रायसेन गेहूं घोटाले की फाइल दबी धूल में, एसडीएम ने कलेक्टर के आदेश को ठेंगा दिखाया

मध्य प्रदेश प्रशासनिक तंत्र में भ्रष्टाचार चरम पर है। रायसेन गोदाम से सैकड़ों क्विंटल गेहूं की हेराफेरी इसकी बानगी है। इसमें कलेक्टर के आदेश को भी हवा में उड़ा दिया गया।

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Ravi Awasthi
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विकास सोनी, रायसेन/भोपाल

मध्य प्रदेश के  प्रशासनिक तंत्र में भ्रष्टाचार अब धृष्टता के साथ हो रहा है। रायसेन जिला मुख्यालय की सरकारी गोदाम से तीन सौ क्विंं​टल से अधिक गेहूं की हेराफेरी इसकी बानगी है। मामला उजागर होने पर तत्कालीन कलेक्टर अरविंद दुबे ने एसडीएम मुकेश सिंह  की अध्यक्षता में 5 सदस्यीय जांच समिति बनाकर 3 दिन में रिपोर्ट तलब की थी,लेकिन समिति ने कलेक्टर के आदेश की भी परवाह नहीं की। आलम यह कि 3 दिन क्या,13 महीने गुजरने के बाद भी जांच अधूरी है। 

वाकया बीते साल का है। रायसेन जिला मुख्यालय की सरकारी गोदाम से बड़े पैमाने पर गेहूं गायब होने की शिकायत पर तत्कालीन कलेक्टर अरविंद दुबे ने 5 सदस्यीय जांच समिति गठित की। 5 जुलाई 2024 को बनी इस समिति का अध्यक्ष जिला मुख्यालय के एसडीएम मुकेश सिंह को बनाया गया। इनके अलावा सहकारिता उपायुक्त छविकांत बाघमारे,जिला आपूर्ति अधिकारी राजू कातुलकर,कनिष्ठ आपूर्ति अधिकारी संदीप भार्गव व सहकारिता निरीक्षक आर के पारे को सदस्य बनाया गया।

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3 दिन में सौंपनी थी रिपोर्ट,अब तक इंतजार

प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन कलेक्टर ने समिति को तीन दिन में अपनी रिपोर्ट देने को कहा। इसी बीच,कलेक्टर दुबे को जिले से हटा दिया गया। उनके हटते ही एसडीएम ने भी जांच में लेतलाली शुरू कर दी। बताया जाता है कि मामले की जांच के लिए समिति के पांचों सदस्य जिला मुख्यालय में होते हुए कभी एक साथ नहीं बैठे।

नतीजतन,इसे आधार बनाकर जांच को लगातार खींचा जाता रहा। आलम यह,कि 15 दिन पहले स्थानांतरित एसडीएम सिंह मंगलवार को रिलीव होने तक जांच रिपोर्ट समिट नहीं कर सके। समिति के एक अन्य सदस्य संदीप भार्गव का भी हाल ही में तबादला हुआ है। 

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जांच अटकाने में एसडीएम की भूमिका संदिग्ध

बताया जाता है कि जांच को लगातार लंबा खींचा जाता रहा है। इसके लिए कई आधारहीन तर्क दिए गए। यहां तक कि समिति सदस्यों को जांच से जुड़े तथ्य जुटाने न तो जरूरी दिशा-निर्देश गए, न ही इनकी संयुक्त बैठक बुलाई गई। समिति अध्यक्ष के इस ठंडे रुख के चलते घोटाले की जांच अपने अंजाम तक नहीं पहुंच सकी। 

अध्यक्ष मुकेश सिंह समेत दो लोगों के तबादले के बाद अब समिति भी खत्म हो चुकी है। ऐसे में जिला प्रशासन यदि जांच को आगे बढ़ाने की इच्छा शक्ति रखता है तो उसे नए सिरे से समिति गठित करनी होगी।

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सात माह तक हुई सैकड़ों क्विंटल गेहूं की हेराफेरी

सूत्रों के मुताबिक,सैंकड़ों क्विंटल गेहूं चोरी के इस मामले को सं​गठित गिरोह की तर्ज पर अंजाम दिया गया। इसमें जिला प्रशासन के अलावा,सहकारिता,वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन व नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारी,कर्मचारियों की मिलीभगत रही।

दरअसल,गोदाम से गेहूं की निकासी,फर्जी ​बिलिंग,बिलों को पोर्टल से डिलिट किया जाना,रिकॉर्ड में हेराफेरी ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों तरीके से हुई। सिर्फ जनवरी 2024 में ही 321 क्विंटल और जुलाई में 118 क्विंंटल गेहूं गोदाम से गायब हुआ। बीच के महीनों में भी हर माह इसी तरह की हेराफेरी हुई। 

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इस तरह दिया गया घोटाले को अंजाम

दरअसल,गेहूं का वजन वक्त के साथ 1 से 2 प्रतिशत तक स्वभाविक तौर पर बढ़ता है। अर्थात एक हजार क्विंटल गेहूं की मात्रा में 10 से 20 क्विंटल की बढ़ोत्तरी होती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने भी तय किया है कि बढ़े हुए वजन की मात्रा को भी रिकॉर्ड में शामिल किया जाए।

रायसेन जिला गेहूं की बंपर पैदावार के लिए जाना जाता है। रबी सीजन में अकेले इसी जिले में लाखों क्विंटल गेहूं की खरीदी और इसे गोदामों में रखने का काम होता है। सरकारी रिकॉर्ड में इसी बढ़े हुए वजन के सैंकड़ों क्विंंटल गेहूं को गायब कर इस घोटाले को अंजाम दिया गया। 

लगातार टालमटोल करते रहे एसडीएम

'द सूत्र' ने इस मामले को गत 28 अप्रैल को उजागर किया था। इसके बाद जांच की प्रगति को लेकर कई बार एसडीएम मुकेश सिंह से संपर्क साधा गया,लेकिन जांच अधूरी रहने को लेकर हर बार उन्होंने अलग-अलग तर्क दिए। कभी समिति के सभी सदस्यों के एक साथ नहीं जुट पाने की बात कही तो कभी आरोपियों से और दस्तावेज जुटाने की।

यहां तक कि अपने नए दायित्व के लिए जिले से ​एक दिन पहले रिलीव होने पर भी उनसे संपर्क साधा गया तो वह जांच प्रतिवेदन को लेकर लगातार टालमटोल करते रहे।

बता दें,कि करीब एक पखवाड़े पहले मुकेश सिंह को जिले से हटाकर स्वास्थ्य विभाग में पदस्थ किया  गया  है,लेकिन वह मैदानी पदस्थापना छोड़ने को राजी नहीं थे। तब सरकार को उन्हें कार्यमुक्त होने व नया दायित्व जल्द संभालने की चेतावनी देनी पड़ी।