सायरन का उपयोग विश्व युद्धों के दौरान हवाई हमलों की चेतावनी देने के लिए शुरू हुआ। 1937 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी में लगभग 11,000 सायरन बजाए जाते थे। भारत में 1962 के चीन युद्ध और 1965, 1971 के भारत-पाक युद्धों के दौरान सायरन का उपयोग नागरिकों को सतर्क करने के लिए किया गया।
भोपाल में 54 साल पुराना सायरन सिस्टम
भोपाल में वर्तमान सायरन सिस्टम 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान स्थापित किया गया था। हाल ही में हुई मॉकड्रिल में पाया गया कि इसकी आवाज़ शहर के सभी हिस्सों तक नहीं पहुंच पा रही है, जिससे प्रशासन ने इसे बदलने का निर्णय लिया है।
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नया सायरन सिस्टम: आधुनिक तकनीक से लैस
नया सायरन सिस्टम शहर के प्रमुख स्थानों और बाजारों में स्थापित किया जाएगा। इसे कंट्रोल एंड कमांड सेंटर से जोड़ा जाएगा, जिससे आपातकालीन स्थिति में एक सेकंड में ही लोगों को सूचना मिल सकेगी। इससे प्रतिक्रिया समय में कमी आएगी और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
नागरिकों के लिए जागरूकता अभियान
प्रशासन ने निर्णय लिया है कि स्कूलों और कॉलेजों में सायरन सिस्टम की जानकारी दी जाएगी। मॉकड्रिल के दौरान कई जगहों पर लोगों ने लाइट बंद नहीं की थीं, इस बारे में भी लोगों को सतर्क किया जाएगा।
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आपातकालीन स्थिति में प्रतिक्रिया में तेजी
इस प्रकार, भोपाल में 54 साल पुराने सायरन सिस्टम को बदलने की तैयारी नागरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। नया सायरन सिस्टम आधुनिक तकनीक से लैस होगा, जिससे आपातकालीन स्थिति में तेजी से प्रतिक्रिया संभव होगी।
1971 भारत-पाक युद्ध | खतरा