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Photograph: (the sootr)
Jaipur. राजस्थान में कांग्रेस का संगठन सृजन ​अभियान कांग्रेस के हारे-थके और दरकिनार हो चुके नेताओं के लिए संजीवनी बूटी साबित हो रहा है। इन नेताओं को जिलाध्यक्षों की खोज के लिए रायशुमारी करने के लिए पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया है, लेकिन ये लोग जिलों में गुटबाजी और विवाद में फंस रहे हैं। कुछ पर्यवेक्षक मंच सजाकर भाषण देकर बरसों से सूखे अपने गलों को तर कर रहे हैं।
राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर! जिलाध्यक्षों की रायशुमारी में फैल रही रार
बगल में लेकर बैठे हैं दावेदारों को
इन पर आरोप है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ समाज के अलग-अलग वर्गों से रायशुमारी करने आए ये पर्यवेक्षक पार्टी गाइडलाइन से परे काम कर रहे हैं। स्थिति यह है कि यह जिलाध्यक्ष पद के दावेदारों को मंच पर अपने बगल में बैठाकर विरोध का कारण बन रहे हैं। पार्टी कार्यकर्ता पर्यवेक्षकों की निष्पक्षता को लेकर सवाल उठा रहे हैं। हालांकि एक वरिष्ठ नेता ने सफाई दी कि पर्यवेक्षक हर विधानसभा क्षेत्र में अलग-अलग लोगों से मिलकर उनकी राय ले रहे हैं। इस दौरान उनके साथ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के जिला प्रभारी भी साथ बैठते हैं।
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युवाओं को नहीं मिल रहा मौका
एआईसीसी ने अपने इन पर्यवेक्षकों को निष्पक्ष तौर पर जानकारी लेने को भेजा है। अजमेर के एक जिला स्तरीय नेता का सवाल है कि जब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के जिलों के प्रभारी पर्यवेक्षकों के साथ बैठ रहे हैं, तो कार्यकर्ता खुलकर अपनी राय पर्यवेक्षकों को कैसे देंगे। पार्टी सूत्रों का कहना है कि पर्यवेक्षकों ने साफ कर दिया है कि जिलाध्यक्ष के लिए 50 से 55 साल तक के नेताओं को ही अवसर दिया जाएगा। ऐसे में योग्य होने के बावजूद युवाओं को तो जिलाध्यक्ष बनने के रास्ते ही बंद हो जाएंगे।
इनकी मर्जी के बिना बनाएगा कौन जिलाध्यक्ष
कांग्रेस के असंतुष्ट धड़े का कहना है कि जोधपुर में अशोक गहलोत, अलवर में जितेंद्र सिंह, राजसमंद और उदयपुर में डॉ. सीपी जोशी, सीकर में प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, कोटा में शांति धारीवाल, भरतपुर में विश्वेंद्र सिंह तथा टोंक, दौसा, अजमेर, सवाई माधोपुर जैसे जिलों में सचिन पायलट की मर्जी के बिना जिलाध्यक्ष बनाना असंभव दिखता है। ऐसे में इन पर्यवेक्षकों की जिलाध्यक्षों के लिए रायशुमारी औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं दिखती है।
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हर बार होती है ऐसी कवायद
असंतुष्ट धड़े का कहना है कि यदि पार्टी के बड़े नेता वास्तव में ही पार्टी को मजबूत बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले अपनी मर्जी के कठपुतली नेताओं को जिलाध्यक्ष या प्रदेश में पदाधिकारी बनाने की परिपाटी बंद होनी चाहिए। उनके अनुसार, संगठन को मजबूत करने की कवायद कई बार हो चुकी है। हर बार बड़े नेताओं ने इन कोशिशों को सिरे नहीं चढ़ने दिया और इस बार भी यही होगा।
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रायशुमारी में हो रही खींचतान
पर्यवेक्षकों की मीटिंग के दौरान कई जिलों से खींचतान की सूचनाएं लगातार आ रही हैं। अजमेर, कोटा, जयपुर और झुंझुनं में रायशुमारी के दौरान गुटबाजी खुलकर सामने दिखाई दी। बाड़मेर में भी अमीन खान का विरोध सामने आने की सूचना मिली है। इसी तरह अन्य जगहों पर भी विरोध खुलकर सामने आ रहा है। गुटबाजी में फंसे कार्यकर्ताओं ने पर्यवेक्षकों के सामने जमकर नारेबाजी की और रायशुमारी के संभावित परिणामों पर सवाल उठाए। इनका आरोप था कि पर्यवेक्षक एक धारणा के तहत काम कर रहे हैं, जिनसे अच्छे परिणाम की अपेक्षा मुश्किल दिखती है।
बड़े नेताओं के इशारों पर पदाधिकारी
असल में कांग्रेस में अब तक कोई भी पदाधिकारी बड़े नेताओं के इशारों पर ही बनने की परंपरा रही है। फिर कांग्रेस परिवारवाद के आरोपों से भी अछूती नहीं रही है। इसके चलते नए और योग्य लोगों को मौका नहीं मिलता। पर्यवेक्षकों से रायशुमारी में भी यही बात सामने आ रही है। पुराने लोगों के कारण नए लोगों को मौका नहीं मिल रहा है, जिससे उनकी नाराजगी चरम पर है। वे पर्यवेक्षकों को सुनाने का भी कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।