अरावली फिर वैसी नहीं बन सकती, खनन से नष्ट पहाड़ पुनर्जीवित नहीं होते, हमें यह स्वीकार नहीं : राजेंद्र सिंह

राजस्थान में अरावली को 80, 90 के दशक में भी बचाया था। अब फिर से बचाएं। अरावली हमारी विरासत है, इसे बचाना हमारा कर्तव्य है। खनन के बाद अरावली जैसी है, वैसी नहीं बना सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट अपने निर्णय पर विचार कर पुरातन विरासत अरावली को बचाए।

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Amit Baijnath Garg
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Aravali

Photograph: (the sootr)

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राजेंद्र सिंह, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता

हम सबको समझना होगा कि खनन से नष्ट पहाड़ पुनर्जीवित नहीं होते हैं। अरावली फिर वैसी नहीं बन सकती। सुप्रीम कोर्ट का 20 नवंबर 2025 का निर्णय अरावली पहाड़ को खनन की छूट से नष्ट करा देगा, तब इसे पुनः वैसी स्थिति में लाना संभव ही नहीं है। हम नदियों, तालाबों को तो पुनर्जीवित कर सकते हैं। 

इन्हें पहले जैसा पुनः उसी स्थिति में ला सकते हैं, लेकिन पहाड़ को कैसे भी करके वैसा ही बनाना संभव नहीं है। प्रकृति को मानव की मशीन से नष्ट करना स्वयं मानव का नष्ट होना है। हमारी आंखों के सामने ही ऐसा महाविस्फोट हमें स्वीकार नहीं करना चाहिए।

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खनन माफिया लामबंद

अरावली संरक्षण के लिए कोई भी पक्का कानून अभी तक नहीं बना है। अरावली के ऊपर उगने वाले जंगलों के संरक्षण का कानून बन गया है, लेकिन मूल पहाड़ को वैसा का वैसा बनाए रखने वाले कानून की आज सबसे पहले जरूरत महसूस होती है।

7 मई, 1992 को अरावली संरक्षण के लिए कानून बना था, लेकिन वह केवल अलवर-गुरुग्राम तक ही रह गया था। फिर पूरी अरावली के लिए भी उच्च एवं उच्चतम न्यायालय ने अच्छे निर्णय दिए थे। उनके विरुद्ध खनन माफिया लामबंद होकर लगे रहे और अब उन्होंने अपने मन की करा ली है।

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अनदेखी करने जैसा कानून

यदि ऐसा हुआ तो ठीक आदमी की सुरक्षा की अनदेखी करने जैसा कानून बन जाएगा। जंगलों को बचाना है तो पहाड़ बचाने की पहली जरूरत है। पहाड़ों को बचाने के लिए कानून भी अब सुप्रीम कोर्ट ही बनवाएगा। न्यायपालिका ने वन्यजीव संरक्षण कानूनों को ही उपयोग करके अभी तक खनन रुकवाया है। अब पहाड़ के लिए कानून उपलब्ध होने से ही खनन रुकेगा।

आज तो न्यायपालिका औद्योगिक दबाव में आकर खनन की संवेदनशील क्षेत्रों को भी नष्ट कर देती है। न्यायपालिका ने उपलब्ध विभाग की शक्तियों के अनुकूल निर्णय बनाकर अरावली पहाड़ के लिए ऐसी ही पहाड़ विरोधी परिभाषा दे दी है। यह काम राजनेताओं, अधिकारियों और उद्योगपतियों के त्रिगुट ने कराया है।

कुछ नहीं बचा सकेगा

हम सब इस परिभाषा को उपयुक्त नहीं मानते हुए जहां-तहां पर्वत की आवाज बन रहे हैं, लेकिन आवाज सुनने वाले तो मौन हैं। न्यायपालिका ने जिसे जिम्मेदारी दी है, वह तो पर्यावरण, जलवायु एवं वन बचाने वाले हैं, पहाड़ बचाने वाले नहीं हैं। इसलिए वे सभी बहुत खुश हैं। यहां बाढ़ ही खेत को खा रही है। पहाड़ों से पहले जंगल काटेंगे तो वे 20 नवंबर के निर्णय के प्रकाश में सभी अधिकारी, नेता, व्यापारी का त्रिगुट सुरक्षित बचे रहेंगे। ऐसे में वन एवं वन्य जीव संरक्षण कानून कुछ नहीं बचा सकेगा।

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पहल करने का समय

वन्यजीव और पर्वतों को काटने वाले पोषित होते रहेंगे। इसलिए अरावली को नष्ट करने में चित भी मेरा, पट्ट भी मेरा, अंटा मेरे बाप का कहावत पूर्णतः अरावली में जलवायु परिवर्तन एवं वन विभाग लागू करेगा, क्योंकि अब सभी कुछ उन्हीं के हाथों में आ गया है।

बचाने वाले को ही खिलाने, नष्ट कराने का अधिकार भी दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट को अपने निर्णय पर पुनर्विचार शुरू करके अपना सम्मान बढ़ाना चाहिए। हम सभी को न्यायपालिका पर विश्वास है। उसे बनाए रखने की पहल करने का अब अच्छा समय है। विश्वास है ऐसा उच्चतम न्यायालय जरूर करेगा।

बनाना ही होगा जन दबाव

यदि ऐसा नहीं होता है, तो दुनिया भर में हमारी न्यायपालिका को धक्का लग सकता है। हम जानते हैं कि हमारी न्यायपालिका ने सदैव दुनिया में न्याय का गौरव बढ़ाया है। पुरातन विरासत अरावली को बचाने में भी हमारी न्यायपालिका ऐसा ही करेगी।

हमारी संस्कृति-प्रकृति को न्यायालय और सरकार मिलकर जरूर बचाएगी। दोनों ही अरावली पहाड़ में निहित हैं। इनकी रक्षा की घोषणाएं पूरी दुनिया में हमारी सरकार कर चुकी है। अरावली बचाना हमारी सरकार की जिम्मेदारी और लोगों का भी कर्तव्य है। जन दबाव से ही लोकतंत्र में सरकारी प्रयास शुरू होंगे।

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कर्तव्य मानकर जुट जाएं

हम सभी अरावली बचाने के लिए अपना कर्तव्य मानकर जुट जाएं। पहाड़ बचाने के लिए कानून बनवाएं। सबसे पहले न्यायपालिका में अरावली को न्याय दिलाने के लिए पुनर्विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट में जाना है। साथ ही साथ याचिका भी लगाएं। अरावली साक्षरता अभियान चलाकर अरावली पहाड़ को बचाने के काम में विद्यार्थियों, शिक्षकों, किसानों को लगने के लिए चेतना परिक्रमा शुरू करें। पहाड़, भूगर्भ, विशेषज्ञ, आगे आकर न्यायलय और सरकार को अरावली की सच्ची परिभाषा समझाएं। 

दलगत राजनीति से उठना होगा

पहाड़ काटने वाले स्थानों पर खनन को रोकने के लिए रामायण पाठ, पर्यावरण यज्ञ, सत्याग्रह, मार्च, धरना, उपवास आदि जिसे जो समझ आए तथा मन की तैयारी करके अरावली विरासत जन अभियान को तेज करें। यह अभियान दलगत राजनीति से बहुत दूर है, उसके ऊपर है।

अरावली सभी की पहाड़ श्रृंखला है। इस प्रक्रिया को कोई भी राजनीतिक दल प्रभावित नहीं करेगा। वे इसमें आकर केवल सहयोग करें। उन सभी दलों का अरावली विरासत जन अभियान स्वागत व सम्मान करेगा, जो दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस अभियान के कामों में सहयोगी बनेगा।

केवल शुभ देखना होगा

यह अभियान सभी को बराबर अवसर सृजित करने के लिए सामूहिक नेतृत्व में बना है। इसे प्रभावी बनाने के लिए सभी को बराबर प्रयास करने होंगे। लेखन, सामाजिक, शिक्षण, परिसंवाद, श्रृंखला आयोजित करना आदि प्रयास करते हुए प्रकृति प्रदत्त विरासत बचाने में लाभ अथवा हानि नहीं देखते हुए केवल शुभ देखना है। जहां कुछ भी नष्ट नहीं होता है। केवल प्रकृति, पहाड़ ही सदैव निर्माण करते रहते हैं।

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सभी कुछ नष्ट करा दिया

अरावली में खनन नहीं होने से यह पर्वत श्रृंखला हमारे लिए अन्न, जल, चारा, ईंधन, जलवायु की सुरक्षा प्रदान करने के लिए निर्माण ही करती रहती है। खनन अरावली के निर्माण को केवल कुछ ही लोगों के लाभ के लिए है, सभी के हित को पूरा करा करने वाली प्रक्रिया शुभ निर्माण को रोक देगी।

यह प्रक्रिया रुकना भगवान (पंचमहाभूत) की निर्माण शक्ति को नष्ट कर सकता है। इसके लिए अगली पीढ़ी क्षमा नहीं करेगी। वो कहेंगे कि पुरखों से मिले पहाड़, पानी आपने हमारे लिए नहीं बचाया। सभी कुछ अपनी आंखों के सामने नष्ट करा दिया।

पीढ़ियां माफ नहीं करेंगी

हमारे यहां कहावत है कि हमें जैसा मिला, वैसा ही अपनी अगली पीढ़ी को सौंपकर मोक्ष की तरफ जाना है। पुरखों की विरासत को नष्ट करते हुए देखकर चुप रहना ही पाप का रास्ता है। अरावली विरासत जन अभियान शुभ और खनन लाभ के लिए है।

इसकी चिंता छोड़कर शुभ कार्य में सभी को जोड़ने का प्रयास करें। अपनी रुचि, क्षमता, कुशलता, दक्षता अनुसार सभी को इस काम में जोड़ें। हमने अब अरावली को बचाने के लिए ऐसा नहीं किया, तो हमें हमारी अगली पीढ़ियां माफ नहीं करेंगी।

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पुरातन विरासत अरावली पहाड़ियां

अरावली को 80, 90 के दशक में भी बचाया था। अब फिर से बचाएं। अरावली हमारी विरासत है, इसे बचाना हमारा कर्तव्य है। खनन के बाद अरावली जैसी है, वैसी नहीं बना सकते हैं। यह भारत की विरासत है, इसे वैसा ही बनाए रखने के लिए अरावली के बेटे-बेटियां सभी संगठित होकर इसे नष्ट नहीं होने दें। 

यही कर्तव्य है। विरासत को बचाना हमारा और राज्य का संवैधानिक कर्तव्य एवं अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट से पुनः प्रार्थना है कि वह अपने निर्णय पर विचार कर पुरातन विरासत अरावली को बचाए।

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