विश्व के पहाड़ों की पीड़ा है अरावली का संकट, देश-दुनिया के पर्वतों के लिए घातक निर्णय : जलपुरुष राजेंद्र सिंह

जर्मनी के मंत्रियों ने जंगल-पहाड़ों को वर्षावनों की रक्षा का सवाल बताया है। राजस्थान में अरावली के आदिवासियों का क्या होगा? अरावली की पहाड़ियों में खनन का निर्णय देश-दुनिया के पर्वतों के लिए घातक है। इन सवालों पर मैग्सेसे अवॉर्डी राजेंद्र सिंह की राय...

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Amit Baijnath Garg
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संयुक्त राष्ट्र संघ हर वर्ष 11 दिसंबर को विश्व पहाड़ दिवस मनाता है। जिन राष्ट्रों की न्यायपालिका और लोकतांत्रित सरकारें पहाड़ों की पीड़ा की अनदेखी करके नष्ट कर रही हैं, उनके लिए भी कोप में कुछ विश्व घोषणाएं करता है। इस वर्ष 20 नवंबर को कोप 30, बेलेम ब्राजील में बहुत अच्छे निर्णय लिए गए हैं। खासकर पहाड़ और जंगलों को बचाने वाले देश सम्मानित होंगे। पहाड़ों व वनों की अनदेखी करने वाले देशों को दंडित किया जाएगा। 

निर्णय पर पुनर्विचार जरूरी

20 नवंबर को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अरावली को नष्ट कराने का निर्णय सुनाया है। भारत सरकार एवं उच्चतम न्यायालय को अपने इस निर्णय पर पुनर्विचार जरूरी हो गया है। भारत को अब तक के कोप में प्रस्तुत पर्यावरण की प्रतिबद्धता एवं अपने संकल्पों को भी मुड़कर देखना होगा। हम अपने प्रकृति संस्कृति के साथ संकल्प पूरे करके ही विश्वगुरु बने थे।  

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सुप्रीम कोर्ट का घातक निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार को निर्देश दिया है। अरावली संपूर्ण रूप में गुजरात से दिल्ली तक एक पर्वतमाला है। इसे राज्यों की सीमाओं में बांट कर नहीं देखें। इसे समग्रता में देखना है, लेकिन 100 मीटर से नीचे के क्षेत्रों में खनन की छूट देकर स्वयं ने ही अरावली को बांटकर टुकडों-टुकड़ों में बांट दिया है। भारत और दुनिया की पर्वतमालाओं को नष्ट करने वाला भारत और दुनिया के पर्वतों के लिए घातक निर्णय है। 

देश की बदनामी का कारण

हम विश्व पर्वत दिवस पर अपनी सरकार और उच्चतम न्यायालय से याचना-प्रार्थना करते हैं कि इस निर्णय पर पुनर्विचार करें। यदि ऐसा नहीं हुआ तो दुनिया भर के पहाड़ों को बचाना असंभव होगा। भारत की बदनामी हो सकती है। प्रकृति-संस्कृति को बचाने वाले देश ने ही अपने पहाड़ की संस्कृति और प्रकृति को नष्ट करने की पहल की है। 20 नवंबर का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय माना जा सकता है। यही हमारे देश की बदनामी का कारण बन सकता है। 

धरती के गर्भ से पर्वतमालाएं

पूरी दुनिया का मानना है कि पर्वतमालाएं धरती के गर्भ से निकलती हैं। एक पर्वतमाला की पारिस्थितिकी एक समान रूप में बचानी होती है। संपूर्ण भूभाग, चाहे धरती के भीतर हो या बाहर, एक जैसा संरक्षण मांगता है। इसलिए उच्चतम न्यायालय ने अरावली के 100 मीटर के हिस्से को उसकी सीमाओं में खनन नहीं करने के लिए व्यवस्था बनाने का 6 माह का समय दिया है। इस पर इस समय-सीमा से पूर्व ही विचार करके अरावली को खनन मुक्त रखना ही भारत की विरासत बचाना जरूरी और ज्यादा महत्वपूर्ण है। 

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उद्यमी को ध्यान में रखकर छूट

अरावली में कई अच्छे और महत्वपूर्ण खनिज हैं। जिन खनिजों की देश को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यकता है। एटॉमिक राष्ट्रीय सुरक्षा महत्व के लिए खनन की उनको उच्चतम न्यायालय ने छूट दी है। अरावली के लोगों की मान्यता है कि सामान्य खनिजों के लिए अरावली को काटना, जंगल नष्ट करना और पर्वतमाला में नए घाव बनाना किसी भी रूप में उचित नहीं है। अरावली के खनन की छूट एक ही उद्यमी को ध्यान में रखकर दी गई है। 

पहल का स्वागत

कोप 30 बेलेम, ब्राजील ने भी वर्षा वन के संरक्षण एवं वनवासियों के निर्णय में भागीदार बनाने की व्यवस्था आज के ही दिन बनाई है। यह पहाड़ों के वन और उनकी प्रकृति व संस्कृति बचने की बहुत ही अच्छी पहल की है। आज विश्व पर्वत दिवस पर हम सब कोप 30 के निर्णय का स्वागत करते हैं।

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संकट का बहुत बड़ा प्रमाण

20 नवंबर को ब्राजील कोप 30 में दुनिया के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भविष्य की चिंता में एकत्र हुए। इस बार ब्राजील के राष्ट्रपति ने कहा कि उनके देश के अमेजन वर्षा वन और पहाडों का बड़ा नुकसान खनन से हुआ है। इस नुकसान के प्रमाण दुनिया को दिखाने के लिए कोप को अमेजन फॉरेस्ट के केंद्र बेलम में आयोजित किया गया है। इस बार का कोप जलवायु परिवर्तन के वर्तमान और भावी संकट का एक बहुत बड़ा प्रमाण है।

आदिवासियों का अब क्या होगा?

कोप 30 ने निर्णय लिया कि आदिवासी हित के हिस्से का सारा पैसा सीधे आदिवासी संगठनों को दिया जाएगा। जर्मनी ने ब्राजील के नए वैश्विक वर्षावन कोष में 10 वर्षों में एक अरब यूरो देने का वादा किया है। यह कोष उपग्रह निगरानी के आधार पर वनों-पहाड़ों को बचाने वालों को पुरस्कार और अधिक कटाई करने वालों पर दंड का प्रावधान करता है। 

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आदिवासी-पारंपरिक समुदायों तक पहुंचे

यह कोष आगे चलकर 125 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। वर्षावन, जिन्हें धरती के हरे फेफड़े कहा जाता है, खेती और खनन के दबाव से संकट में हैं। नॉर्वे तीन अरब डॉलर और ब्राजील व इंडोनेशिया एक-एक अरब डॉलर देने का वादा कर चुके हैं। इस पहल में कई वर्षावन देश शामिल हैं। इसकी देखरेख एक संयुक्त समिति करेगी। लगभग 70 देशों को इससे लाभ मिलेगा, बशर्ते 20 प्रतिशत धन आदिवासी-पारंपरिक समुदायों तक पहुंचे। 

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चिंता बढ़ा रहा निर्णय

अब तक 53 देश इसका समर्थन कर चुके हैं और ब्राजील को उम्मीद है कि समृद्ध देश 25 अरब डॉलर की शुरुआती सहायता देंगे। ये सभी प्रयास पर्वत और उनके वनों को बचाने की दिशा में 20 नवंबर को लिए गए निर्णय हैं। इनके विपरीत भारत के सुप्रीम कोर्ट का निर्णय दुनिया के पर्वत की प्रकृति एवं संस्कृति बचाने वालों की चिंता बढ़ा रहा है। 

आंसू पोंछने की कोशिश शुरू होगी

पर्यावरण और भविष्य की चिंता करने वाले मित्रों ने कोर्ट और विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों में अरावली को बचाने की आवाजें उठाईं। इसके परिणामस्वरूप चारों राज्यों की अरावली का एक समग्र दर्शन सामने आया। उच्चतम न्यायालय ने पहले कहा कि अब आगे कोई नई खनन लीज नहीं दी जाएगी। यह बेहद सम्माननीय फैसला है, जिससे अरावली के कुछ आंसू पोंछने की कोशिश शुरू हो सकती थी। 

उद्यमियों के हाथों में देने की योजना

अब नई परिभाषा से अरावली के आंसू के पोंछने की बजाय घाव और अधिक गहरे और तेज कर दिए गए हैं। अरावली के आंसू अब कभी रुकेंगे? हमे शंका है, क्योंकि जिस प्रकार से यह निर्णय आया है, इसके पीछे खनन उद्यमियों का सरकार पर बढ़ा गहरा प्रभाव दिखता है। सरकार ने हमारे उच्चतम न्यायालय में जो एफिडेविट दिए है, वे इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं। पूरी अरावली चंद उद्यमियों के हाथों में देने की योजना बन गई है। 

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दिल्ली तक निकाली थी पदयात्रा

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सौ मीटर ऊंची अरावली में खनन नहीं होगा और सौ मीटर से नीचे की अरावली पर भारत सरकार विचार कर सकती है। यह फैसला 1990 की याद दिलाता है, जब अरावली में वैध और अवैध 28 हजार से अधिक खदानें चलती थीं। इन खदानों को बंद कराने के लिए तरुण भारत संघ की पहल और उसके आधार पर जारी नोटिफिकेशन को लागू करवाने के लिए मैंने 2 अक्टूबर, 1993 को हिम्मतनगर, गुजरात से दिल्ली तक पदयात्रा की थी। 

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हमारी आवाज को गंभीरता से सुना

केंद्र सरकार ने इस आवाज को गंभीरता से सुना, खदानें बंद हुईं और अरावली पुनर्जीवित होने लगी थी। 2025 वर्ष आते-आते बहुत सी जगहों पर अवैध खदानें फिर चालू हो गईं। जहां खदानें चलीं, वहां अरावली नष्ट होने लगी, जल संकट और जलवायु संकट गहराने लगे, भूजल भंडार खाली होते गए। फरीदाबाद, नूंह, गुरुग्राम इसके उदाहरण हैं। अलग-अलग समय पर वैध-अवैध सभी तरह की खदानें धीरे-धीरे फिर चलने लगीं और संकट खड़ा करती रहीं। 

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पहाड़ों को बचाने के लिए अभियान

राजस्थान में कई साथियों ने याचिका दायर कर खनन रुकवाने की लड़ाई जारी कर दी। हरियाणा-दिल्ली, राजस्थान और गुजरात में अब पुनः नए सिरे से लड़ाई खड़ी हो रही है। यह अब तेज होगी। कई साथियों ने समय-समय पर पदयात्राएं करके खनन रुकवाने की पहल की है। हाल ही में 7 दिसंबर को जयपुर सम्मेलन के निर्णय से अरावली विरासत जल अभियान पुनः अपने पहाड़ों को बचाने के लिए शुरू हो गया है। हम सभी को मिलकर इसमें अपनी आहुति देनी होगी।

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