मध्य प्रदेश सुगम परिवहन सेवा की राह मुश्किल, बड़े बस आपरेटर्स ने किया किनारा

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री सुगम परिवहन सेवा की राह कठिन दिख रही है । बड़े बस आपरेटर्स के सेवा से किनारा करने से एमपीपीटीआईसी अब नगर वाहन सेवा से शुरुआत की तैयारी में है ।

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Ravi Awasthi
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BHOPAL.मुख्यमंत्री सुगम परिवहन सेवा की राह फिलहाल आसान नहीं दिख रही। प्रदेश के बड़े बस आपरेटर्स ने इस महत्वाकांक्षी योजना से दूरी बना ली है। इसके चलते नवगठित मध्यप्रदेश यात्री परिवहन एंड इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी (MPPTIC) अब नगर वाहन सेवा से इसकी शुरुआत करने की तैयारी में है।

सूत्रों के मुताबिक, प्रदेश में 600 से अधिक बड़े बस ऑपरेटर्स हैं, जिनके पास 30 या उससे अधिक यात्री बसें हैं। योजना की मूल अवधारणा इन्हीं निजी बसों पर आधारित है, जो फिलहाल एमपीपीटीआईसी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई हैं। कंपनी के अधिकारी इन्हें मनाने की कोशिशों में जुटे हैं, लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली है।

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निजी ऑपरेटर्स को ‘सरकारीकरण’ का डर

निजी बसों के सरकारी दायरे में आने को लेकर कंपनी ने अभी स्पष्ट नीति नहीं बताई है। यही वजह है कि बड़े ऑपरेटर्स ने फिलहाल इससे दूरी बना रखी है। वर्तमान में केवल वही छोटे ऑपरेटर्स जुड़े हैं जिनके पास 5 या उससे कम बसें हैं और जो महानगरों में नगर वाहन सेवा चला रहे हैं।

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सिंहस्थ बड़ा लक्ष्य, मालवा से होगी शुरुआत

बड़े और लंबी दूरी के रूट ऑपरेटर्स के न जुड़ने के कारण कंपनी फिलहाल इंदौर और उज्जैन रीजन से शुरुआत करने की योजना बना रही है। 2028 में उज्जैन में प्रस्तावित सिंहस्थ से पहले नई परिवहन व्यवस्था को पटरी पर लाना कंपनी का मुख्य लक्ष्य है।

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प्रदेशभर में सात रीजन, भोपाल में मुख्य नियंत्रण केंद्र

पूरे प्रदेश को सात रीजन -भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, रीवा, सागर और उज्जैन में बांटा गया है। प्रत्येक रीजन में कमांड सेंटर स्थापित होंगे, जबकि राज्य स्तरीय कंट्रोल सेंटर भोपाल के गोविंदपुरा स्थित पुराने मेट्रो सिटी कार्यालय में रहेगा। यहीं से बसों की निगरानी और संचालन नियंत्रण होगा।

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100 करोड़ से शुरुआत, बसों पर GPS अनिवार्य

एमपीपीटीआईसी शुरुआती चरण में मात्र 100 करोड़ रुपये की लागत से अपना संचालन शुरू करेगी। इसमें बस निगरानी प्रणाली और संचालन खर्च शामिल हैं। कंपनी से जुड़ने वाली बसों में जीपीएस लगाना अनिवार्य होगा। सभी अनुबंधित बसें परिवहन अधिनियम के मानकों पर खरी उतरनी होंगी।

रॉयल्टी बनी टकराव की जड़

कंपनी अनुबंधित बसों को तय रूट का परमिट देगी और बदले में उनसे रॉयल्टी लेगी। इसी शर्त को लेकर बस मालिक नाराज हैं।
मप्र प्राइम रूट बस ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष गोविंद शर्मा कहते हैं-“बस हमारी, खर्च हमारा और रॉयल्टी भी हमें ही देनी है -तो फायदा किसका? ”
उनका कहना है कि अस्पष्ट शर्तों और नियंत्रण की नीति के कारण किसी भी बड़े ऑपरेटर ने अब तक कंपनी से अनुबंध नहीं किया है।

एक हजार से अधिक बसें गैराज में 

मप्र प्राइम रूट बस आनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष गोविंद शर्मा कहते हैं-एक हजार से अधिक बसें गैराज में खड़ी हैं।अस्थायी परमिट(टी पी)नहीं मिलने से इनका संचालन बंद है। वह कहते हैं-अस्थायी परमिट आवेदन के लिए भी 15 सौ रुपए शुल्क जमा कराया जाता है,लेकिन न तो आवेदन खारिज किया जा रहा है,न ही टी पी दिया जा रहा है। परिवहन विभाग का इस तरह का रवैया है तो बस मालिक कंपनी को क्यों सहयोग करेंगे?

बिजली कंपनियों का हश्र क्या हुआ ?

इधर,लगभग बंद हो चुके मप्र सड़क परिवहन निगम कर्मचारी संघ के अध्यक्ष श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में पांच कंपनियां बनाकर विद्युत मंडल को बांट दिया गया। इन कंपनियों का हश्र क्या है ?सभी घाटे में हैं।

शर्मा  ने कहा-उन्होंने तो सुझाव दिया था कि सपनि के ही पुराने कर्मचारियों को साथ लेकर कंपनी को शुरू किया जाए। निगम में केंद्र का 29.5 प्रतिशत है। इसे केंद्र की अनुमति के​ बिना बंद नहीं किया जा सकता। इसके चलते अब तक निगम को बंद करने की अधिसूचना जारी नहीं हो सकी।

सरकार का रुख सख्त, लेकिन बातचीत जारी

परिवहन सचिव मनीष सिंह का कहना है-“बसों का संचालन कंपनी की शर्तों पर ही होगा। जो अनुबंध नहीं करेंगे, उन्हें सिर्फ उन्हीं रूटों के परमिट मिलेंगे जहाँ कंपनी की बसें नहीं चलेंगी।”

हालां​कि इस बारे में अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। कंपनी सभी पहलुओं पर विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि फिलहाल विभाग पहले चरण में बड़े शहरों और आसपास के छोटे रूटों से सेवा की शुरुआत की तैयारी कर रहा है।

जबलपुर रीवा सरकार निगम दिग्विजय सिंह
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