कालबेलिया नृत्यांगना गुलाबो ने रूढ़िवादिता को दी चुनौती, समाज में बदलाव के लिए दिखाई हिम्मत

राजस्थान की कालबेलिया नृत्यांगना गुलाबो बाई ने अपने समाज में लड़कियों को मारने की प्रथा को चुनौती दी और समाज की बेटियों के लिए एक नई राह खोली। अलवर में मत्स्य उत्सव में प्रस्तुति के दौरान उन्होंने बातचीत में अपनी जिंदगी के कई पहलुओं पर खुलकर चर्चा की।

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Amit Baijnath Garg
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सुनील जैन @ अलवर

राजस्थान के प्रसिद्ध कालबेलिया नृत्यांगना गुलाबो बाई ने न सिर्फ अपनी कला से दुनिया को आकर्षित किया, बल्कि अपनी सामाजिक धरोहर को बचाने के लिए एक क्रांतिकारी कदम भी उठाया। उनका जीवन एक प्रेरणा बन चुका है और उन्होंने अपने समाज में बेटियों को बचाने के लिए बड़ा संघर्ष किया। अलवर में मत्स्य उत्सव में प्रस्तुति के दौरान उन्होंने बातचीत में अपनी जिंदगी के कई पहलुओं पर खुलकर चर्चा की।

दिल में बसी कहानी

गुलाबो की कहानी आज भी लोगों के दिलों में बस गई है और उनके संघर्ष ने न केवल उनके समाज को बदलने में मदद की, बल्कि पूरी दुनिया में यह संदेश फैलाया कि समाज में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना कितना महत्वपूर्ण है।

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गुलाबो की जिंदगी का परिवर्तन

गुलाबो का जन्म 1970 में राजस्थान के घुमंतू कालबेलिया समुदाय में हुआ था। उनके पिता देवी उपासक थे और उनकी मां हमेशा अपने बच्चों को देवी के आशीर्वाद के रूप में प्यार करती थीं। पर गुलाबो के जन्म के समय एक बड़ी घटना घटी, जो उनके जीवन की दिशा को बदलने वाली थी।

दफन करने की कोशिश की गई

गुलाबो के जन्म के बाद उन्हें दफन करने की कोशिश की गई, क्योंकि परिवार में पहले से ही तीन लड़कियां थीं। गुलाबो की मां, जो देवी की पुजारी थीं, ने अपनी बेटी को बचाने के लिए कई मिन्नतें कीं। उनका विश्वास था कि उनकी बेटी दुर्गा का रूप होगी और समाज में बदलाव लाएगी। अंततः उनकी मां ने गुलाबो को बचाया। यही पल था, जिसने गुलाबो के जीवन की दिशा बदल दी।

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गुलाबो की कला का अनोखा सफर

गुलाबो ने अपनी कला की शुरुआत बचपन में की थी। उनके पिता सांपों के साथ काम करते थे और गुलाबो भी सांपों के साथ खेलती थी। उसी दौरान उन्होंने बीन की आवाज पर नृत्य करना सीखा। हालांकि जब वह सात साल की थीं, तो समाज ने उन्हें बहिष्कृत कर दिया था। गुलाबो ने हार नहीं मानी और अपनी कला को न केवल बचाया, बल्कि इसे पूरे देश और विदेश में फैलाया।

कुरीति के खिलाफ उठाई आवाज

गुलाबो ने 17 साल की उम्र में समाज की उस प्रथा को खत्म करने का संकल्प लिया, जिसमें लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था। उन्होंने यह शर्त रखी कि वह समाज में तब तक नहीं लौटेंगी, जब तक यह प्रथा बंद नहीं हो जाती। समाज ने उनकी बात मानी और तब से अब तक कालबेलिया समाज में लड़कियां पढ़ाई कर रही हैं, नौकरियां कर रही हैं और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ा रही हैं।

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पद्मश्री पुरस्कार और उनका योगदान

गुलाबो बाई की कला और संघर्ष को मान्यता देते हुए 2016 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा गया। उन्होंने अपनी कला के जरिए न केवल अपनी संस्कृति को बढ़ावा दिया, बल्कि समाज में बदलाव लाने के लिए भी कई कदम उठाए। उनके संघर्ष को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने उन्हें यह सम्मान दिया। गुलाबो ने यह पुरस्कार अपनी मेहनत और समाज के प्रति अपनी निष्ठा के कारण हासिल किया।

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Photograph: (the sootr)

अपनी संस्कृति को जिंदा रखें

उनका मानना है कि यह सम्मान उनके समाज की बेटियों के लिए है और उन्होंने इसे अपनी बेटी के समान समझा। उन्होंने हमेशा अपनी बेटियों को प्रेरित किया कि वे अपनी कला और पढ़ाई में आगे बढ़ें और अपनी संस्कृति को जिंदा रखें।

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गुलाबो की शिक्षा और प्रेरणा

गुलाबो ने हमेशा अपनी कला के साथ-साथ अपनी संस्कृति को बचाने और उसे समाज में फैलाने की कोशिश की। उनकी यह प्रेरणा न केवल उनके घुमंतू समुदाय-समाज के लिए, बल्कि समग्र भारतीय समाज के लिए एक प्रेरणा बन गई है। उनकी बेटी भी अब इस सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ाने में पूरी तरह से सहयोग कर रही हैं।

नई पीढ़ी को दिया संदेश

उन्होंने हमेशा नई पीढ़ी को यह संदेश दिया कि अगर वे अपनी संस्कृति को बचाना चाहते हैं तो उन्हें अपनी जड़ों से जुड़ा रहना होगा। पश्चिमी संस्कृति अपनी जगह सही हो सकती है, लेकिन भारतीय संस्कृति की अपनी अहमियत है।

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प्रमुख जानकारी

जन्म : 1970 में घुमंतू कालबेलिया समुदाय में
मुख्य योगदान : समाज में बेटियों को मारने की प्रथा को समाप्त करना
पुरस्कार : 2016 में पद्मश्री सम्मान
प्रमुख कृतियां : बिग बॉस में भागीदारी, सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा
प्रदर्शन : 170 देशों में अपनी कला का प्रदर्शन

राजस्थान अलवर घुमंतू समुदाय कालबेलिया नृत्यांगना गुलाबो
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