मप्र में ओबीसी पर सुप्रीम कोर्ट में पेश स्टडी रिपोर्ट में बताया, बड़ी जाति वाले आते हैं तो खड़ा होना पड़ता है

मप्र में ओबीसी आरक्षण विवाद सुर्खियों में है। राज्य सरकार की स्टडी रिपोर्ट बताती है कि ओबीसी केवल जाति‑समुदाय तक सीमित नहीं, इसमें ईसाई व इस्लाम धर्म के लोग भी शामिल है। वहीं मामले की सुनवाई नवंबर के दूसरे हफ्ते में होगी।

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Sanjay Gupta
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INDORE. मध्यप्रदेश की राजनीति के सबसे बड़े मुद्दे 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट पर सभी की नजरें हैं। नवंबर माह के दूसरे सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट इसे लेकर सुनवाई करेगा। वहीं मप्र शासन ने 15 हजार पन्नों में दो बड़ी स्टडी रिपोर्ट की थी। इनके कई पन्ने धीरे-धीरे बाहर आ रहे हैं।

इससे पहले द सूत्र ने इसे लेकर कई जानकारियां दी थीं। अब ताजा जानकारी ओबीसी की एमपी में सामाजिक व अन्य हालातों को लेकर है, जो खुद शासन के जरिए पेश स्टडी रिपोर्ट में बताई गई है।

10 नवंबर को ही लिस्ट होने की उम्मीद है

मप्र में ओबीसी मतदाता 43.38 फीसदी

मप्र में ओबीसी आरक्षण क्यों इतना बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना है? इसे लेकर मतदाताओं पर आधारित स्टडी रिपोर्ट ही अपने आप में खुलासा कर रही है। मप्र में ओबीसी मतदाता की संख्या 43.38 फीसदी बताई गई है।

सबसे ज्यादा ओबीसी मतदाता बालाघाट में 68 फीसदी हैं। वहीं, सबसे कम ओबीसी आदिवासी जिले आलीराजपुर में केवल 4 फीसदी हैं। साथ ही धार, बड़वानी भी कम ओबीसी वाले जिले हैं। वहीं, इंदौर में 30 फीसदी और भोपाल में 33 फीसदी ओबीसी मतदाता हैं।

स्टडी रिपोर्ट में लिखा, ओबीसी में ईसाई और मुस्लिम भी

स्टडी रिपोर्ट के हवाले से इसमें बताया गया है कि ओबीसी जाति व समुदाय से बंधा नहीं है, जैसे कि एसटी और एससी आरक्षण है। ओबीसी में ईसाई और इस्लाम धर्म मानने वाले भी हैं।

पंजीकृत बेरोजगारों में इतने हैं ओबीसी 

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 31 अक्टूबर 2021 की स्थिति में मप्र में पंजीकृत बेरोजगारों की कुल संख्या 24.95 लाख है। इसमें पुरुष 16.34 लाख यानी 65.87 फीसदी और महिलाएं 8.51 लाख यानी 35 फीसदी हैं। इसमें ओबीसी बेरोजगार पुरुषों की संख्या 6.50 लाख और ओबीसी बेरोजगार महिलाओं की संख्या 3.48 लाख है।

शासन के पास योजनाओं के लिए धन की कमी

स्टडी रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि ओबीसी महिला साक्षरता के लिए काम करने की जरूरत है। इसके लिए छात्रवृत्ति, कन्या साक्षरता प्रोत्साहन योजना, कन्या आश्रम शालाएं जरूरी हैं। लेकिन, धन की कमी के कारण सरकार ये योजनाएं संचालित करने में असमर्थ हो रही हैं।

रिपोर्ट में है कि ओबीसी योजनाओं के लिए धन की कमी

लाड़ली बहना योजना में 50 फीसदी आरक्षण हो

स्टडी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस वर्ग में महिलाओं की स्थिति खराब है। इन्हें शारीरिक श्रम, मजदूरी जैसे कार्य करने होते हैं। इसके लिए जरूरी है कि लाड़ली बेटी, लाड़ली बहना जैसी योजनाओं में इस वर्ग को 50 फीसदी आरक्षण दिया जाए।

लाड़ली बहना जैसी योजना में भी आरक्षण की मांग

एमपी में ऐसे हैं सामाजिक हालात 

ओबीसी स्टडी रिपोर्ट में बताया गया है कि सर्वे में शामिल ओबीसी में से 36 फीसदी ने माना है कि उनके साथ जातिगत पेशे के कारण सामाजिक रूप से भेदभाव किया जाता है। साथ ही, उन्हें पिछड़ा माना जाता है।

सामाजिक भेदभाव

सर्वे में शामिल 57 फीसदी ओबीसी ने माना कि जब उच्च जाति के लोग उनके घर के सामने से गुजरते हैं तो वे चारपाई, खाट, तख्त पर नहीं बैठ सकते और उन्हें खड़ा होना पड़ता है। स्टडी ने माना कि उनके सामाजिक उत्थान के लिए विशेष प्रयास की जरूरत है।

ऊंच नीच का व्यवहार
छोटी जाति का मानना
उच्च जाति के लोग घर के सामने से निकले तो चारपाई पर नहीं बैठ सकते

पुजारी, मुखिया नहीं बन सकते ओबीसी वाले

स्टडी में बताया गया है कि सर्वे में शामिल 58 फीसदी ओबीसी मानते हैं कि उन्हें पुजारी, मुखिया, मंदिर/मठ का प्रमुख नहीं बनाया जाता है। साथ ही, 52 फीसदी मानते हैं कि उन्हें धार्मिक शिक्षण संस्थानों में प्रवेश नहीं दिया जाता है।

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मंदिर का पुजारी प्रमुख ना बनाना
चाहते हैं निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण

कच्चा खाना, पानी भी नहीं पीते

सर्वे में पाया गया कि 53 फीसदी ओबीसी लोगों ने माना कि उच्च जाति के लोग उनके साथ कच्चा खाना नहीं खाते हैं। वहीं, 38 फीसदी ने माना कि उच्च जाति के लोग उनके साथ पानी भी नहीं पीते हैं। साथ ही, 51 फीसदी लोग चाहते हैं कि निजी शिक्षण संस्थानों में भी आरक्षण दिया जाए।

उच्च जाति के साथ में खाने पर रोक
उच्च जाति के साथ पानी पीनेपर रोक

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