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सूरज की पहली किरण जब किसी शहर की सड़कों को छूती है तो उस शहर की रफ्तार का पहला संकेत अक्सर गाड़ियों की आवाज होती है, पर मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल के कुछ इलाकों में यह सुबह एक साइकिल की सादगी भरी घंटी से होती है और इस घंटी के पीछे होता है एक नाम, जो जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना चाहता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश कैडर के आईएएस अफसर संदीप जीआर की। लोग अब उन्हें प्यार से साइकिल वाला अधिकारी के नाम से पुकारते हैं।
धूप हो या बारिश, संदीप की साइकिल अक्सर निकलती है। कोई तामझाम नहीं, कोई लाव-लश्कर नहीं, न शोर, न दिखावा। सादगी से भरे कपड़े, चेहरे पर स्थिर मुस्कान और आंखों में सेवा का जुनून, उनकी मौजूदगी सुकून देती है। वे गलियों से गुजरते हैं तो लोग सवाल नहीं करते, समाधान बताते हैं। अफसर से पहले वे एक साथी की तरह लगते हैं और शायद यही उनकी सबसे ताकत है।
कर्नाटक के बेंगलुरु में जन्मे संदीप जीआर के पिता पुलिस सेवा में रहे। घर में अनुशासन और दिल में कुछ कर गुजरने की लगन...यही उनकी परवरिश की पहचान थी। कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग करने के बाद संदीप ने प्रशासन में एमए किया, क्योंकि उनकी मंजिल कोई कॉर्पोरेट टॉवर नहीं, बल्कि वो गलियां थीं, जहां व्यवस्था की सबसे ज्यादा जरूरत थी।
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पहले आईआरएस में चुने गए
उन्होंने पहले भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में सफलता पाई, लेकिन कागजों के ढेर और फाइलों की दुनिया उन्हें रास नहीं आई। उन्हें अहसास हुआ कि असली सेवा वो है, जहां लोगों के चेहरे से चिंता की लकीर मिटाई जा सके। इसलिए दोबारा सिविल सेवा की परीक्षा दी और इस बार सीधे भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में अपना नाम दर्ज किया।
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गलियों की खामोशी को सुना
संदीप जीआर का काम करने का अंदाज उन्हें बाकियों से अलग बनाता है। अफसर होकर भी वे लोगों से कटे नहीं हैं, बल्कि उन्हीं के बीच रहते हैं। अपनी साइकिल पर वे गलियों में घूमते हैं, बच्चों के स्कूलों में जाते हैं, आंगनबाड़ियों की रसोई की भाप में झांकते हैं और किसानों की बात छांव में बैठकर सुनते हैं। वे जब रुकते हैं, तो कोई VIP ड्रेसकोड नहीं होता।
इस बारे में संदीप कहते हैं, दो दुनिया हैं। एक ऑफिस में और दूसरी बाहर सड़कों पर। हमारा मकसद यह देखना है कि हम जो सेवाएं प्रदान कर रहे हैं, वह आम जनता तक पहुंच रही हैं या नहीं। अगर हम कार से चलेंगे, तो यह समझ पाने में परेशानी होगी।
साइकिल पर यात्रा करने से मुझे जीवन की वास्तविकताओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है और साथ ही इलाके की जमीनी हकीकत का भी पता चलता है। वह कहते हैं, ऑल इंडिया सर्विस में होने के कारण हमें नई-नई जगहों पर पोस्टिंग मिलती है। ऐसे में इन जगहों को समझने के लिए पैदल या साइकिल से चलना बेहद जरूरी है।
सपने जो रंगीन रोटी में ढल गए
संदीप जीआर का पोषण सुधार अभियान ‘संकल्प’ अब सिर्फ सरकारी योजना नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आंदोलन बन चुका है। आंगनबाड़ी की रसोई में जब महिलाएं बुंदेली गीत गाते हुए चुकंदर, पालक और मुनगा से रंगीन रोटियां बनाती हैं, तो वहां सिर्फ खाना नहीं बनता, एक बेहतर पीढ़ी गढ़ी जाती है। स्कूलों में शनिवार को ‘तिरंगा थाली’ अब बच्चों के लिए रंग और स्वाद दोनों का त्योहार होती है। उसमें पोषण छिपा होता है और एक अफसर का दृष्टिकोण झलकता है।
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फलों के जंगल: फूड सेफ्टी की स्वदेशी अवधारणा
संदीप जीआर की सोच प्रशासनिक दायरों से कहीं आगे जाती है। वे फूड सेफ्टी के लिए फलों के जंगल की अवधारणा लेकर आए हैं। उनका मानना है, हम राशन बांट सकते हैं, लेकिन यदि हर शहर में ऐसे पेड़ हों जो गरीबों को सीधे फल दें, तो यह आत्मनिर्भर खाद्य सुरक्षा का सबसे प्रभावी मॉडल बन सकता है।
इसी सोच के साथ जबलपुर में अक्टूबर 2021 में उन्होंने 30,000 से अधिक फलदार पेड़ जैसे केला, आम, नींबू, कटहल, शहतूत लगवाए। आज वे पेड़ फल देने लगे हैं। यह मॉडल स्थानीय, सस्टेनेबल और डिग्निटी-प्रोवाइडिंग फूड सिस्टम की नींव रखता है।
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कर्तव्य, अनुशासन और नर्म दिल की अद्भुत मिसाल
कभी अगर योजनाओं के अमल में कोताही मिलती है, तो वही संदीप जीआर सख्त प्रशासक बनते हैं। राजस्व महाअभियान के दौरान जब फील्ड से लापरवाही की खबर आई, तो उन्होंने चार पटवारियों को निलंबित कर दिया, तीन एसडीएमओ को नोटिस थमाया और आठ शिक्षकों को नियमों के तहत सस्पेंड किया। उनका संदेश साफ है कि सेवा अगर नीति बन जाए, तो प्रशासन खुद जनता की आवाज बन जाता है। अगर लापरवाही आए, तो जवाबदेही तय होगी।
प्रोफाइल पर एक नजर
नाम: संदीप जीआर
जन्म दिनांक: 14-12-1983
जन्म स्थान: बेंगलुरु (कर्नाटक)
एजुकेशन: B.E. (Computer. Science), M.A. (Public Admn.)
बैच: RR; 2013 (मध्यप्रदेश)
पदस्थापना
24 मई 2025 की स्थिति में संदीप जीआर सागर कलेक्टर हैं। इससे पहले वे बतौर कलेक्टर छतरपुर जिले की कमान भी संभाल चुके हैं। उनकी सबसे पहली पोस्टिंग जबलपुर में सहायक कलेक्टर के तौर पर हुई थी। उसके बाद जबलपुर नगर निगम आयुक्त, सतना नगर निगम आयुक्त, उज्जैन जिला पंचायत सीईओ और महू एसडीम के पद पर भी सेवाएं दीं। अब सागर में अपने काम के चलते वे कलेक्टर न्यायालय को राजस्व प्रकरण निराकरण में प्रदेश में पहला स्थान दिला चुके हैं। यही नहीं, सागर जिले में ई आफिस सिस्टम लागू कराने में भी उनकी अहम भूमिका रही।
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