/sootr/media/media_files/2025/12/22/aravali-2025-12-22-13-36-14.jpg)
Photograph: (the sootr)
राजेंद्र सिंह, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता
अरावली पर्वतमाला पूरे देश की प्राचीनतम विरासत है। जो देश अपनी विरासत का संरक्षण करता है, वो ही देश महान और गुरु बनता है। यह भारत के जलवायु परिवर्तन के संकट को अनुकूलन के द्वारा समाधान के रास्ते पर ले जाती है, क्योंकि यह भारत का आड़ा पर्वत यानी अरावली रेंज है।
इसकी भूगर्भीय श्रृंखला बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से आने वाली वर्षा को मिलाकर इसे संतुलित करती है। पश्चिम से आने वाली गर्म व रेतीली हवाओं को रोकती है और अपने जंगल से ठंडा कर संतुलित करके पूर्व दिशा की तरफ बढ़ाती है। अरावली पहाड़ियां बचाने के लिए आवाज उठाना जरूरी है।
अरावली पर सियासी घमासान : गहलोत के भाजपा पर गंभीर आरोप, 100 मीटर की परिभाषा पर उठाए सवाल
खेती के लिए बहुत जरूरी
अरावली पर्वत देश की खेती के लिए बहुत जरूरी है। यदि अरावली से आज पश्चिम से आने वाली रेत न रुके तो पश्चिमी यूपी, दिल्ली, एनसीआर, हरियाणा व राजस्थान का बाकी आधा हिस्सा भी, वो भी रेत से दबा हुआ है। आड़ा पर्वत भारत की सचमुच रीढ़ है। पर्वत नहीं रहेगा, तो भौतिक रूप में हमारा शरीर तो दिखेगा, लेकिन हम बीमार होंगे। अरावली की औषद्यियां खत्म हो जाएंगी। जैव विविधता नष्ट हो जाएगी।
तापमान को करती है संतुलित
अरावली प्राणों का आधार है। आज टाइगर से लेकर छोटे जीव-जंतुओं तक, जैव विविधता का सबसे बड़ा खजाना, आदिवासियों की परम्पराओं और एक तरह से पूरे राज्य के लिए वातावरण में संतुलन का काम करने वाली पर्वतमाला है। हरियाली के कारण पारा तीन डिग्री तक कम रहता है। जैसे 1991 में अध्ययन कराया तो यह पाया कि जयपुर के झालाना डूंगरी में तापमान शहर के अन्य हिस्सों से 3 डिग्री कम रहता है। अरावली को नहीं बचाया, तो तापमान गर्म और ठंडी हवाओं में बदलेगा।
अरावली पर सियासी घमासान : राजेंद्र राठौड़ का अशोक गहलोत पर हमला, भ्रम फैलाने का लगाया आरोप
पारिस्थितिकी का आधार अरावली
अरावली को बचाना इसलिए जरूरी है, क्योंकि देश की सांस्कृतिक और प्राकृतिक का सबसे प्राचीनतम आधार हम इसे मानते हैं। इसलिए ब्रह्मा का पहला और प्राचीनतम मंदिर राजस्थान के पुष्कर में इसलिए बना कि उन्हें सृष्टि का सृजनकर्ता मानते हैं। इकोनॉमी और पारिस्थितिकी, दोनों के लिए अरावली जरूरी है।
खत्म हो सकती है प्रकृति
अरावली में बहुत सारे मिनरल्स हैं। माइनिंग से इकोनॉमी बढ़ा सकते हैं। जब हमारी संस्कृति और प्रकृति के योग से भारत के विकास का डिजाइन था, तब हम 32 प्रतिशत जीडीपी वाले देश थे। जब से पहाड़ों को काटना शुरू किया, तब पांच या छह प्रतिशत जीडीपी वाले देश रह गए हैं। विरासत समृद्ध है। आजादी के बाद इसे छोड़ दिया गया है। अरावली को नष्ट करेंगे, तो संस्कृति और प्रकृति को खत्म करने का काम करेंगे।
अरावली को अब तक आंदोलनों ने ही बचाया
692 किमी उत्तर से पश्चिम जाने वाली यह अरावली पर्वतमाला बचाना इसलिए जरूरी कि हमारे जीवन को संतुलित और समृद्ध बनाती है। खनन मुक्त करके अरावली को हरित बनाना चाहिए। माइनिंग हुआ तो यह क्षेत्र बीमार होगा। अरावली बचाने की मुहिम 1980 के दशक में जयपुर से शुरू हुई। तब अरावली में गुजरात से लेकर दिल्ली तक सबसे ज्यादा खान हुआ करती थी। 1988 में कोर्ट में गए। 1991 में पहली बार अरावली के फॉरेस्ट एरिया खासकर सरिस्का में 400 खदानों को बंद करने का काम हुआ।
कितना ही आश्वस्त करें, होगा मिसयूज
दिल्ली, हरियाणा और अलवर में खान बंद हुईं। अरावली के लिए फरवरी, 1993 में अधिसूचना जारी हुई। 2000 के दशक में अरावली क्षेत्र में खदानें बंद हो गईं। बहुत सारे लोग खनन के खिलाफ खड़े हुए। अरावली में खनन को लेकर लोग विभिन्न अदालतों में गए। अरावली को एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ही बचा रहा था। अब उसी ने अचानक 100 मीटर अरावली के नीचे नष्ट करने की कोशिशों पर मुहर लगा दी।
करना होगा आंदोलन खड़ा
आदेश नहीं बदला तो चाहे मंत्री और सरकार कितना ही आश्वस्त करें, लेकिन कोर्ट आदेश का मिसयूज होगा। इसके बाद हिमालय और अन्य पर्वतों पर खतरा बढ़ेगा। अभी इन पहाड़ों को बचाने के लिए कोई कानून नहीं है। जितने पहाड़ बचे हैं, वे आंदोलनों के कारण बचे हैं। इसमें चाहे अरावली हो या ओडिशा की नीलगिरी। दुर्भाग्य है कि भारत में पहाड़ों को बचाने वाला कोई कानून नहीं है। हम सभी को खड़े होना पड़ेगा। 1993 की तरह आंदोलन करना पड़ेगा, जिसकी दिल्ली पदयात्रा में सभी राज्यों के लोग शामिल हुए।
जिसने बचाया, वहीं से विनाश की लीला
समझ में नहीं आ रहा है कि यह नए सिरे का फैसला किसी बड़े उद्योगपति के लिए हुआ, या फिर रियल एस्टेट, फैक्ट्रियों या दिल्ली के पास नई सिटी बसाने के लिए। इस आदेश के पीछे कौन लोग हैं, यह आगे पता चलेगा। दुर्भाग्य है कि जिस अलवर से अरावली बचाने के लिए आंदोलन शुरू हुआ, अब ऐसा लग रहा है कि अलवर से ही विनाश की लीला रची जा रहा है।
अरावली बचाने की मुहिम में उतरे पूर्व CM अशोक गहलोत, सोशल मीडिया पर DP बदलने से चर्चा तेज
अलवर में बैठी हैं खेल की शक्तियां
अरावली को नष्ट करने वाले इस खेल की सर्वोच्च शक्तियां अलवर में ही बैठी हैं। अलवर के लोग अपनी भूमिका क्या देख रहे हैं, यह बात वहां के लोगों को समझने की जरूरत है। अलवर आगे बढ़े और जजमेंट को बदलवाने में भूमिका निभाए। वैसे भी, हमें विश्वास है कि इतनी जल्दी देश के लोग अपनी प्राचीनतम विरासत अरावली पहाड़ियां बर्बाद नहीं होने देंगे। हम सभी को मिलकर इसे बचाने के लिए आगे आना ही होगा।
/sootr/media/agency_attachments/dJb27ZM6lvzNPboAXq48.png)
Follow Us