BHOPAL. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के पिता पूनमचंद यादव नहीं रहे। सौ वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। पिछले कुछ दिनों से उनकी तबीयत नासाज थी। उन्हें इलाज के लिए उज्जैन के अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां 3 सितंबर की शाम उन्होंने अपनी देह त्याग दी।
भजिए-चाय की दुकान चलाते थे पूनमचंद
पूनमचंद यादव अपनी सादगी के लिए जाने जाते थे। उनका शुरुआत जीवन संघर्षों के बीच बीता। वे मिल में काम करते थे। यहां शिफ्ट पूरी करके अपने भाई शंकरलाल यादव के साथ मालीपुरा क्षेत्र में भजिए, चाय की दुकान चलाते थे। मोहन यादव भी अपने पिता और चाचा के काम में उनका हाथ बंटाते थे। परिवार की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं होने के बावजूद भी पूनमचंद यादव ने अपने बेटे मोहन यादव और बेटियों को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही वजह है कि आज उनका पूरा परिवार उच्च शिक्षित है।
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अच्छा लग रहा है...
पूनमचंद यादव की सादगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब उनसे पूछा गया कि मोहन अब मुख्यमंत्री बन गए हैं, कैसा लग रहा है? इसके जवाब में उन्होंने इतना भर कहा था कि अच्छा लग रहा है। महाकाल का आशीर्वाद उन पर बना रहे।
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मूल रूप से रतलाम के रहने वाले
दरअसल, सीएम डॉ. मोहन यादव का परिवार मूलत: उज्जैन का नहीं है। वे रतलाम के रहने वाले थे। बाद में उज्जैन आ गए। पूनमचंद यादव उज्जैन की हीरा मिल में नौकरी करते थे। यहां उनकी वेतन ज्यादा नहीं थी। लिहाजा, उन्होंने अपने भाई के साथ चाय, नाश्ता की दुकान खोल ली थी।
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शरीर साधना सिखाई
पूनमचंद यादव ने अपने बच्चों को शरीर साधना भी सिखाई। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव स्वयं कई मंचों से यह बात कह चुके हैं कि उनके पारिवारिक संस्कारों में शरीर साधना भी थी। ये संस्कार उन्हें अपने पिता से ही विरासत में मिले। यही वजह है कि उन्होंने शतायु होकर अपनी देह त्यागी।