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राजस्थान में ऊर्जा के क्षेत्र में एक और बड़ा कदम बढ़ाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 सितंबर को माही बांसवाड़ा परमाणु ऊर्जा परियोजना (MBRAPP) की आधारशिला रखेंगे। इस परियोजना के जरिए राज्य के ऊर्जा क्षेत्र को मजबूती मिलेगी और भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को और बल मिलेगा। वर्ष 2030 तक भारत का लक्ष्य 500 गीगावाट की गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता स्थापित करना है और माही बांसवाड़ा परियोजना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी।
राजस्थान की दूसरी परमाणु ऊर्जा परियोजना
माही बांसवाड़ा परमाणु ऊर्जा परियोजना राजस्थान की दूसरी परमाणु ऊर्जा परियोजना होगी। यह परियोजना बांसवाड़ा जिले के छोटी सरवन तहसील के गांवों आड़ीभीत, बारी, कटुम्बी, सजवानिया, और रेल में स्थापित की जाएगी। इसकी कुल क्षमता 2800 मेगावाट होगी, जिसमें 700 मेगावाट की चार इकाइयां शामिल होंगी। इस परियोजना की अनुमानित लागत लगभग 42,000 करोड़ रुपए है।
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क्या होगा इस परियोजना का असर?
माही परमाणु बिजलीघर परियोजना से राज्य की ऊर्जा आपूर्ति में सुधार होगा। यह परियोजना राजस्थान की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद करेगी और राष्ट्रीय स्तर पर भी ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देगी। इसमें प्रेशराइज्ड हेवी वाटर रिएक्टर (PHWR) तकनीक का उपयोग किया जाएगा, जो ऊर्जा उत्पादन में एक प्रमुख भूमिका निभाएगा।
जल स्रोत और परियोजना की कार्यप्रणाली
माही-बांसवाड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए जल स्रोत के रूप में माही नदी को चुना गया है, जो माही बजाज सागर बांध के अपस्ट्रीम से जुड़ी है। यह परियोजना लगभग 602.72 हेक्टेयर भूमि पर स्थित होगी और कॉलोनी के लिए 57.43 हेक्टेयर भूमि का उपयोग किया जाएगा। परियोजना की प्रथम इकाई का वाणिज्यिक संचालन मई 2032 से शुरू होने की उम्मीद है, और बाकी इकाइयां प्रत्येक छह महीने के अंतराल पर चालू की जाएंगी।
भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता
भारत में वर्तमान में 220 मेगावाट क्षमता के 15 PHWR, 540 मेगावाट के 2 PHWR और राजस्थान के रावतभाटा में 700 मेगावाट का एक रिएक्टर संचालित है। भारत की कुल परमाणु ऊर्जा क्षमता 8.18 गीगावाट (2024 तक) है और सरकार का लक्ष्य 2031-32 तक इसे 22.48 गीगावाट तक और 2047 तक 100 गीगावाट तक बढ़ाना है।
PHWR (प्रेशराइज्ड हेवी वाटर रिएक्टर) की तकनीक
PHWR एक प्रकार का परमाणु रिएक्टर है, जो भारी पानी (ड्यूटेरियम ऑक्साइड) का उपयोग शीतलन और मंदन के रूप में करता है। इसमें प्राकृतिक या समृद्ध यूरेनियम को ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। इस तकनीक का उपयोग भारत की परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में किया जा रहा है, और यह अधिक सुरक्षित और प्रभावी ऊर्जा उत्पादन का स्रोत है।
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मुआवजा और पुनर्वास की मांगप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांसवाड़ा यात्रा से पहले, स्थानीय आदिवासी समुदायों ने अपनी मांगों को लेकर आंदोलन तेज कर दिया है। इन समुदायों का कहना है कि प्रस्तावित परमाणु संयंत्र से प्रभावित परिवारों को न तो उचित मुआवजा मिला है और न ही उनका पुनर्वास सही तरीके से किया गया है। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि जब तक सरकार और परियोजना अधिकारियों द्वारा उनकी प्रमुख मांगों पर लिखित आश्वासन नहीं दिया जाता, तब तक उनका विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा। रोजगार में प्राथमिकता की मांगप्रदर्शनकारी चाहते हैं कि विस्थापित परिवारों को भूमि आवंटित की जाए और उन्हें परमाणु संयंत्र में रोजगार में प्राथमिकता दी जाए। BAP सांसद राजकुमार रोत ने कहा, "सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि एक परिवार को उसके जीवनकाल में दो बार विस्थापित नहीं किया जा सकता, लेकिन कई परिवार अब भी इस आदेश का उल्लंघन करते हुए दोबारा विस्थापित हो रहे हैं। इस मामले की गहन जांच होनी चाहिए।" | |
नियामक बोर्ड और परमाणु ऊर्जा की सुरक्षा
भारत में परमाणु ऊर्जा के सुरक्षित उपयोग के लिए परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) जिम्मेदार है। यह बोर्ड परमाणु ऊर्जा और विकिरण प्रौद्योगिकी के सुरक्षित उपयोग को सुनिश्चित करता है। AERB परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के अधीन स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करता है, जो परमाणु ऊर्जा से जुड़ी सुरक्षा मानकों का पालन करता है।