्मण और यशोदा के डीएनए से मैच नहीं हुआ। फिर सैंपल चंडीगढ़ लैब भेजे गए। वहां भी नतीजा यही हुआ। डीएनए का मिलान नहीं हुआ। पुलिस को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर किया क्या जाए? 

टेस्ट ट्यूब बेबी था जयराज 

लंबी पूछताछ और जांच के बाद पुलिस को पता चला कि जयराज टेस्ट ट्यूब बेबी था। यानी उसका जन्म आईवीएफ तकनीक से हुआ था, इसीलिए दो बार में डीएनए मैच नहीं हुआ। आईवीएफ की जानकारी देते हुए लक्ष्मण कहते हैं, मेरी वर्ष 2004 में यशोदा से शादी हुई थी। चार साल बाद जब बच्चा नहीं हुआ तो हमनें इंदौर के आईवीएफ अस्पताल में जांच कराई। आईवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन से यशोदा ने गर्भ धारण किया। 2008 में यशोदा ने जयराज को जन्म दिया। हमारे पास इसके दस्तावेज सुरक्षित नहीं थे। हमनें पुलिस को आईवीएफ के बारे में बताया। इसी आधार पर पुलिस ने इंदौर के आईवीएफ सेंटर से जानकारी जुटाई। अस्पताल वालों ने कहा कि वे अपने मरीज का रिकॉर्ड पांच साल तक रखते हैं। दूसरा, गोपनीयता के लिहाज से भी डोनर की पहचान उजागर नहीं कर सकते। अंतत: लक्ष्मण और पुलिस दोनों के हाथ निराशा लगी।

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बेटे को न्याय दिलाने पिता ने नहीं मानी हार 

महीने दर महीने बीतते रहे। पुलिस लक्ष्मण को अस्थियां नहीं सौंप रही थी। वे थाने, कचहरी के चक्कर काट-काटकर परेशान हो चुके थे। अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए उन्होंने भी हार नहीं मानी। यशोदा की आंख से आंसू झिरते। वह रोज रोती। बेटे की तस्वीर को खाना खिलाती। उसका हाल पूछती। लक्ष्मण भी अपने 'लाल' को याद कर बार-बार रो पड़ते। सबूतों के अभाव में पुलिस भी एक वक्त निराश हो गई। 

अमेरिका थ्योरी ने किया कमाल 

असल में, इस केस में अमेरिकी पुलिस ने आईवीएफ तकनीक से पैदा हुए बच्चों की शिनाख्त करने के लिए डीएनए टेस्ट तो कराया था, लेकिन इसके लिए पुलिस ने स्लाइवा के स्थान पर लार या पसीने के सैंपल लिए थे। इसकी जांच बच्चों पर दावा कर रहे परिजनों के डीएनए से कराई थी। बस, यहीं एएसपी मिश्रा का ध्यान जयराज के केस पर गया। उन्होंने इसी थ्योरी के आधार पर जयराज के कपड़ों और अन्य सामग्री की जांच कराई। 

यह काम भी इतना आसान नहीं था। लार अथवा डीएनए जांच के लिए पुलिस ने लक्ष्मण से जयराज से जुड़ी कई चीजें मंगाई। बचपन के खिलौने, कपड़े, ग्लव्स, टोपी, सीटी और स्कूल का आई कार्ड जैसी चीजें जुटाई गईं। इन्हें एक बार फिर चंडीगढ़ लैब भेजा गया। पुलिस को जैसा अनुमान था, वैसा ही हुआ। डीएनए रिपोर्ट में पसीने के सैंपल से यह पूरी तरह साफ हो गया कि कंकाल जयराज का ही था। इस तरह अमेरिकी थ्योरी यहां काम कर गई। 

द सूत्र ने प्रमुखता से उठाया था मुद्दा 

अब चूंकि कानूनी अड़चनें थीं। सब कुछ आसान नहीं था। लक्ष्मण को अब भी अपने बेटे की ​अस्थियां नहीं मिली थीं। बेटे की अस्थियां लेने के लिए लक्ष्मण ने हाईकोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया। सुनवाई के बाद अदालत ने पुलिस को नरकंकाल परिजनों को सौंपने के निर्देश दिए। इसमें भी लेटलतीफी को लेकर 'द सूत्र' ने इस मामले को प्रमुखता से प्रकाशित किया। अंतत: 12 मई 2024 को लक्ष्मण को बेटे की अस्थियां मिल गईं। उन्होंने 'द सूत्र' का ध्यान अदा किया। 

फिर जांच में आई तेजी 

इधर, एडिशनल एसपी संदीप मिश्रा ने पूरे मामले की जानकारी एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी को दे दी थी। अब अस्थियां मिलने के बाद लक्ष्मण ने यह ठान लिया था कि वे बेटे के हत्यारे को सलाखों के पीछे पहुंचाकर ही दम लेंगे। लिहाजा, उन्होंने भोपाल आकर सीएम डॉ.मोहन यादव से मुलाकात की। ​सीएम के निर्देश पर जांच में तेजी आई। पुलिस ने लक्ष्मण से सारी जानकारी ली। साथ ही यह भी जाना कि उन्हें किस पर शक है। इस पर उन्होंने नाम बताए। दरअसल, यह नाम तो लक्ष्मण ने पुलिस को 14 मई को उसी दिन बता दिए थे, जब नरकंकाल मिला था, लेकिन सबूतों के अभाव में पुलिस कुछ कर नहीं पा रही थी।

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भतीजे पर जताया था हत्या का शक 

इस हत्याकांड में लक्ष्मण ने अपने सौतेले भाई दशरथ पटेल के बेटे मानवेंद्र पर शंका जाहिर की थी। इसके पीछे वजह यह थी कि गांव के लोगों ने आखिरी बार जयराज को मानवेंद्र के साथ देखा था। मानवेंद्र की नजर लक्ष्मण की संपत्ति पर थी। कुल मिलाकर उसके पास जयराज को मारने का मोटिव था। इसी आधार पर जब पुलिस ने मानवेंद्र से सख्ती से पूछताछ की तो उसने जयराज की हत्या करना कबूल कर लिया। 

भाई ने ही भाई का किया कत्ल 

मानवेंद्र ने खुलासा करते हुए कहा, लक्ष्मण को कोई संतान नहीं थी। उसे लगता था कि पूरी संपत्ति उसे मिल जाएगी, लेकिन फिर जयराज का जन्म हो गया। इस तरह उसके मंसूबों पर पानी फिर गया। यहीं से उसने ठान लिया था कि वह जयराज को रास्ते से हटा देगा। वह लगातार प्लानिंग करता रहा। इधर, जयराज धीरे धीरे बड़ा होता गया। 

जयराज रोज की तरह 28 मार्च 2024 को स्कूल गया था। वहां से वह लौटा नहीं। इसके पीछे वजह यह थी कि बाइक चलाना सिखाने के बहाने मानवेंद्र उसे अपने साथ ले गया। खेत पर पहुंचकर उसने जयराज की गला घोंटकर हत्या कर दी। सबूत मिटाने के लिए उसने खेत में ही गड्ढा खोदकर जयराज के शव को दफना दिया था। उसे अंदाजा नहीं था कि कंकाल बाहर आ जाएगा, लेकिन डेढ़ महीने बाद कंकाल मिल गया।

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