विभागों में वर्कफोर्स का संकट, नियुक्ति से ज्यादा सेवानिवृत्ति अटका रही काम

मध्‍य प्रदेश में सरकारी सिस्टम ओवरलोड है। नियमित कर्मचारी ही नहीं मुख्यालय स्तर पर भी अधिकारियों की कमी है। संविदा नियुक्ति की व्यवस्था का सहारा लेना पड़ रहा है। नियुक्ति धीमी है और सेवानिवृत्ति ज्यादा हो रही है।

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Sanjay Sharma
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Photograph: (the sootr)

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BHOPAL. एक तो पहले ही मध्यप्रदेश में सरकारी सिस्टम ओवरलोड है। नियमित कर्मचारी ही नहीं मुख्यालय स्तर पर भी अधिकारियों की कमी है। संविदा नियुक्ति की कामचलाऊ व्यवस्था का सहारा लेना पड़ रहा है। नियमित पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया अब भी धीमी है। वहीं नियमित पदों से अधिकारी-कर्मचारी तेजी से सेवानिवृत्त हो रहे हैं। निगम_मंडलों के हालत और भी खराब हैं। विभागों में वर्कफोर्स की कमी के कारण महत्वपूर्ण योजनाएं और जरूरी कामों के लिए भी लोग चक्कर काटने मजबूर हैं। सरकार अब भी नियुक्ति और सेवानिवृत्ति के बीच संतुलन नहीं बना पाई है। इसका सबसे ज्यादा असर विकासखंड और तहसील स्तर के सरकारी दफ्तरों में नजर आ रहा है। 
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विभागों में तीन लाख पद हैं खाली 

मध्यप्रदेश सरकार ने साल 2025 में एक लाख से ज्यादा पदों पर नियुक्ति की घोषणा की है। वहीं 2029 तक ढाई लाख पदों पर नियुक्तियों का दावा है,  लेकिन रिटायरमेंट और नियुक्ति में तालमेल बैठाए बिना व्यवस्था की बेहतरी मुमकिन नहीं है। विधानसभा में सरकार द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक विभिन्न विभागों सहित सरकार की सभी इकाइयों में करीब सवा 6 लाख नियमित पदों पर अधिकारी-कर्मचारी काम कर रहे हैं। जबकि स्वीकृत पदों की संख्या 9 लाख से ज्यादा है। ऐसे में प्रदेश में 3 लाख से अधिक पद खाली पड़े हैं। सीएम डॉ.मोहन यादव की घोषणा के बाद 55 हजार से ज्यादा पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है।

गड़बड़ाया आयु वर्ग का अनुपात 

प्रदेश सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में 45 साल से कम उम्र वाले कुल अधिकारी-कर्मचारियों की संख्या 3 लाख 7 हजार 315 है। वहीं 46 से 61 साल की उम्र के कर्मचारियों की संख्या 2 लाख 83 हजार 235 हैं। यानी दोनों आयु वर्ग में 52 : 48 का अनुपात है। जबकि दोनों आयु वर्गों में 60: 40 का अनुपात होना चाहिए। इसका मतलब ये है कि 46 से 61 वर्ष आयु वर्ग के 25 से 30 फीसदी यानी 80 हजार से एक लाख कर्मचारी अगले चार साल में सेवानिवृत्त हो जाएंगे।  

नियुक्ति-सेवानिवृत्ति में संतुलन की दरकार 

नियुक्ति और सेवानिवृत्ति के अनुपात को संतुलित रखने की जरूरत है क्योंकि इसके बिना व्यवस्था को सुधार पाना मुश्किल है। वर्कफोर्स की कमी से विभागों में सुस्ती का खामियाजा आमजन को उठाना पड़ रहा है। द सूत्र ने विभागों में कर्मचारियों की कमी से प्रभावित हो रहे काम और उससे आमजन को होने वाली दिक्कतों की पड़ताल की हैं। इससे कर्मचारियों की कमी से कामकाज प्रभावित होने की स्थिति को आसानी से समझा जा सकता है।  

रिक्त पदों की स्थिति 

विभागरिक्त पदों की संख्या
स्वास्थ्य विभाग22,845
पुलिस10,000
जेल विभाग863
श्रम विभाग845
वाणिज्यिक कर विभाग706
महिला-बाल विकास692
पर्यावरण विभाग567
सहकारिता विभाग606
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति400
एमएसएमई382
उद्यानिकी437
पर्यटन243

वर्कफोर्स की कमी का विभागों पर असर 

खाद्य एवं औषधि नियंत्रण 

प्रदेश में खाद्य एवं औषधि नियंत्रण विभाग का अमला सीएमएचओ के निर्देशन में काम करता है। प्रदेश के 55 जिलों के लिए 60 औषधि निरीक्षकों के पद स्वीकृत हैं। जबकि पोस्टिंग केवल 42 की है। ये पद करीब डेढ़ दशक पुराने हैं। अब प्रदेश में डेढ़ लाख से ज्यादा मेडिकल स्टोर, अस्पताल और बेहिसाब रेस्टोरेंट हैं। जिनकी जांच के लिए 42 ड्रग इंस्पेक्टर पर्याप्त नहीं हैं। विभाग की प्रयोगशाला में भी परीक्षण अधिकारियों की कमी है इसलिए सैंपलों की जांच रिपोर्ट आने में ही महीनों बीत जाते हैं। इस वजह से मिलावटी खाद्य सामग्री, अमानक दवाओं की बाजार में भरमार है जो लोगों को प्रभावित कर रही हैं। 

पीएचई विभाग

पीएचई यानी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग भी कर्मचारियों की कमी से जूझ रहा है। विभाग के मुख्यालय से लेकर मैदानी स्तर के कार्यालयों में भी कर्मचारियों की कमी है। विकासखंड और तहसील स्तर पर उपयंत्रियों के जिम्मे कार्यपालन यंत्री, अधीक्षण यंत्री का कार्यभार है। कार्यालयों में इक्का-दुक्का बाबूओं के अलावा सन्नाटे के हालात नजर आते हैं। वहीं कस्बे और गांवों में हैंडपम्प, ट्यूबवेल की  मरम्मत जैसे काम और उनकी निगरानी के लिए भी कर्मचारी नहीं है। इस वजह से गर्मियों में जलसंकटग्रस्त क्षेत्रों में अकसर महीनों तक जलस्त्रोत ठप्प पड़े रहते हैं और जनता कष्ट झेलती रहती है।

पीडब्लूडी विभाग 

लोक निर्माण विभाग में भी नियमित अधिकारियों-कर्मचारियों की कमी है। प्रदेश के 9 परिक्षेत्रों सहित 6 अन्य इकाइयों में मुख्य अभियंता का काम प्रभारियों को सौंपा गया है। जिले, विकासखंड और तहसील स्तर पर भी उपयंत्रियों के हिस्से में वरिष्ठ पदों का दोहरा-तिहरा दायित्व है। वहीं करोड़ों रुपए के निर्माण कार्यों की गुणवत्ता भगवानभरोसे हैं। इसी वजह से कुछ महीने पहले ही जबलपुर में 800 करोड़ की लागत से बने फ्लाईओवर में लोकार्पण के तुरंत बाद ही दरारें आ गई थीं। राजधानी स्थित जीजी फ्लाईओवर की गुणवत्ता पर भी सवाल उठ रहे हैं। 

वन विकास निगम 

वन विभाग निगम वनों के संरक्षण में विभाग का सहयोग करने वाली इकाई है, लेकिन विभाग की तरह इस निगम की हालत भी खराब है। निगम में 1235 पद स्वीकृत हैं जबकि केवल 508 ही कर्मचारी काम कर रहे हैं। निगम अंचल में समितियों के माध्यम से तेंदुपत्ता, वनोपज की खरीद-बिक्री का काम संभालता है। लेकिन कर्मचारियों की कमी के कारण वन विभाग की कई योजनाओं का क्रियान्वयन वन ग्रामों में पिछड़ रहा है। 

ऊर्जा विकास निगम 

ऊर्जा विभाग की यह इकाई प्रदेश में वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है।  मुख्यालय स्तर पर तो इकाई चकाचक है लेकिन सौर ऊर्जा जैसे वैकल्पक साधनों को आम जनता तक पहुंचाने के लिए मैदानी अमला बेहद कम है। इस वजह से अकसर लोग निगम की योजनाओं की जानकारी के लिए भटकते हैं या उन्हें बार-बार भोपाल आना पड़ता है।  

गृह (पुलिस) विभाग 

इस साल फिर से पुलिस में IPS अफसरों की कमी हो जाएगी। प्रदेश में अभी 79 आईपीएस अधिकारियों की कमी है जो साल के अंत तक 90 पहुंच जाएगी। इस साल 11 और आईपीएस अधिकारी रिटायर होने वाले हैं। डीजीपी कैलाश मकवाना भी इसी साल रिटायर होने वाले हैं। प्रदेश में कुल 319 स्वीकृत पदों के विरुद्ध 240 आईपीएस अफसर कार्यरत हैं। निरीक्षक और उपनिरीक्षकों के खाली पदों को नियुक्ति और पदोन्नति से भरे जाने का इंतजार है। आयोजनों की व्यवस्थाओं को संभालना हो या अपराध और विवादों की रोकथाम हो सब पुलिस के जिम्मे होता है, अमले की कमी से आमजन ही परेशान हैं।

स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा 

मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं में, विशेषकर संस्थानों में स्वीकृत पदों के मुकाबले, 22,845 स्वास्थ्य कर्मियों की कमी है। डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, लैब टैक्नीशियन की इस कमी से 55 जिला अस्पताल,  348 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 11 हजार पीएचसी, मिनी पीएचसी और अन्य स्वास्थ्य केंद्रों की व्यवस्था प्रभावित है। उप प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में तो डॉक्टर ही तैनात नहीं है। वहीं नर्सिंग स्टाफ भी दो-दो केंद्रों में सेवाएं दे रहे हैं। इसलिए ये केंद्र सप्ताह में एक या दो दिन ही खुलते हैं। वहीं डॉक्टरों की कमी से सीएचसी में अब भी प्रसव, ह्दयरोग, सोनोग्राफी, ब्लड बैंक जैसे स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।  

निगम मंडलों में भी कमी 

निगम मंडल
एमपी एग्रो
मप्र लघु उद्योग निगम
पर्टयन विकास निगम
लघु उद्योग निगम
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