ज्यादातर निजी यूनिवर्सिटी फैकल्टी ही नहीं, पढ़ाई-परीक्षा में भी मनमानी

मध्य प्रदेश में नर्सिंग घोटाले को लोग अभी तक भूले नहीं हैं। सीबीआई जांच की जद में रह चुके इस घोटाले ने सरकार को भी हिला दिया था। बावजूद इसके प्रदेश में शिक्षण संस्थानों पर कसावट नहीं की गई है।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. मध्य प्रदेश में नर्सिंग घोटाले को लोग अभी तक भूले नहीं हैं। सीबीआई जांच की जद में रह चुके इस घोटाले ने सरकार को भी हिला दिया था। बावजूद इसके प्रदेश में शिक्षण संस्थानों पर कसावट नहीं की गई है। इसी वजह से प्रदेश में यूजीसी के मानदंडों को अनदेखा कर खुले निजी यूनिवर्सिटी का गड़बड़झाला सामने आ सकता है। बीते एक दशक में प्रदेश में निजी यूनिवर्सिटी को थोकबंद अनुमतियां दी गई हैं। इनमें से ज्यादातर यूजीसी, उच्च शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालय विनियामक आयोग की गाइडलाइन भी पूरा नहीं करते। अब खबर है कि इनमें से कुछ निजी यूनिवर्सिटी में कुलपति की नियुक्ति से लेकर यूजी पीजी और पीएचडी की डिग्रियां बांटने का खेल चल रहा है। इसके कारण उच्च शिक्षा की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। सामने आ रही शिकायतों को देखते हुए यूजीसी यानी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग कार्रवाई की तैयारी कर रहा है। 

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एक दशक में निजी यूनिवर्सिटी की बाढ़ 

मध्य प्रदेश में फिलहाल 53 निजी विश्वविद्यालय हैं। इनमें से अकेले भोपाल और इंदौर में ही दो दर्जन प्राइवेट यूनिवर्सिटीज हैं। इनमें से कुछ तो नामी गिरानी और वैश्विक स्तरीय सुविधाओं से संपन्न हैं तो ज्यादातर यूजीसी और उच्च शिक्षा विभाग के मानदंडों को पूरा नहीं कर पा रही हैं। इन निजी विश्वविद्यालय का संचालन किसी साधारण कॉलेज जैसा ही है। यानी ये संस्थान केवल दस्तावेजों पर ही विश्वविद्यालय हैं और जमीनी हकीकत कॉलेज की तरह है। 

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यूजीसी ने पत्र लिखकर दी सलाह 

प्रदेश में निजी यूनिवर्सिटी द्वारा गाइडलाइन की अनदेखी करने पर हाल ही में यूजीसी ने उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में निजी विश्वविद्यालय की निगरानी का अधिकार प्रदेश सरकार के पास होने का हवाला दिया गया है। यूजीसी ने निजी यूनिवर्सिटी द्वारा नियमों के उल्लंघन की जांच और कार्रवाई की अनुशंसा भी की है। नियम विरुद्ध चल रहे निजी विश्वविद्यालय पर सख्ती और कसावट की सलाह भी यूजीसी ने दी है। 

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दावों के अनुरूप सुविधाएं नहीं 

यूजीसी को लगातार प्रदेश के निजी विश्वविद्यालय में प्रवेश, पाठ्यक्रमों के संचालन से लेकर दिखावे की परीक्षाएं और रिजल्ट की शिकायतें मिल रही हैं। शिकायतें उन छात्रों की ओर से की गई हैं जिनमें एडमिशन के बदले तगड़ी फीस वसूली गई। अब इन छात्रों को प्रबंधन के दावों के मुताबिक सुविधाएं नहीं मिल रहीं। ज्यादातर निजी यूनिवर्सिटी में कक्षाएं खाली पड़ी रहती हैं क्योंकि पढ़ाने के लिए फैकल्टी ही नहीं हैं। ज्यादातर फैकल्टी केवल फाइलों में ही दिखती है। 

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डिग्री के लिए फीस वसूली 

जो शिकायतें यूजीसी तक पहुंची हैं उनके निजी विश्वविद्यालय में फीस वसूली के बाद कक्षाओं में पढ़ाई कराए बिना परीक्षा ली जा रही है। जो छात्र ज्यादा रुपया चुकाने में सक्षम हैं उन्हें सीधे ही स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री मिल जाती है। यही नहीं शोध छात्रों से भी रुपए लेकर उनके प्रोजेक्ट पूरे कराते हुए पीएचडी की डिग्रियां दे दी जाती हैं। ज्यादातर शोधार्थी पीएचडी की डिग्री हासिल करने की योग्यता भी नहीं रखते हैं। इस वजह से मेहनती छात्र पिछड़ रहे हैं। 

कमजोर मॉनिटरिंग पर चिंता 

यूजीसी को शिकायत करने वाले छात्र रवि परमार का कहना है निजी विश्वविद्यालय में प्रबंधन की मनमानी चलती है। प्रदेशभर में एजेंट सक्रिय हैं जो छात्रों को भ्रामक करने वाले आश्वासन और लुभावनी बातों के जाल में फंसाकर एडमिशन के लिए तैयार करते हैं। छात्रों से मोटी फीस ली जाती है। ऐसी ही कई शिकायतें छात्रों ने अपने नाम से भी की हैं। जिसके बाद यूजीसी ने मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव के नाम पत्र भेजा है। इस पत्र में निजी यूनिवर्सिटी की शिकायतों का उल्लेख किया गया है। साथ ही ऐसी निजी यूनिवर्सिटी पर सख्ती के निर्देश भी दिए गए हैं। यूजीसी ने प्रदेश सरकार के अधिकार क्षेत्र में संचालित इन निजी विश्वविद्यालय की  नियमित निगरानी नहीं करने पर भी चिंता जताई है।  

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