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BHOPAL. मध्य प्रदेश के 17 हजार से ज्यादा सरकारी स्कूलों में छात्र-छात्राएं मूलभूत सुविधाओं से मोहताज हैं। समग्र शिक्षा अभियान के तहत केंद्रीय बजट और मध्यप्रदेश सरकार द्वारा करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी स्कूलों में अब भी टॉयलेट भी नहीं हैं। जिन स्कूलों में टायलेट हैं वहां भी अधिकांश दिनों में तालाबंदी रहती है।
इस वजह से मध्य प्रदेश के स्कूली छात्र यूटीआई (यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन ) जैसे गंभीर रोगों की चपेट में आ रहे हैं। यह खुलासा केंद्र सरकार द्वारा कराए गए यूडीआईएसई सर्वे (UDISE Survey) की रिपोर्ट से हुआ है। यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एज्युकेशन प्लस सर्वेक्षण में स्कूलों में जरूरी सुविधाओं की कमी पर गहरी चिंता जताई गई है।
योजनाएं आकर्षक, सुविधा नहीं
मध्य प्रदेश में 1.22 लाख प्राथमिक, माध्यमिक, हाई और हायर सेकेण्डरी स्कूल हैं। इनमें ज्यादातर स्कूल सरकारी हैं तो कुछ सरकार के अनुदान पर संचालित हैं। कक्षा एक से 12वीं तक के इन स्कूलों में डेढ़ करोड़ छात्र- छात्राएं पढ़ते हैं। सरकार प्रवेश बढ़ाने के लिए तो छात्रवृत्ति, मध्याह्न भोजन जैसी कई योजनाएं चला रही है लेकिन स्कूलों में मौलिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।
यूडीआईएसई सर्वे में प्रदेश में 17 हजार से ज्यादा सरकारी और अनुदान संचालित स्कूलों में टॉयलेट की कमी पाई गई है। कहीं टायलेट क्षतिग्रस्त हैं तो कहीं पर बंद रहते हैं। इस वजह से विद्यार्थी खुले में जाने से कतराते हैं। सबसे ज्यादा दिक्कत छात्राओं को है।
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टॉयलेट की कमी बना रही बीमार
सर्वे के दौरान प्रदेश के स्कूली छात्रों के स्वास्थ्य की पड़ताल भी की गई। टॉयलेट और पानी की उपलब्धता न होने वाले स्कूल के छात्र यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन जैसी बीमारी की गिरफ्त में ज्यादा पाए गए हैं। प्रदेश में 15,124 स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग शौचालय उपलब्ध नहीं हैं। इस वजह से छात्राएं शर्मनाक स्थिति से बचने टॉयलेट ही नहीं जातीं।
इसी तरह प्रदेश के 17 हजार से ज्यादा स्कूलों में टॉयलेट क्षतिग्रस्त होने या तालाबंदी के कारण खुले में जाने मजबूर हैं। इनमें से ज्यादातर झिझक और शर्म के कारण टॉयलेट जाने से कतराते हैं। टायलेट न जाना पड़े इस वजह से वे 5 घंटे की लंबी अवधि में पानी पीने से भी बचते हैं। इस वजह से उनमें यूरिनरी संक्रमण और बीमारी बढ़ रही है।
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पानी नहीं तो टॉयलेट में तालाबंदी
प्रदेश के सरकारी स्कूलों में टॉयलेट बने होने बावजूद ज्यादातर में तालाबंदी नजर आती है। इसके पीछे स्कूल प्रबंधन ने सफाईकर्मी और पानी की कमी को वजह बताया है। मध्य प्रदेश में सात हजार से ज्यादा स्कूल ऐसे हैं जहां पानी की कमी के कारण हाथ धोने का भी इंतजाम नहीं है।
वहीं 76 हजार से ज्यादा स्कूल पेय जल के लिए अपने या नजदीकी हैंडपंपों पर निर्भर हैं। जबकि 1800 स्कूल की व्यवस्थाओं के साथ ही शिक्षक और बच्चों के लिए पेय जल कुओं से उपलब्ध होता है। प्रदेश के 93 हजार स्कूलों में दिव्यांग छात्र- छात्राओं के लिए अलग से टॉयलेट ही नहीं हैं। वहीं केवल 42 हजार स्कूलों में ही दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए रैंप और रेलिंग का इंतजाम है।
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टॉयलेट रोकने से संक्रमण का खतरा
स्वास्थ्य विभाग के पूर्व चिकित्सा अधिकारी डॉ.एसएस भार्गव का कहना है पानी पीते रहना और टॉयलेट जाना सामान्य प्रक्रिया है। स्कूलों में संसाधन और सुविधाओं की कमी के कारण कई बच्चे टॉयलेट जाने से कतराते हैं। इस वजह से वे स्कूल में दौरान पानी नहीं पीते जिससे उन्हें टॉयलेट न जाना पड़े। निर्धारित समय के बाद टॉयलेट रोकने से यूरिनरी ब्लैडर के काम करने का तरीका प्रभावित होता है। इसके कारण यूटीआई जैसी बीमारी और संक्रमण का अंदेशा बढ़ जाता है। यूटीआई (यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन) की बीमारी यूरिनरी सिस्टम, गुर्दे, यूरेटर, यूरेथ्रा के संक्रमण से संबंधित है जो ई.कोलाई बैक्टीरिया के कारण होता है। यह बीमारी छात्राओं और महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करती है।
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सरकारी स्कूलों में ये भी कमी
- सवा लाख स्कूलों में से 14910 में बिजली कनेक्शन नहीं
- केवल 66 हजार स्कूलों में ही है कम्प्यूटर और इंटरनेट
- 6200 से ज्यादा स्कूलों के पास नहीं अपना खेल मैदान
- पुस्तकालय की कमी झेल रहे हैं 2300 सरकारी स्कूल
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