World Environment Day : देश में घट रहे जंगल और सूखते जलस्त्रोत दे रहे खतरे का संकेत, जानिए कैसे

भारत में जंगलों की तेजी से घटती संख्या और सूखते जलस्त्रोत न केवल पर्यावरणीय असंतुलन पैदा कर रहे हैं, बल्कि भविष्य में बड़ी चुनौतियां खड़ी कर रहे हैं। पेड़ो की अन्धाधुंध कटाई, आगजनी और शहरीकरण ने जंगलों को खत्म कर दिया है।

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Reena Sharma Vijayvargiya
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World Environment Day : भारत में जंगल तेजी से घट रहे हैं और जलस्रोत सूख रहे हैं, जिससे न सिर्फ़ पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी खतरे की घंटी बज रही है। पेड़ो की अंधाधुंध कटाई, आगजनी और बढ़ता शहरीकरण जंगलों के लिए बड़ी चुनौतियां बन गए हैं। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन और जल प्रदूषण से पानी की कमी और भी बढ़ रही है, जो देश के लिए एक गंभीर समस्या बन चुकी है।

जंगलों की हालत- हर साल गायब हो रहे हजारों हेक्टेयर

  • सिर्फ 2024 में ही भारत ने 18,000 हेक्टेयर जंगल खो दिए।
  • 2001 से 2024 तक 2.31 मिलियन हेक्टेयर ट्री कवर नष्ट हुआ

ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक :-

  • भारत के कुल क्षेत्रफल का केवल 25त्न हिस्सा ही जंगल या वृक्ष आच्छादन में है।
  • 2021 के बाद से अब तक केवल 150 वर्ग किमी जंगल ही बढ़ा है।

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जंगल नष्ट होने के प्रमुख कारण-

  • अनियंत्रित पेड़ कटाई
  • जंगल की आग
  • शहरीकरण और औद्योगिक विस्तार
  • कमजोर वन संरक्षण नीतियां

समाधान- मियावाकी जैसी नई तकनीक से हरियाली बढ़ाएं

मियावाक तकनीक में एक वर्ग मीटर में 4 से 5 स्थानीय पौधे लगाए जाते हैं, जो कम समय में घना जंगल बनाते हैं। यह पद्धति कम भूमि और समय में बेहतर परिणाम देती है। सरकार और समाज को मिलकर वृक्षारोपण अभियानों को गति देनी होगी।

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जल संकट- 2030 तक ताजे पानी की मांग आपूर्ति से 40% अधिक

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार-

  • भारत की नदियों और झीलों में केवल 30% सतही जल ही उपयोग योग्य है।
  • दुनियाभर में 1900 से अब तक 20% जल स्त्रोत सूख चुके हैं।
  • भारत में हर साल 470 से 600 करोड़ रुपये जलजनित बीमारियों पर खर्च होते हैं।
  • 4 लाख से ज्यादा लोग हर साल अस्वच्छ जल से जुड़ी बीमारियों से मरते हैं।

हल्का गंदा पानी बन सकता है समाधान

एक औसत भारतीय परिवार प्रति व्यक्ति रोज 90 लीटर ग्रे वॉटर बर्बाद करता है। यह पानी शौचालय फ्लश, बगीचे की सिंचाई और फर्श धोने जैसे कामों में इस्तेमाल हो सकता है। इससे ताजे पानी की जरूरत में 10-20त्न की कमी संभव है। भारत हर साल 47.67 अरब घन मीटर गंदा पानी उत्पन्न करता है, जिसमें से बहुत कम हिस्सा रीयूज़ होता है।

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आने वाले संकट- जीडीपी पर भी दिखेगा असर

ग्लोबल कमीशन ऑन इकोनॉमिक्स ऑफ वॉटर के अनुसार, अगर जंगलों की कटाई और जलवायु परिवर्तन ऐसे ही चलता रहा तो भारत की जीडीपी को 2050 तक बड़ा नुकसान हो सकता है। 25 करोड़ लोग जंगलों पर जीविका के लिए निर्भर हैं, जिनका जीवन खतरे में आ जाएगा।

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क्या करें?

  • स्थानीय पौधों से मियावाकी विधि अपनाएं
  • रेन वॉटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य बनाएं
  • ग्रे वॉटर रिसायक्लिंग की तकनीक अपनाएं
  • वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए ष्टस्क्र  प्रोग्राम्स का उपयोग करें
  • बच्चों को स्कूलों में जल और जंगल संरक्षण की शिक्षा दें

समाधान

भारत में जंगल और पानी दोनों की स्थिति चिंताजनक है। यदि हम आज ठोस कदम नहीं उठाते, तो भविष्य में यह संकट जीवन का अस्तित्व संकट बन जाएगा। लेकिन यदि हम सामूहिक प्रयास करें – नए तकनीकों से वृक्षारोपण करें, पानी का पुन: उपयोग बढ़ाएं और प्रकृति के साथ तालमेल बैठाएं तो आने वाली पीढिय़ों को एक सुरक्षित और समृद्ध भारत दिया जा सकता है।

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