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Photograph: (thesootr)
KALAPIPAL. मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले के कालापीपल क्षेत्र के ग्राम इमलीखेड़ा में बोमा पद्धति से कृष्ण मृगों को पकड़ने का अभियान जारी है। इस अभियान में दक्षिण अफ्रीका की टीम की मदद ली जा रही है, और हेलीकॉप्टर की सहायता से हिरण को पकड़कर गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में छोड़ा जा रहा है। इस अभियान का उद्देश्य कृषि फसलों को बचाना है, जिन्हें मृगों और नीलगायों से भारी नुकसान हो रहा है।
काले हिरणों को पकड़ने का अभियान
शाजापुर जिले के कालापीपल क्षेत्र में काले हिरणों को पकड़ने का अभियान बड़े पैमाने पर चल रहा है। यह अभियान बोमा पद्धति से किया जा रहा है, जिसमें हेलीकॉप्टर से हांका कर हिरणों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाया जा रहा है। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य कृषि फसलों को हिरणों और नीलगायों से बचाना है, जो अक्सर किसानों की फसलों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं।
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अभियान की शुरुआत
इस अभियान की शुरुआत 15 अक्टूबर 2025 को हुई थी, और इसे 5 नवंबर 2025 तक चलाया जाएगा। इस अभियान में दक्षिण अफ्रीका की कंजर्वेशन साल्यूशंस टीम का भी सहयोग लिया जा रहा है, जो हिरणों को पकड़ने के लिए हेलीकॉप्टर का उपयोग कर रही है। बोमा पद्धति में हिरणों को एक बड़े बाड़े में इकट्ठा किया जाता है, जहां उन्हें आसानी से पकड़ा जा सकता है।
गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य
अब तक, इस अभियान के दौरान 79 हिरण पकड़े जा चुके हैं। ग्राम इमलीखेड़ा से 34 हिरण बुधवार को पकड़े गए, और उन्हें गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य ( Gandhi Sagar Wildlife Sanctuary) में छोड़ा गया। सोमवार को 45 हिरण पकड़े गए थे। इससे पहले, इस अभियान के तहत नीलगाय पकड़ने का प्रयास किया गया था, लेकिन अब तक कोई नीलगाय नहीं पकड़ी जा सकी है।
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ऐसे समझें बोमा पद्धति के बारे में...
1. बोमा पद्धति की परिभाषा: बोमा पद्धति एक विशेष प्रक्रिया है जिसमें वन्यजीवों को बिना नुकसान पहुंचाए एक नियंत्रित क्षेत्र में एकत्रित किया जाता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य जानवरों को सुरक्षित रूप से स्थानांतरित करना है।
2. बोमा पद्धति का तरीका: इसमें वन्य जीवों को बिना केमिकल इंजेक्शन लगाए, खुले मैदानों या खेतों में हेलीकॉप्टर की मदद से हांककर बोमा (जाल) की दीवारों में लाया जाता है। यह दीवार घास और हरी नेट से बनाई जाती है।
3. बोमा क्षेत्र का निर्माण: बोमा क्षेत्र में घास, बांस और हरी नेट की दीवारों से एक सुरक्षित स्थान तैयार किया जाता है, जहां जानवर बिना किसी घबराहट के आसानी से आ सकते हैं। यह प्रक्रिया जानवरों के लिए तनावमुक्त रहती है।
4. हेलीकॉप्टर का उपयोग: इस पद्धति में हेलीकॉप्टर का प्रयोग किया जाता है, जो जानवरों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिना किसी नुकसान के लाने में मदद करता है। हेलीकॉप्टर की मदद से जानवरों को बोमा तक हांकने की प्रक्रिया होती है।
5. रॉबिन्सन आर-44 हेलीकॉप्टर: बोमा पद्धति में रॉबिन्सन आर-44 सिंगल इंजन लाइट वेट हेलीकॉप्टर का उपयोग किया जाता है। यह हेलीकॉप्टर 200 किमी प्रति घंटा की स्पीड से उड़ सकता है और 500 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकता है।
6. प्रकृति के लिए लाभकारी: इस प्रक्रिया का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें वन्य जीवों को किसी भी तरह के शारीरिक नुकसान का सामना नहीं करना पड़ता, और यह पूरी प्रक्रिया उनके लिए तनावमुक्त रहती है।
7. अंतर्राष्ट्रीय उपयोग: अफ्रीका में भी इस तकनीक का सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है। दक्षिण अफ्रीका की टीम ने इस तकनीक से हजारों वन्यजीवों का ट्रांसलोकेशन किया है, जिससे उनकी आबादी में सुधार हुआ है।
8. किसी भी प्रकार की चोट से बचाव: बोमा पद्धति का मुख्य उद्देश्य यह है कि जानवरों को बिना किसी चोट या हानि के पकड़कर एक सुरक्षित स्थान पर ले जाया जाए। यह पद्धति पूरी तरह से मानवतावादी है।
9. लक्ष्य और उद्देश्य: इस तकनीक का मुख्य उद्देश्य वन्यजीवों के आवास और फसल क्षेत्रों में संतुलन बनाए रखना है। इस प्रक्रिया से कृषि क्षेत्रों को नुकसान होने से बचाया जा सकता है, जो वन्यजीवों के कारण हो रहा था।
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अभियान का लक्ष्य और भविष्य
इस अभियान का कुल लक्ष्य 400 काले हिरण और 100 नीलगायों को पकड़ने का रखा गया है। इस अभियान में पश्चिम मध्य प्रदेश के विभिन्न स्थानों को चिन्हित किया गया है, जहां हिरणों और नीलगायों के कारण कृषि फसलों को भारी नुकसान हो रहा है। किसानों के लिए यह अभियान राहत लेकर आ सकता है, क्योंकि इससे फसल के नुकसान में कमी आने की संभावना है।
फसल नुकसान को रोकने में महत्वपूर्ण
इस अभियान को कालापीपल विधायक घनश्याम चंद्रवंशी ने गंभीरता से लिया और इसे कृषि नुकसान को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना। 10 स्थानों को चिन्हित किया गया है, जिनमें उमरसिंगी, खड़ी रोड, इमलीखेड़ा, और अरनियाकलां जैसे गांव शामिल हैं।
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किसानों को मिलेगा लाभ
काले हिरण और नीलगायों के कारण किसानों को गेहूं, चना, मसूर, और प्याज जैसी फसलों को नुकसान उठाना पड़ता है। यह अभियान किसानों के लिए राहत का कारण बनेगा, क्योंकि इससे इन वन्यजीवों के प्रभाव को कम किया जाएगा।
अभियान का सारांश
मुद्दा | विवरण |
---|---|
अभियान की शुरुआत | 15 अक्टूबर 2025, पांच नवंबर तक चलेगा |
हिरणों का लक्ष्य | 79 मृग अब तक पकड़े गए, 400 हिरणों पकड़ने का लक्ष्य |
नीलगाय का लक्ष्य | 100 नीलगाय पकड़ने का लक्ष्य |
तकनीकी दिक्कत | हेलीकॉप्टर में तकनीकी खराबी आई, दूसरा हेलीकॉप्टर बुलाया गया |
स्थान | इमलीखेड़ा, अरनियाकलां और अन्य गांव |