JABALPUR. मध्य प्रदेश में बालाघाट जिले के एक सरकारी स्कूल में 13 वर्षों से शिक्षण कार्य कर रहीं एक वरिष्ठ शिक्षिका को अचानक 'सरप्लस' घोषित कर दिया गया यानी अब वे इस पद के लिए 'अवांछित' मानी गईं और उनका जबरन तबादला करने की कोशिश शुरू हो गई।
इस अन्याय के खिलाफ जब शिक्षिका ने जबलपुर हाईकोर्ट का रुख किया, तो कोर्ट ने इस पूरे मामले पर गहरी नाराजगी जताते हुए सरकार और संबंधित अधिकारियों से सख्त जवाब तलब किया है।
13 वर्षों से कार्यरत शिक्षिका को बताया ‘इनवैलिड’, फिर कर दिया गायब!
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, कुम्हारी (जिला बालाघाट) में जीवविज्ञान विषय पढ़ा रही शिक्षिका अनुसुइया सोनवे वर्ष 2012 से पूरे मनोयोग से शिक्षण कार्य में जुटी थीं। लेकिन सितंबर 2024 में अचानक एक दिन शिक्षा विभाग के पोर्टल पर उनकी ID ‘इनवैलिड’ दिखने लगी। इसका मतलब था कि तकनीकी रूप से वे अब उस स्कूल में पदस्थ ही नहीं हैं।
इस गंभीर त्रुटि के बाद उन्होंने संबंधित अधिकारियों संकुल प्राचार्य, जिला शिक्षा अधिकारी और लोक शिक्षण संचनालय, भोपाल को कई बार आवेदन देकर यह त्रुटि सुधारने की अपील की। अधिकारियों ने आश्वासन जरूर दिया, लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी न तो ID सुधारी गई और न ही तकनीकी गड़बड़ी दूर हुई।
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पोर्टल पर पद को दिखा दिया ‘रिक्त’, और कर दी दूसरे की नियुक्ति!
ID ‘इनवैलिड’ होने का सीधा असर ये हुआ कि एजुकेशन पोर्टल पर स्कूल में जीवविज्ञान विषय का पद रिक्त दिखने लगा। जब पोर्टल पर कोई पद खाली दिखता है, तो उस पर स्थानांतरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
इसी का फायदा उठाकर अक्टूबर 2024 में दूसरी शिक्षिका लोकेश्वरी चंद्रवार को उसी पद पर स्थानांतरित कर दिया गया। जबकि असलियत में पद खाली था ही नहीं, क्योंकि वहां शिक्षिका अनुसुइया सोनवे पहले से कार्यरत थीं।
DEO ने जताया विरोध, फिर भी नई टीचर की कराई गई ज्वाइन
जब यह मामला जिला शिक्षा अधिकारी, बालाघाट के संज्ञान में आया, तो उन्होंने भोपाल स्थित लोक शिक्षण संचनालय को पत्र लिखकर साफ कहा कि कुम्हारी स्कूल में जीवविज्ञान का पद पहले से भरा हुआ है, और पोर्टल में दिख रही रिक्ति तकनीकी गड़बड़ी का नतीजा है।
उन्होंने यह भी बताया कि एक ही स्वीकृत पद पर दो शिक्षकों का वेतन नहीं निकाला जा सकता। बावजूद इसके, संचनालय ने अपने आदेश में कोई संशोधन नहीं किया, बल्कि जिला स्तर के अधिकारियों पर दबाव बनाकर नई शिक्षिका को उसी पद पर ज्वाइन करवा दिया।
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पहले से पढ़ा रही शिक्षिका को ‘सरप्लस’ घोषित कर दिया ट्रांसफर का अल्टीमेटम
नई शिक्षिका के ज्वॉइन करने के बाद शिक्षिका अनुसुइया सोनवे को पोर्टल पर 'सरप्लस' घोषित कर दिया गया। मतलब यह कि अब विभाग की नजर में वे उस पद के लिए अनावश्यक हैं और उन्हें दूसरी जगह भेजा जाएगा।
मई 2025 में उनके पोर्टल पर एक संदेश दिखने लगा कि "आप सरप्लस घोषित किए जा चुके हैं, 16 मई तक स्थानांतरण के लिए विकल्प दें, अन्यथा आपका स्थानांतरण जबरन कर दिया जाएगा।" एक वरिष्ठ शिक्षिका के साथ किया गया यह व्यवहार न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि अपमानजनक भी है।
जब पद खाली नहीं था तो नई नियुक्ति क्यों की गई? - HC
इस पूरी घटना से आहत होकर अनुसुइया सोनवे ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मामले की सुनवाई जस्टिस श्री द्वारकाधीश बंसल की एकल पीठ में 15 मई 2025 को हुई। कोर्ट ने शिक्षा विभाग के कामकाज पर तीखी टिप्पणी करते हुए सरकार से सवाल पूछा कि जब पद पर पहले से एक शिक्षक नियुक्त था और वह कार्यरत था, तो फिर उसी पद पर दूसरी नियुक्ति किस आधार पर कर दी गई? यह सीधा-सीधा नियमों का उल्लंघन है।
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प्रमुख सचिव से लेकर संचनालय के आयुक्त तक को नोटिस
कोर्ट ने शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव, लोक शिक्षण संचनालय के आयुक्त, जिला शिक्षा अधिकारी बालाघाट, स्कूल प्राचार्य और स्थानांतरित होकर आई शिक्षिका लोकेश्वरी चंद्रवार सभी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस पूरे मामले में साठगांठ की आशंका नजर आ रही है, और यह जांच का विषय है कि क्या चहेते लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए यह सब किया गया।
शिक्षिका पर जबरन विकल्प चुनने बनाया दबाव
शिक्षिका के वकीलों अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह, पुष्पेन्द्र कुमार शाह और रूप सिंह मरावी ने कोर्ट को बताया कि शिक्षिका पर मानसिक दबाव बनाया जा रहा है कि वे नई जगह खुद से चुन लें, वरना उन्हें जबरन स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
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कोर्ट ने इस पर भी नाराजगी जताई और कहा कि यदि स्थानांतरण आदेश आता है तो उस पर रोक लगाई जा सकती है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जब तक मामला कोर्ट में है, तब तक विभाग को कोई जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। अब इस मामले की अगली सुनवाई 30 जून को तय की गई है।