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जबलपुर/दिल्ली। मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर जारी कानूनी और राजनीतिक जद्दोजहद अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की नियमित सुनवाई अब 24 सितंबर को होगी। पहले मिली जानकारी के अनुसार यह सुनवाई 23 सितंबर को तय थी, लेकिन अब यह साफ हो गया है कि इस सुनवाई को 24 सितंबर के लिए सूचीबद्ध किया गया है। यह सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की डिविजनल बेंच में जस्टिस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल चंदूरकर के समक्ष होगी।
मुख्यमंत्री सहित महाधिवक्ता कर चुके हैं बैठक
ओबीसी आरक्षण को लेकर सीएम मोहन यादव की अध्यक्षता में हुई उच्चस्तरीय बैठक के बाद, राज्य के महाधिवक्ता (Advocate General) ने भी लगातार दो बैठकें बुलाईं। इनमें सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से मजबूत पक्ष रखने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन (दक्षिण भारत के प्रमुख वकील) का नाम प्रस्तावित किया गया, ओबीसी महासभा के प्रवक्ताओं के अनुसार इस पर सहमति भी बन चुकी है।
मध्य प्रदेश सरकार ने तमिलनाडु के वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्य सभा सांसद पी. विल्सन तथा शशांक रतनू को ओबीसी प्रकरणों में ओबीसी का पक्ष रखने के लिए अधिकृत किया है। ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, वरुण ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह पक्ष रखेंगे।
सरकार चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान ओबीसी वर्ग के हितों का मजबूती से बचाव हो। हालांकि ओबीसी वर्ग के अधिवक्ताओं को अभी भी सरकार की नियत पर संशय है और अब सरकार का पक्ष सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान ही सामने आ पाएगा।
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24 सितंबर को तय है सुनवाई
24 सितंबर को होने वाली सुनवाई में रिट याचिका सिविल क्रमांक 606/2025, 735/2025 सहित इससे जुड़ी अन्य सभी याचिकाएं भी शामिल होंगी। यह मामला WP No. 18105/2021 (YOUTH FOR EQUALITY VS STATE OF MP) से जुड़ा हुआ है, जिसमें ओबीसी आरक्षण बढ़ाने और उसके क्रियान्वयन पर सवाल उठे थे।
ओबीसी आरक्षण विवाद की पृष्ठभूमि
1994 के संशोधित अधिनियम "मध्यप्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जनजातियां और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम" के तहत राज्य में आरक्षण व्यवस्था लागू है। साल 2021 में जब सरकार ने ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने का प्रयास किया तो इसे लेकर कानूनी चुनौतियां सामने आईं। इसके बाद से ही कई भर्ती परीक्षाओं में ओबीसी अभ्यर्थियों की नियुक्तियां या तो रोकी गईं या फिर अधर में लटकी रहीं।
ऑन-होल्ड नियुक्तियों पर विवाद
कई भर्तियों में ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र जारी नहीं किए गए। उदाहरण के तौर पर, प्राथमिक शिक्षक भर्ती में सभी राउंड की प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद केवल 14% अभ्यर्थियों को जॉइनिंग दी गई, जबकि 13% ओबीसी अभ्यर्थियों को "ऑन-होल्ड" कर दिया गया। इसी तरह पुलिस भर्ती, पटवारी परीक्षा, सब-इंजीनियर भर्ती और आबकारी कांस्टेबल भर्ती जैसे कई मामलों में भी ओबीसी आरक्षण को लेकर विवाद खड़ा हुआ।
ओबीसी वकीलों सहित संगठनों का है लगातार दबाव
Co-ordination Committee for OBC Advocates ने राज्य सरकार और महाधिवक्ता कार्यालय को पत्र लिखकर मांग की थी कि अदालत के अंतिम निर्णय तक ओबीसी वर्ग के अधिकार सुरक्षित रखे जाएं। समिति ने कहा है कि जिन भर्तियों को केवल प्रशासनिक कारणों से रोका गया है, उन्हें तुरंत "अन-होल्ड" कर नियुक्तियां दी जाएं। साथ ही सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार को मजबूती से पक्ष रखना चाहिए ताकि आरक्षण लागू करने की प्रक्रिया में कोई बाधा न आए।
अगली सुनवाई पर सबकी निगाहें
अब सभी की नजरें 24 सितंबर की सुनवाई पर टिकी हैं। यह सुनवाई केवल मध्यप्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में ओबीसी आरक्षण व्यवस्था के भविष्य को प्रभावित कर सकती है। यदि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के पक्ष में निर्णय दिया तो रुकी हुई नियुक्तियों का रास्ता साफ हो जाएगा, अन्यथा विवाद और गहरा सकता है।