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Photograph: (the sootr)
छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन लिमिटेड (CGMSC) ने बच्चों को दी जाने वाली एल्बेंडाजोल टैबलेट के 6 बैच पर तत्काल रोक लगा दी है। आदेश के अनुसार, इन बैचों का उपयोग और वितरण बंद कर स्टॉक वापस रायपुर गोदाम में जमा कराया जा रहा है।
चौंकाने वाली बात यह है कि ये सभी दवाइयां Affy Parenterals नामक सप्लायर से आई थीं। राजस्थान में 22 अगस्त को राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस कार्यक्रम और 29 अगस्त को मॉप अप दिवस के लिए 41 जिलों के 394 ब्लॉक्स के लिए 3 करोड़ 27 लाख 23 हजार 417 टैबलेट्स की स्वास्थ्य विभाग से मांग की गई है। यह टैबलेट प्रदेशभर में 53 हजार 496 आशा बच्चों तक पहुंचाएंगी।
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राजस्थान में बंट रही दवाएं सुरक्षित हैं?
इस कार्रवाई से राजस्थान के राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस कार्यक्रम 2025 को लेकर गहरी चिंता जन्म ले चुकी है। 22 अगस्त को राजस्थान में करोड़ों की आबादी वाले 1 से 19 साल तक के बच्चों को यही एल्बेंडाजोल दवा खिलाने की तैयारी है। सरकार ने आंगनबाड़ी, सरकारी-निजी स्कूलों, तकनीकी व उच्च शिक्षण संस्थानों और मदरसों तक लाखों गोलियां भेजने का दावा किया है। अब सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या राजस्थान में बंट रही दवाएं सुरक्षित हैं?
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लापरवाही या जल्दबाजी?
छत्तीसगढ़ में दवा की आपूर्ति रोक दी गई, लेकिन राजस्थान में उसी समय बच्चों को वही दवा खिलाने की योजना धड़ल्ले से आगे बढ़ाई जा रही है। कहीं यह जल्दबाजी बच्चों की सेहत के साथ खिलवाड़ तो साबित नहीं होगी? स्वास्थ्य विभाग ने अब तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि क्या राजस्थान में वितरित दवाओं का बैच नंबर सार्वजनिक किया गया है? क्या किसी स्वतंत्र लैब से इन दवाओं की क्वालिटी टेस्टिंग हुई है? क्या अभिभावकों को यह भरोसा दिया गया है कि छत्तीसगढ़ में बैन किए गए बैच राजस्थान तक नहीं पहुंचे?
विशेषज्ञों की चेतावनी
वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञों का कहना है कि मिट्टी जनित कृमि संक्रमण रोकना बेहद जरूरी है, लेकिन बिना टेस्टिंग रिपोर्ट और पारदर्शिता के इतने बड़े पैमाने पर बच्चों को दवा खिलाना गंभीर जोखिम है। यदि प्रतिबंधित बैच का वितरण राजस्थान में हो गया, तो इसका असर हजारों बच्चों की सेहत पर पड़ सकता है। सरकार को तुरंत स्पष्टीकरण देना चाहिए।
एक वरिष्ठ डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यह पहला मौका नहीं है, जब राजस्थान में सरकारी सप्लाई की दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठे हों। पहले भी स्वास्थ्य योजनाओं में घटिया दवाओं के मामले सामने आ चुके हैं। बावजूद इसके, इस बार भी प्रशासन पूरी तरह ‘कागजी तैयारियों’ पर निर्भर दिखाई देता है। 22 अगस्त को कृमि मुक्ति दिवस और 29 अगस्त को मॉप-अप दिवस के लिए जिला स्तर पर बैठकों, माइक्रोप्लानिंग और प्रचार-प्रसार की बातें तो खूब हो रही हैं, लेकिन असली मुद्दा दवा सुरक्षित है या नहीं? इस पर सरकार चुप्पी साधे बैठी है।
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अभिभावकों की सता रही चिंता
जयपुर, जोधपुर, कोटा और अजमेर सहित कई बड़े जिलों में अभिभावकों के बीच यह सवाल तेजी से फैल रहा है कि क्या उनके बच्चों को खिलाई जाने वाली दवा पूरी तरह सुरक्षित है। खासकर तब, जब पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ ने उसी दवा को लेकर खतरे की घंटी बजा दी है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या राजस्थान के बच्चों तक भी संदिग्ध दवा पहुंच चुकी है? जयपुर के त्रिपोलिया क्षेत्र की रीता शर्मा कहती हैं कि अगर पड़ोसी राज्य ने दवा पर रोक लगाई है, तो राजस्थान सरकार क्यों चुप है? हम अपने बच्चों को बिना भरोसा किए यह दवा कैसे खिलाएं? जोधपुर निवासी सुरेश चौधरी का कहना है कि बच्चों पर प्रयोग क्यों हो रहा है? पहले सरकार बताए कि बैच नंबर और लैब रिपोर्ट क्या कहती है, तभी दवा पिलाई जाए।
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बच्चों की सेहत से खिलवाड़
जानकार कहते हैं कि यह सीधे-सीधे बच्चों की सेहत से खिलवाड़ है। छत्तीसगढ़ में दवा पर रोक लगी है और राजस्थान सरकार बिना टेस्टिंग रिपोर्ट सार्वजनिक किए करोड़ों बच्चों को वही दवा पिलाने जा रही है। यह लापरवाही है, सरकार तुरंत दवा वितरण रोक कर जांच कराए। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन ने यह जांच की है कि छत्तीसगढ़ में रोके गए बैच राजस्थान में तो नहीं पहुंचे? सरकार को इस पर जवाब देना चाहिए। वरिष्ठ चिकित्सक मानते हैं कि बच्चों को मिट्टी जनित कृमि संक्रमण से बचाना बेहद जरूरी है, लेकिन संदिग्ध दवा के जरिए स्वास्थ्य अभियान चलाना खतरे से खाली नहीं है। उनका कहना है कि पहले सरकार को बैच नंबर, क्वालिटी टेस्टिंग और सप्लाई चेन का ब्यौरा सार्वजनिक करना चाहिए।
सवालों के घेरे में सरकार की चुप्पी
स्वास्थ्य विभाग अब तक स्पष्ट नहीं कर पाया है कि राजस्थान में भेजी गई दवाओं के बैच नंबर कौनसे हैं और क्या वे छत्तीसगढ़ में रोके गए बैच से अलग हैं। यही वजह है कि अभियान से पहले ही जनता में संशय और डर बढ़ता जा रहा है। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ में दवा की गुणवत्ता पर सवाल उठने के बाद राजस्थान में कृमि मुक्ति दिवस को लेकर भरोसे का संकट खड़ा हो गया है। सरकार अगर तुरंत पारदर्शिता नहीं दिखाती है, तो यह स्वास्थ्य अभियान बच्चों के लिए सुरक्षा की बजाय खतरे का सबब बन सकता है।
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