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मध्यप्रदेश में सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम का हाल खुद पारदर्शिता पर सवाल खड़ा कर रहा है। जिस राज्य सूचना आयोग को आम लोगों को समय पर न्याय और जानकारी दिलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वही आयोग अपनी खस्ताहाल व्यवस्था के कारण लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर रहा है। 20 हजार से अधिक मामले वर्षों से लंबित पड़े हैं। आवेदक अपनी दूसरी अपीलों के निस्तारण के लिए सालों इंतजार कर रहे हैं। इसी गंभीर स्थिति को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गई हैं।
अधूरी जानकारी और पोर्टल की आधी-अधूरी व्यवस्था
लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन की ओर से अधिवक्ता विशाल बघेल इस मामले में पैरवी कर रहे हैं। याचिकाओं में सबसे पहले आरटीआई अधिनियम की धारा 4 का मुद्दा उठाया गया है। कानून कहता है कि सभी विभागों को अपनी जानकारी स्वतः सार्वजनिक करनी चाहिए, लेकिन मध्यप्रदेश में अधिकांश विभागों ने यह जिम्मेदारी पूरी नहीं की। वहीं राज्य का ऑनलाइन पोर्टल भी जनता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा है। पोर्टल भले ही बनाया गया हो, लेकिन सभी विभागों तक आवेदन की सुविधा नहीं दी गई। परिणामस्वरूप, आम नागरिक को साधारण सूचना पाने के लिए भी दर-दर भटकना पड़ रहा है।
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10 पद और सिर्फ 4 सूचना आयुक्त पदस्थ
सबसे चिंताजनक स्थिति राज्य सूचना आयोग की है। यहां 10 सूचना आयुक्तों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन महज 4 ही कार्यरत हैं। वह भी तब जब हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया और सरकार को कदम उठाने पड़े। आयोग की यह स्थिति सीधे जनता को प्रभावित कर रही है।
विशाल बघेल ने बताया कि नियम कहते हैं कि दूसरी अपील का निराकरण 180 दिनों के भीतर होना चाहिए, लेकिन वास्तविकता यह है कि हजारों मामले 3-4 सालों से धूल खा रहे हैं। और जिस रफ्तार से सूचना आयोग चल रहा है, उस तरह अभी के लंबित मामलों को ही निपटाने में उन्हें कम से कम 7 साल लग जाएंगे।
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एमप में 20 हजार से ज्यादा मामले लंबित
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अब हाईकोर्ट से ही राहत की उम्मीद
याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट से मांग की है कि आयोग में सभी स्वीकृत पदों को तत्काल भरा जाए और लंबित मामलों के निपटारे की ठोस व्यवस्था बनाई जाए। हाईकोर्ट की आगामी सुनवाई को लेकर लोगों को उम्मीद है कि न्यायालय पारदर्शिता और जवाबदेही की इस बुनियादी व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सख्त आदेश देगा।