अंता उपचुनाव : काम नहीं आया वसुंधरा का जलवा, सरकार रही कमजोर, संगठन भी रोक नहीं पाया दगाबाजी

राजस्थान के अंता उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद जैन भाया की जीत से भाजपा, वसुंधरा राजे और भजनलाल सरकार को लगा झटका। भाया की जीत में भाजपा की दगाबाजी राजनीति भी खुलकर सामने आई। दांव पर लगी हुई थी सबकी प्रतिष्ठा।

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Rakesh Kumar Sharma
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur. राजस्थान के अंता सीट पर हुए त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रमोद जैन भाया ने 15594 वोट से जीत हासिल की है। सत्तारुढ़ भाजपा के प्रत्याशी मोरपाल सुमन दूसरे नंबर पर रहे हैं। मोरपाल और निर्दलीय नरेश मीणा के बीच दूसरे और तीसरे नंबर की लड़ाई में 128 मतों का अंतर रहा। अगर नरेश को थोड़े मत और मिल जाते तो मोरपाल तीसरे नंबर पर होते। 

वसुंधरा की पकड़ ढीली

चुनाव नतीजे में भाया को 69463, मोरपाल को 53868 तो नरेश तो 53749 वोट मिले हैं। अंता के चुनाव नतीजे ने बारां की राजनीति में भाया के दबदबे और जनता में मजबूत पकड़ को दर्शाया है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे (वसुंधरा राजे को महारानी के नाम से ही जाना जाता है) की जमीनी ताकत की पोल भी सामने ला दी है। नतीजे ने वसुंधरा के जलवे को तो मंद किया है, जनता और कार्यकर्ताओं में उनकी ढीली पकड़ को भी उजागर कर दिया। 

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दुष्यंत पर भी पड़ेगा असर!

बारां-झालावाड़ से राजे के बेटे दुष्यंत सिंह सांसद हैं। अंता के चुनाव भाजपा और सरकार पर दूरगामी प्रभाव डालने वाले साबित होंगे, ऐसी चर्चा है। पर क्या प्रभाव डालेंगे, यह भविष्य के गर्त में है। अंता के चुनाव नतीजे चौंकाने वाले रहे। वे इसलिए कि हर कोई तीनों प्रत्याशियों में कड़ी टक्कर मान रहा था। हार-जीत मामूली अंतर से होने की बताई जा रही थी। पर आखिर में जीत भाया की हुई और वसुंधरा राजे तथा भाजपा की हार। 

चुनाव वसुंधरा बनाम भाया

मोरपाल को टिकट वसुंधरा ने दिलवाया। करीब दस दिन तक राजे ने अंता में रहकर मोरपाल के चुनावी प्रबंधन को संभाला। हर छोटे-बड़े नेता को जिम्मेदारी दी। दो बार मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा रोड शो करने पहुंचे। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ व अन्य वरिष्ठ नेताओं ने भी मोर्चा संभाला। दूसरी तरफ भाया के समर्थन में भी कांग्रेस नेता एकजुट दिखे। इन्होंने भी जमकर प्रचार किया। अंता का चुनाव पूर्व सीएम वसुंधरा बनाम भाया में तब्दील हो गया था। हालांकि चुनावी समर में बाजी भाया ने मारी।

भाजपा में दिखी दगाबाजी

अंता चुनाव में दगाबाजी भी दिखी। चुनाव में आधा दर्जन से अधिक वरिष्ठ नेता टिकट मांग रहे थे, लेकिन चुनाव के बाद वे प्रचार में नहीं दिखे। चाहे अंता सीट से संगठन के सबसे बड़े दावेदार पूर्व मंत्री प्रभुलाल सैनी हों या प्रखर कौशल, आनंद गर्ग, नंदलाल सुमन, रामेश्वर खंडेलवाल, विष्णु गौतम जैसे दावेदार प्रचार में सक्रियता से नहीं दिखे। 

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खामियाजा चुनाव में सामने आया

भाजपा के वे बड़े स्टार प्रचारक भी नजर नहीं आए, जो यहां के चुनावी समीकरण को बदल सकते थे। प्रभावशाली नेताओं के नहीं आने से इनके समर्थकों, जाति-समाज, संगठन और कार्यकर्ताओं में गलत मैसेज गया, जिसका खामियाजा चुनाव में सामने आया है।

ये दिग्गज राह ताकते रहे

अंता उपचुनाव में प्रचार-प्रसार करने के लिए हाड़ौती समेत प्रदेश के कई वरिष्ठ नेता आना चाहते थे। वे पार्टी के घोषित स्टार प्रचारक भी हैं, लेकिन इन्हें बुलाया ही नहीं या ये खुद नहीं आए, यह तो पार्टी और सरकार की अपनी अंदरूनी बात है। प्रचार में हाड़ौती के दिग्गज नेता शिक्षा मंत्री मदन दिलावर, ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर, कैबिनेट मंत्री किरोड़ीलाल मीणा, केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, अर्जुनलाल मेघवाल, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां जैसे नेता प्रचार में नहीं दिखे। 

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दिग्गज बदल सकते थे तस्वीर

अगर ये चुनाव प्रचार में दिखते तो नतीजे सकारात्मक रहते। बताया जा रहा है कि ये नेता तो आना चाहते थे, लेकिन प्रचार के लिए बुलाया ही नहीं। इस बारे में एक कैबिनेट मंत्री अपनी व्यथा भी जाहिर कर चुके हैं। बताया जा रहा है कि अंता चुनाव के प्रबंधन की पूरी जिम्मेदारी वसुंधरा के हाथों में रही। प्रचार में कौन आएगा और कौन नहीं, यह राजे ही तय कर रही थीं।

हाड़ौती के दिग्गज नेता भाया के साथ

बताया जा रहा है कि भाया की जीत में भाजपा के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं का भी अंदरखाने बड़ा सहयोग रहा है। संगठन पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रभुलाल सैनी को चुनाव लड़ाना चाहता था। सैनी को टिकट मिले, इसके लिए प्रभुलाल सैनी को लेकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ वसुंधरा के दरबार में भी पहुंचे।

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प्रभुलाल सैनी को मिली ना

प्रभुलाल सैनी को दरबार से ना मिली, तो मोरपाल को टिकट दिया गया, जो वसुंधरा का फैसला था। इसके बाद से कोटा, बारां, झालावाड़ समेत हाड़ौती की राजनीति में दखल रखने वाले भाजपा के कई दिग्गज नेता नाराज भी दिखे। बताया जाता है कि अंदरखाने भाजपा के ये दिग्गज नेता मोरपाल की कारसेवा में लग गए।

भ्रष्टाचार का आरोप परवान नहीं चढ़ा

अंता उपचुनाव में भाया पर भ्रष्टाचार के खूब आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए। नारे भी सोशल मीडिया पर खूब चले। भाजपा के नेताओं के साथ निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा के समर्थन में आए तीसरे मोर्च के नेता हनुमान बेनीवाल, पूर्व मंत्री राजेन्द्र गुढ़ा ने भी भाया पर भ्रष्टाचार के आरोप जड़े। 

आरोपों में सच्चाई नहीं थी

बारां के वरिष्ठ पत्रकार कुश मिश्रा का कहना है कि चुनाव में भाया पर भ्रष्टाचार के आरोप तो खूब लगे, लेकिन जनता के बीच आरोपों की सच्चाई कोई सामने नहीं ला सका। अगर कोई आरोप है और मुकदमे हैं, तो भाजपा की सरकार है। दो साल में क्यों कार्रवाई नहीं हुई। जनता में इन आरोपों का प्रभाव नहीं पड़ा। 

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भाया के विकास कार्य काम आए

भाया के समय अंता समेत बारां में खूब विकास कार्य हुए, जिसे लोग याद करते हैं। दो साल की भाजपा सरकार में यहां की जनता विकास कार्यों को तरस गई। जिन आरोपों को लेकर भाजपा गत विधानसभा चुनाव में जीतकर आई, उसके बाद भी हालात नहीं सुधरे।

वो ही कमीशन माफिया, बजरी माफिया, रेत माफिया, खनन माफिया आज भी धड़ल्ले से चल रहा है। अंता-मंगरोल की 25 किमी में गहरे गड्ढे वाली सड़क नहीं बनने से जनता में भारी नाराजगी थी। इसका खामियाजा इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को भुगतना पड़ा।

भाजपा का जातिगत समीकरण बिगड़ा

अंता चुनाव में भाजपा का चुनावी और जातिगत समीकरण बिगड़ा हुआ नजर आया। चहेते नेताओं को बुलाने की जिद से दूसरे नेता नाराज तो दिखे, वहीं सामाजिक और जातिगत समीकरण भी बिगड़ते नजर आए। धाकड़ समाज में टिकट नहीं मिलने से नाराजगी थी। वो चुनाव में दिखी भी। धाकड़ समाज के वोट भाया और नरेश मीणा के साथ चले गए। 

भाया और नरेश में बंट गए वोट

धाकड़ समाज का बड़ा हिस्सा भाया के पास गया। इसी तरह से राजपूत, वैश्य और ब्राह्मण समाज के वोटों में भाया की सेंधमारी रही। माली समाज से भी अच्छे-खासे वोट भाया के पास गए हैं। कांग्रेस का बड़ा वोट मीणा समाज निर्दलीय नरेश के साथ रहा। एससी और मुस्लिम वोटर्स में भी नरेश ने सेंधमारी की।

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