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सुधीर नायक
उधर नेपाल में माननीय मंत्रीगण पिट गये इधर भोपाल में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने में आयीं। जो जीवन में कभी मंत्री नहीं बन पाये वे खुश हुए। जैसे हमारे भैयाजी को अच्छा लगा। भैयाजी वर्षों बाद खुश दिखे। बोले देखो ठीक रहा न जो अपन मंत्री नहीं बने। देखा कैसे दौड़ा-दौड़ाकर मारा लड़कों ने।
वे सबसे यही कहते हैं कि वे मंत्री खुद ही नहीं बने। आलाकमान तो पीछे पड़ा हुआ था। पर मैंने हाथ जोड़ लिए। वैसे सबको मालूम है कि मंत्री पद के लिए उन्होंने क्या-क्या नहीं किया? एड़ी-चोटी का जोर लगाया। सजीव-निर्जीव सारी भेंटें अर्पित की। दुष्कर्म से लेकर धर्म तक कोई उपाय नहीं छोड़ा।
थक-हारकर बैठ गए
पुराने लोग बताते हैं कि दतिया और दिल्ली तो उनके लिए ऐसे हो गये थे जैसे हम लोगों के लिए टॉप एन टाउन। जैसे हम लोग कभी भी टहलते हुए टॉप एन टाउन चले जाते हैं वैसे वे वाया दतिया दिल्ली निकल जाते थे।
रात में दतिया में अनुष्ठान और सुबह दिल्ली प्रस्थान। पर पीतांबरा माई ने नहीं सुनी तो नहीं सुनी। मंत्री में नंबर नहीं लगा तो दर्ज़ा पर भी राज़ी थे। उस समय कहते थे कि दर्ज़ा में कोई हर्जा नहीं है। मंत्री दर्जा ही मिल जाये। दर्जा के चक्कर में कर्ज़ा तक कर बैठे थे। आखिर थक-हारकर बैठ गये।
आजकल मंत्री पद की बुराइयां बताकर दिन काटते हैं। वर्षों बाद अब नेपाल की पिटाई ने जख़्मों पर मरहम लगायी है। सफल आदमी मुसीबत में फंस जाये तो असफलों को आराम मिलता है। जलन शांत होती है। बोले-थोड़ी कसर यही रही कि इधर नहीं हुआ। पर चलो कहीं भी हुआ। हुआ तो। शुरुआत तो हुई।
कक्काजी का रिएक्शन
कक्काजी का रिएक्शन अलग है। वे टेंशन में दिखे। अगले फेरबदल में उनको एडजस्ट करने की बात चल रही है। वे इन दिनों खुश चल रहे थे। लंबा खेल करने की प्लानिंग कर रहे थे। ताज़ा पिटाई ने उनकी खुशी पर पानी फेर दिया।
एक वीडियो में नेपाली लड़के हवा में नोट उड़ाते दिखे। उन्हें उस सीन ने ज्यादा डराया। उन पर अपने नोट बचाने की चिंता सवार हो गयी है। किसी से कह रहे थे कि ये लोग जैन हैं और हिंसा करते हैं। इनके मुनि महाराज इन्हें क्यों नहीं रोकते?
लोगों ने उन्हें समझाया है कि ये लोग जैन जी नहीं हैं, ज़ेन-जी हैं। मन में डर बैठ गया है। आजकल वे लड़कों से घबराते हैं। 20-22 साल का कोई भी लड़का दिखता है तो वे गेट लगाने को बोल देते हैं।
गोयल साब निश्चिंत हैं
लेकिन गोयल साब निश्चिंत हैं। वे सबसे यही कह रहे हैं कि तुम नहीं समझते यह भारत देश है। सुना नहीं तुमने? यूनान-मिस्र-रोमा सब मिट गए जहां से। बात कुछ ऐसी है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। यहां कुछ नहीं होगा। वे लोग बेवकूफ थे। उनसे कुछ करते नहीं बना। इतना कमाकर बैठे थे।
अरे, कुछ फ्री में बांट देते। रेवड़ी फेंक दो तो गुलाबजामुन बच जाता है। साले, इतने मक्खीचूस कि रेवड़ी भी नहीं बांट सके। लड़कों को फोड़ लेते। लड़कों को लड़वा देते। अगड़ा-पिछड़ा-बिचड़ा कोई दांव फेंक देते। जात-पात कुछ वहां भी तो होती होगी।
मुद्दा उछाल देते। कुछ नहीं होता। बिल्कुल फिसड्डी निकले वहां के नेता। कुछ नहीं हुआ उनसे। कसम से हम होते वहां तो ये लड़के जो देश देश चिल्ला रहे हैं कैश कैश चिल्ला रहे होते।
सुनो भाई साधो... इस व्यंग्य के लेखक मध्यप्रदेश के कर्मचारी नेता सुधीर नायक हैं |
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