राजस्व रिकॉर्ड और प्रशासन की अनदेखी कर रेलवे ने किया किसानों की जमीन पर कब्जा

मध्‍य प्रदेश शाजापुर जिले के सैकड़ों किसान रेलवे की तानाशाही का शिकार हैं। किसान जिस जमीन पर उपज लेकर घर चलाते हैं रेलवे ने उस पर कब्जा कर लिया है।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. शाजापुर जिले के सैकड़ों किसान रेलवे की तानाशाही का शिकार हैं। किसान जिस जमीन पर उपज लेकर घर चलाते हैं रेलवे ने उस पर कब्जा कर लिया है। बेरछा रेलवे स्टेशन के नजदीक रेलवे ने डाउन ट्रैक से सटे खेतों में सीमांकन कर अपनी सरहद के पिलर लगा दिए हैं।

रेलवे जिसे अपनी जमीन बता रहा है वह ग्वालियर स्टेट के दौर से अब तक राजस्व रिकॉर्ड में किसानों के नाम पर ही दर्ज है। रेलवे और किसानों के बीच जमीन के इस विवाद को लेकर प्रशासन और राजस्व विभाग तीन बार बैठक बुलाकर सुनवाई कर चुका है। नक्शे और दस्तावेजों का मिलान किया जा चुका है, लेकिन रेलवे के अधिकारियों की जिद के कारण समस्या का समाधान नहीं हो पाया है।

उधर रेलवे ने किसानों को अपनी सीमा में फेंसिंग या बाड़ लगाने पर कार्रवाई की चेतावनी भी दे डाली है। किसान अपनी ही जमीन पर रेलवे के कब्जे को हटवाने की गुहार लेकर मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक से लेकर कलेक्टर के चक्कर लगा रहे हैं।

सीएम, सांसद, कलेक्टर की अनसुनी

किसानों के सामने यह समस्या साल 2020 में खड़ी हुई जब रेलवे ने बेरछा स्टेशन के पास बर्डियासोन के खेतों में सरहदी पिलर खड़े करना शुरू किया। पहले तो किसान इसको सामान्य प्रक्रिया समझते रहे लेकिन सीमांकन की बात समझ आई तो विरोध शुरू हो गया।

किसानों ने रेलवे के अधिकारियों के सामने अपना पक्ष रखा और दस्तावेज दिखाए लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई। तब से लगातार अंचल के सैकड़ों किसान मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक के साथ ही राजस्व विभाग और प्रशासन के चक्कर लगा रहे हैं। रेलवे ने जिस जमीन पर सीमांकन किया है वह किसानों की है इसकी पुष्टि राजस्व रिकॉर्ड भी कर चुका है। 

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जिला प्रशासन के प्रयास विफल

फरवरी 2020 में नायब तहसीलदार की मौजूदगी में रेलवे द्वारा अपनी बताई जा रही जमीनों का पहली बार सीमांकन किया गया था। इसमें भी जमीन किसानों के नाम पर दर्ज पाई गई और अधिगृहण संबंधी कोई दस्तावेज सामने नहीं आया। रेलवे ने किसी किसान की जमीन पर 60 फीट गहराई में तो कहीं 25 से 30 फीट गहराई में पिलर गाढ़ रखे थे।

इसका प्रतिवेदन तब कलेक्टर को भी भेजा गया था, लेकिन रेलवे दस्तावेज दिखाए बिना ही अपनी बात पर अड़ा रहा। उसके कब्जा न छोड़ने पर राजस्व अधिकारियों ने रेलवे के सीनियर सेक्शन इंजीनियर से भी पत्राचार किया लेकिन कोई हल नहीं निकला। इसके बाद 2021 से लेकर कई बार प्रयास किए गए लेकिन रेलवे अफसर अपने नक्शे के आधार पर कब्जे पर अड़े हुए हैं। 

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मौके पर डबल लेन, मैप में सिंगल

रेलवे के अधिकारियों के पास न जमीन अपनी होने का कोई दस्तावेज है और न वे इस जमीन के अधिगृहण की कार्रवाई की जानकारी दे पा रहे हैं। वे केवल साल 1993 के एक नक्शे के आधार पर इसे अपनी बता रहे हैं। जबकि यह नक्शा भी त्रुटिपूर्ण है। साल 1993 में उज्जैन-भोपाल रेलवे ट्रैक का दोहरीकरण हो चुका था।

इसके लिए 1988 में  अप ट्रैक के नजदीक यानी दक्षिण दिशा में जमीन का अधिगृहण किया गया था। लेकिन रेलवे के इस नक्शे में ट्रैक सिंगल ही दर्शाया गया है। शाजापुर के राजस्व अधिकारी और कलेक्टर 2023 से मई 2025 के बीच तीन बार रेलवे के अधिकारियों की मौजूदगी में जनसुनवाई करा चुके हैं। हर बार जमीन किसानों की होने की पुष्टि होती आई है और जमीनों पर किसान ही काबिज हैं। 

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अफसरों की भूल छिपा रहा रेलवे 

बर्डियासोन के कृषक राधेश्याम पाटीदार, कमल सिंह गुर्जर, बद्रीलाल पाटीदार, आत्माराम, रामबाबू पाटीदार, बाबूलाल वर्मा, श्यामलाल सोनी का कहना है कि किसानों के पास ग्वालियर स्टेट के समय से लेकर वर्तमान मध्य प्रदेश का राजस्व रिकॉर्ड है। जमीन उनके पूर्वजों से होते हुए अब उनके नाम पर दर्ज है।

साल 1993 में उज्जैन- भोपाल रेलवे लाइन के दोहरीकरण के समय अप ट्रैक बिछाया गया था। जिसके दक्षिण में किसानों से जमीन ली गई थी। यहीं अधिकारियों से गलती हुई है। तबके नक्शे में अधिकारियों ने गलती से उत्तर की ओर के खेत दर्ज कर दिए हैं। रेलवे को अपने दस्तावेज, राजस्व रिकॉर्ड का मिलान करने के साथ ही तथ्यों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। किसी अधिकारी की गलती या भूल को छिपाने पूरा पश्चिम रेलवे रतलाम मंडल जुट जाए यह गलत है।  

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राजस्व रिकॉर्ड को भी नकार दिया 

प्रशासन जहां राजस्व रिकॉर्ड के आधार पर जमीनों को किसानों की बता चुका है वहीं रेलवे के अधिकारी केवल नक्शे के आधार पर इसे अपनी बता रहे हैं। कलेक्टर की मौजूदगी में अलग-अलग महीनों में हुई बैठकों में रतलाम रेल मंडल के आईआररएएसई महेन्द्र सिंह जाटव, सीनियर सेक्शन इंजीनियर पीडी पुष्कर, दिनेश कुमार मीणा, सत्यप्रकाश जैन केवल एक नक्शा ही दिखा पाए हैं।

यह नक्शा किस दस्तावेज के आधार पर अपडेट किया गया यह उनके रिकॉर्ड में ही नहीं है। यही नहीं वे किसानों की जमीन के अधिगृहण की कार्रवाई के दस्तावेज भी प्रस्तुत नहीं कर सके हैं। किसानों को भी सूचना के अधिकार के आवेदन के जरिए मांगे गए दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए हैं। 

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