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मध्य प्रदेश में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर मामला किसी न किसी कारण से टलता ही जा रहा है। आज 25 सितंबर को चीफ जस्टिस की डिविजनल बेंच में इस मामले की सुनवाई सुबह 11:30 बजे होनी तय थी। लेकिन शासन की ओर से अधिवक्ता हरप्रीत रूपराह (एडिशनल एडवोकेट जनरल) ने मेंशन कर अगली तारीख ले ली। उन्होंने कोर्ट को बताया कि इस मामले में सरकार की ओर से अधिकृत सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता सी.एस. वैद्यनाथन आज उपलब्ध नहीं हैं। कोर्ट ने इसके बाद सुनवाई को स्थगित कर दिया और अब अगली तारीख 16 अक्टूबर 2025 तय की है।
पिछली सुनवाई में उठे थे कई अहम मुद्दे
इससे पहले 16 सितंबर को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया था कि सरकार और अनारक्षित वर्ग सुप्रीम कोर्ट के यथास्थिति आदेश का अपने हिसाब से अर्थ निकाल रहे हैं। उनका कहना था कि 2016 से पहले किए गए प्रमोशन ज्यों के त्यों हैं, जबकि उन्हीं आधारों पर सरकार ने नया नियम बना दिया है जिसमें 2022 के नियमों जैसे विवादित प्रावधान शामिल हैं।
सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी.एस. वैद्यनाथन और महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने दलील दी थी कि 2002 के नियम सुप्रीम कोर्ट ने कभी निरस्त नहीं किए, बल्कि केवल पहले से हुए प्रमोशन पर यथास्थिति का आदेश दिया था। सरकार ने यह भरोसा भी दिलाया था कि सभी प्रमोशन अंतिम आदेश के अधीन रहेंगे, लेकिन कोर्ट ने केवल मौखिक आश्वासन मानने से इंकार करते हुए कहा था कि यदि नियमों में इसका उल्लेख नहीं है तो सिर्फ बयान पर भरोसा नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इस पर GAD विभाग से लिखित स्पष्टता देने को कहा था।
हस्तक्षेप याचिकाओं की बढ़ती संख्या
इस मामले में अजाक्स संघ सहित कई कर्मचारियों और अधिकारियों ने प्रमोशन कानून के समर्थन में हस्तक्षेप याचिकाएं दाखिल की थीं, जिन्हें पिछली सुनवाई में स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद हस्तक्षेपकर्ताओं ने याचिकाकर्ताओं की लोकस (पक्षकार की वैधता) और याचिकाओं की विचारणीयता पर आपत्ति जताते हुए आवेदन भी दाखिल किया। वहीं, अजाक्स संघ ने नियम 2025 के खिलाफ नियम प्रकाशित होने से पहले ही याचिका (क्रमांक 16383/2025) दायर कर दी थी, जिसकी आज पहली सुनवाई होनी थी, लेकिन अब यह भी 16 अक्टूबर को होगी।
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यही नहीं, पिछली सुनवाई के दौरान ओबीसी संगठनों के वकील ने कोर्ट में आपत्ति जताई थी कि आरक्षित वर्ग की दलीलों को महत्व नहीं दिया जा रहा। इस पर कोर्ट ने उन्हें बीच में ही रोकते हुए स्पष्ट कर दिया था कि न्यायालय कभी भी जाति, वर्ग या धर्म के आधार पर निर्णय नहीं लेता। इसके बाद संबंधित अधिवक्ता ने माफी मांग ली थी। हालांकि इसे आदेश का हिस्सा नहीं बनाया गया।
अगली सुनवाई से उम्मीदें
अब सबकी निगाहें 16 अक्टूबर 2025 को होने वाली सुनवाई पर टिकी हैं, जिसमें सरकार को अपने पक्ष के साथ-साथ नए नियमों पर उठी आपत्तियों का जवाब भी देना होगा। कोर्ट ने पहले ही साफ कर दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के यथास्थिति आदेश के रहते हुए हाईकोर्ट फिलहाल कोई अलग आदेश नहीं दे सकता। ऐसे में अगली सुनवाई इस लंबे समय से लंबित विवाद की दिशा तय करने में अहम साबित हो सकती है।