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BHOPAL. महिलाओं के लिए लाड़ली लक्ष्मी और लाड़ली बहना जैसे योजनाएं चलाने वाली मध्य प्रदेश सरकार को राज्य महिला आयोग की सुध ही नहीं है। आयोग सवा पांच साल से सुस्त पड़ा है। यहां तीन साल से अध्यक्ष की नियुक्ति हुई है और न सदस्य हैं। इस वजह से पीड़ित, प्रताड़ित, असहाय और लाचार महिलाएं अपनी फरियाद लेकर भटक रही हैं।
ऐसी महिलाएं पुलिस और प्रशासन की लापरवाही का शिकार होकर आए दिन राजधानी स्थित महिला आयोग पहुंच रही हैं। हालांकि अध्यक्ष और सदस्य न होने से उन्हें यहां से भी हताश लौटना पड़ता है। ऐसे में सवाल है कि सरकार राज्य महिला आयोग जैसी संवैधानिक संस्था में नियुक्ति की अनदेखी क्यों कर रही है?
मध्य प्रदेश में महिला अपराधों में बाढ़ आई हुई है। महिलाएं आपराधिक मामलों ही नहीं पारिवारिक और सामाजिक समस्याओं से ज्यादा घिरी हैं। महिला अत्याचार की स्थिति मध्य प्रदेश विधानसभा में पेश किए गए आंकड़ों से भी उजागर हो रही है। प्रदेश में 21 हजार से ज्यादा महिला, युवती और बालिकाएं लापता हैं।
10 हजार से ज्यादा दुष्कर्म के मामले पुलिस ने दर्ज किए हैं। इसके अलावा हर महीने 150 से 200 मामले यानी हर साल 1800 से 2000 केस घरेलू हिंसा और उत्पीड़न से पुलिस, महिला आयोग और मानव अधिकार आयोग तक पहुंचते हैं। इसके बावजूद सरकार महिलाओं की सुनवाई करने वाली संस्था मध्य प्रदेश महिला आयोग में नियुक्तियां करना भूल गई है।
राजनीतिक पेंच में अटकी नियुक्ति
राज्य महिला आयोग जून 2022 के बाद से बिना अध्यक्ष के चल रहा है। मार्च 2020 में तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने आयोग का अध्यक्ष बनाया था। कुछ दिन बाद ही नाथ की सरकार गिर गई और उनके बाद बनी शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने यह नियुक्ति रद्द कर दी थी।
हालांकि इस निर्णय पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी लेकिन सरकार के असहयोग के चलते जून 2022 में ओझा ने आयोग अध्यक्ष का पद छोड़ दिया था। तब से ही इस पद पर कोई नियुक्ति नहीं की गई है। सीएम डॉ.मोहन यादव की सरकार भी अध्यक्ष की नियुक्ति भूल गई है। आयोग में अध्यक्ष की नियुक्ति के मामले पर महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री निर्मला भूरिया आश्वासन दे चुकी हैं लेकिन अब भी अध्यक्ष की कुर्सी खाली है।
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यह है महिला आयोग का दायित्व
भोपाल में राज्य महिला आयोग का कार्यालय है। आयोग महिलाओं के कल्याण, सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। इसके अलावा महिलाओं के शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए आयोग कार्यक्रमों का संचालन करता है।
आयोग में महिलाएं सीधे तौर पर अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है और आयोग इस पर संज्ञान लेकर पुलिस और प्रशासन को निर्देशित कर कार्रवाई सुनिश्चित करता है। इस वजह से महिलाओं को आयोग से अपनी सुनवाई की आस रहती है। अब जबकि आयोग में अध्यक्ष ही नहीं है तो महिलाएं अपनी शिकायत लेकर आती हैं और निराश लौटती हैं।
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शिकायतों में 5वे नंबर पर मप्र
राष्ट्रीय महिला आयोग की साल 2024 में आई रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं की शिकायतों में मध्य प्रदेश देश का पांचवां राज्य है। इस मामले में उत्तर प्रदेश पहले, दिल्ली दूसरे, महाराष्ट्र तीसरे, बिहार चौथे स्थान पर है। उत्तर प्रदेश में 2023-24 में 15 हजार से ज्यादा आयोग में शिकायतें दर्ज की गई थीं। वहीं दिल्ली से 2387, महाराष्ट्र में 1445, बिहार में 1271 और मध्य प्रदेश में 1148 शिकायतें दर्ज हुई थीं।
वहीं महिला आयोग के राज्य कार्यालय पहुंच रही 10 से ज्यादा महिलाओं को निराश लौटना पड़ रहा है। यानी हर साल करीब 3600 महिलाओं की अनसुनी हो रही है। साल 2018 से 2020 के बीच राजनीतिक उठापटक के कारण आयोग की बेंच लगना बंद हुई थी जो अब तक शुरू नहीं हो सकी है। वहीं प्रदेश में बीते पांच साल में आयोग में 24 हजार से ज्यादा शिकायतें फाइलों में ही सिमट कर रह गईं हैं।
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