करंट से वन्य प्राणियों की सबसे अधिक मौतें, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मांगी स्टेटस रिपोर्ट

मानव-वन्यजीव संघर्ष पर 24 नवंबर को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इसमें हाथियों को रेस्क्यू के नाम पर लंबी अवधि तक कैद रखने का सवाल उठाया गया। साथ ही बताया गया कि किसानों द्वारा हाई-वोल्टेज तार लगाने से वन्य प्राणियों की मौत हो रही है।

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Neel Tiwari
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Photograph: (thesootr)

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JABALPUR. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में मानव-वन्यजीव संघर्ष से जुड़ी जनहित याचिका की सुनवाई 24 नवंबर को हुई। यह सुनवाई बेहद अहम रही। इस याचिका में हाथियों को रेस्क्यू के नाम पर कैद में रखने का मुद्दा उठाया गया था। अब किसानों द्वारा हाई-वोल्टेज तार लगाने से वन्य प्राणियों की मौत होने का सवाल सामने आया है।

मुआवजे में देरी और करंट से मौतें

रेस्क्यू के बाद जंगली हाथियों को कैद में रखने के खिलाफ रायपुर के नितिन संघवी ने जनहित याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अंशुमान सिंह ने कोर्ट में अहम जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि मानव-वन्यजीव संघर्ष में फसलों और संपत्ति को भारी नुकसान हो रहा है। लेकिन, इसकी भरपाई की प्रक्रिया बेहद धीमी है।

मुआवजा पटवारी स्तर पर तय होता है। इसे सामान्य प्राकृतिक आपदा जैसा ही माना जाता है। भारी बारिश, सूखे जैसे मामलों की तरह ही इसका निपटारा किया जाता है। राहत मिलने में बहुत समय लगता है। आंकड़ों के अनुसार किसानों को सिर्फ 17% तक ही मुआवजा मिल पाता है।

इसी देरी और परेशानियों के कारण किसान अपने खेतों की सुरक्षा के लिए हाई टेंशन करंट वाले तार लगाने लगते हैं। इसके कारण मध्य प्रदेश में बड़ी संख्या में वन्य प्राणियों की मौत करंट लगने से हो रही है। याचिकाकर्ता पक्ष ने बताया कि प्रदेश में बाघों की मौत के मामलों में करंट एक बड़ा कारण है।

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दो जंगली हाथी कॉलर आईडी लगाकर छोड़े गए

पिछली सुनवाई में एक्सपर्ट कमेटी ने बताया था कि कान्हा में रखे गए जंगली हाथियों को 15 दिनों में छोड़ दिया जाएगा। उनके ट्रैकिंग के लिए रेडियो कॉलर आईडी मंगवाई गई। आज की सुनवाई में बताया गया कि दो हाथियों को कॉलर आईडी लगाकर जंगल में छोड़ दिया गया है।

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सुप्रीम कोर्ट 17 नवंबर को दे चुका है आदेश

अधिवक्ता ने हाईकोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 17 नवंबर 2025 को सभी राज्यों को निर्देश दिए थे। यह निर्देश टी.एन. गोदावर्मन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में दिए गए थे। उत्तर प्रदेश और केरल की तर्ज पर मानव-वन्यजीव संघर्ष को प्राकृतिक आपदा की श्रेणी में रखा जाए। ऐसे मामलों में मौत पर 10 लाख रुपए मुआवजा तय किया जाए। साथ ही 6 महीने के भीतर इस संबंध में विस्तृत नीति बनाई जाए।

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पटवारी नहीं, फॉरेस्ट विभाग संभाले मामले

याचिकाकर्ता ने सुझाव दिया कि फसल और संपत्ति के नुकसान का मामला वन विभाग संभाले। पटवारी के बजाय वन विभाग इसे देखें। त्वरित मुआवजा देने से किसान हाई-वोल्टेज तार लगाने से बचेंगे। इससे वन्यजीवों की मौत में कमी आएगी।

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4 हफ्तों में स्टेटस रिपोर्ट दे सरकार - HC 

जस्टिस संजीव सचदेवा की डिविजन बेंच ने मध्य प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के पालन में बनाई जा रही पॉलिसी की स्टेटस रिपोर्ट 4 हफ्तों में पेश करें। इसके साथ ही याचिकाकर्ता के सुझावों पर भी विचार किया जाए। अब इस मामले की अगली सुनवाई 5 जनवरी 2025 को होगी।

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