पीएम मोदी की योजना के साथ राजस्थान में खिलवाड़, मुद्रा लोन देने में बैंकों की कंजूसी

राजस्थान में पीएम मुद्रा योजना के तहत बैंकों ने ऋण वितरण लक्ष्य का 14.26% ही पूरा किया। सरकारी और निजी बैंकों की निष्क्रियता से स्वरोजगार की योजनाओं पर असर पड़ा है।

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Nitin Kumar Bhal
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केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी पीएम मुद्रा योजना (PM Mudra Yojana) का उद्देश्य छोटे उद्यमों (Small Enterprises) और स्वरोजगार (Self-Employment) को बढ़ावा देना है। लेकिन, राजस्थान में इस योजना का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है। वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में 37 प्रमुख बैंकों में से दो सरकारी बैंकों सहित 10 बैंकों ने एक भी मुद्रा ऋण (Mudra Loan) नहीं दिया। इसके परिणामस्वरूप केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा राज्य के लिए निर्धारित सालाना ऋण वितरण लक्ष्य का केवल 14.26 प्रतिशत ही पूरा हो सका।

यह स्थिति उन छोटे व्यापारियों (Small Traders) और स्वरोजगार करने वालों के लिए चिंता का कारण बन गई है, जिन्हें इस योजना के तहत वित्तीय सहायता की आवश्यकता थी। इस योजना का उद्देश्य विशेष रूप से उन छोटे व्यापारियों को मदद देना है, जिन्हें पारंपरिक बैंकों से ऋण प्राप्त करना मुश्किल होता है।

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पीएम मुद्रा योजना और बैंकों की भूमिका

पीएम मुद्रा योजना का उद्देश्य छोटे व्यापारियों और नए उद्यमियों को आसान शर्तों पर ऋण प्रदान करना है। इस योजना के तहत बैंकों द्वारा चार श्रेणियों शिशु, किशोर, तरुण और तरुण प्लस में ऋण वितरण किया जाता है। शिशु श्रेणी में नए व्यवसायियों को सहायता मिलती है, किशोर श्रेणी में मौजूदा व्यवसायों को विस्तार के लिए ऋण दिया जाता है, और तरुण श्रेणी में अधिक विकसित व्यवसायों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

राजस्थान में पीएम मुद्रा योजना के तहत वित्त वर्ष 2025-26 में 22,689.68 करोड़ रुपए के मुद्रा ऋण वितरित करने का लक्ष्य था। हालांकि, पहले तीन महीनों में केवल 3,885.02 करोड़ रुपए का ऋण ही वितरित किया जा सका, जो कि एक बड़ी चिंता का विषय है। इस निराशाजनक प्रदर्शन में सरकारी बैंकों की भूमिका अहम है, क्योंकि इन बैंकों ने कम से कम योगदान दिया है।

बैंकिंग विशेषज्ञ महेश शर्मा (Mahesh Sharma) का कहना है कि पीएम मुद्रा योजना सरकारी गारंटी के साथ है, लेकिन बैंक एनपीए (Non-Performing Assets) के डर से इस योजना के तहत ऋण वितरण से कतराते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस कारण छोटे व्यापारियों को पूंजी की कमी का सामना करना पड़ता है। शर्मा ने यह भी बताया कि यदि बैंकों का यह रवैया जारी रहा तो मुद्रा योजना से स्वरोजगार और छोटे उद्यमों (Small Enterprises) को बढ़ावा देने का लक्ष्य प्रभावित होगा, और बेरोजगारों को भी इसका फायदा नहीं मिलेगा।

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बैंकों का निष्क्रिय रवैया

केंद्र सरकार ने पीएम मुद्रा योजना को लागू करने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन बैंकों का निष्क्रिय रवैया इस योजना की सफलता में एक बड़ी बाधा साबित हो रहा है। सरकारी बैंक ऑफ इंडिया (Bank of India) और बैंक ऑफ महाराष्ट्र (Bank of Maharashtra) जैसे बड़े सरकारी बैंकों ने इस योजना के तहत एक भी मुद्रा ऋण नहीं दिया। इसके अलावा, निजी बैंकों जैसे साउथ इंडियन बैंक (South Indian Bank) और बीआरकेजीबी (BRKGB) ने भी इस दिशा में कोई खास कदम नहीं उठाया।

इस स्थिति को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि बैंकों में एनपीए (Non-Performing Assets) के बढ़ने का डर है, जिससे वे मुद्रा ऋण देने से बचते हैं। इससे छोटे व्यापारियों को आवश्यक पूंजी (Capital) नहीं मिल पाती, और उनकी योजनाओं में रुकावट आती है।

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मुद्रा योजना का लक्ष्य और वास्तविकता

मुद्रा योजना का लक्ष्य छोटे और नए उद्यमियों को पूंजी की उपलब्धता को सुनिश्चित करना है। लेकिन बैंकों के इस निष्क्रिय रवैये से यह योजना अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रही है। वित्त वर्ष 2024-25 में 4,43,861 आवेदकों को 20,417.42 करोड़ रुपए का ऋण वितरित किया गया था, जो निर्धारित लक्ष्य का 89.99 प्रतिशत था। वहीं, वित्त वर्ष 2023-24 में 16,57,011 आवेदकों को 18,516.98 करोड़ रुपए का ऋण वितरित किया गया था, जो लक्ष्य का 95.65 प्रतिशत था।

यह आंकड़े इस बात को स्पष्ट करते हैं कि इस योजना के तहत ऋण वितरण की गति पिछले वर्षों की तुलना में काफी धीमी रही है, और इसका मुख्य कारण बैंकों की निष्क्रियता और सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के प्रति बैंकों की अनदेखी है।

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बैंकों की जिम्मेदारी और सरकार का दायित्व

बैंकों की भूमिका इस योजना की सफलता में अहम है। उन्हें मुद्रा ऋण वितरण को प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि छोटे व्यापारियों और उद्यमियों को आवश्यक पूंजी मिल सके। इसके अलावा, सरकार को भी इस योजना को प्रभावी बनाने के लिए बैंकों को प्रोत्साहित करने के लिए कदम उठाने चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह बैंकों के लिए इस योजना के तहत निर्धारित लक्ष्यों को अधिक कठोर बनाएं, ताकि बैंकों को इस दिशा में अधिक सक्रिय किया जा सके।

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क्या सरकार को योजना पर पुनर्विचार करना चाहिए?

सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए और बैंकों को ऋण वितरण में सक्रिय रूप से शामिल करना चाहिए। सरकार को मुद्रा योजना की प्रक्रिया को और सरल और सुलभ बनाने के लिए पहल करनी चाहिए, ताकि छोटे व्यापारियों के लिए पीएम मुद्रा योजना के तहत बिना रुकावट के ऋण मिल सके।

राजस्थान के 5 प्रमुख बैंकों की स्थिति क्या है

बैंक                         ऋण दिया      लक्ष्य हासिल
एसबीआई                 368.07        10.65% 
बीओबी                    333.3          10.07%
पीएनबी                    335.5          22.44%
एचडीएफसी                87.93         6.45%
आईसीआईसीआई     535.14        27.34%

     (ऋण करोड़ में)

मुद्रा लोन योजना की चार श्रेणियां

शिशु : 50,000 रुपए तक
किशोर : 50.001 रुपए से 5 लाख तक
तरुण : 5,00,001 रुपए से 10 लाख तक
तरुण +: 10 लाख से अधिक 20 लाख रुपए तक

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स्वरोजगार और छोटे व्यापारों पर असर

पीएम मुद्रा लोन का सीधा असर स्वरोजगार और छोटे व्यापारों पर होता है, और यदि राजस्थान के बैंक का यह निष्क्रिय रवैया जारी रहता है तो इसका प्रभाव देश की रोजगार और विकास दर पर पड़ सकता है। छोटे और मध्यम व्यापारियों (Small and Medium Traders) को पूंजी उपलब्ध कराकर सरकार उन्हें रोजगार प्रदान करने का एक बड़ा अवसर देती है। इस अवसर का लाभ उठाना तभी संभव है जब बैंकों को सक्रिय किया जाए और राजस्थान में मुद्रा लोन के वितरण में तेजी लाई जाए।

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FAQ

1. पीएम मुद्रा योजना के तहत ऋण वितरण में बैंकों की भूमिका क्या है?
पीएम मुद्रा योजना में बैंकों का प्रमुख भूमिका है, क्योंकि इन बैंकों को छोटे व्यापारियों और उद्यमियों को मुद्रा ऋण वितरित करना होता है। लेकिन बैंकों का निष्क्रिय रवैया योजना की सफलता में बाधा डाल रहा है।
2. पीएम मुद्रा योजना के तहत किसे ऋण मिलता है?
इस योजना के तहत शिशु, किशोर, और तरुण श्रेणी के व्यापारियों को ऋण दिया जाता है। शिशु श्रेणी में नए व्यापारियों को, किशोर में मौजूदा व्यापारों को और तरुण में स्थापित व्यापारों को वित्तीय सहायता मिलती है।
3. 2025-26 के पहले तीन माह में राजस्थान में कितना मुद्रा ऋण वितरित हुआ?
2025-26 के पहले तीन महीनों में 3,885.02 करोड़ रुपये का मुद्रा ऋण वितरित किया गया, जो कि निर्धारित लक्ष्य का 14.26 प्रतिशत था।
4. बैंकों का मुद्रा ऋण देने से बचने का क्या कारण है?
बैंकों का मुख्य डर एनपीए (Non-Performing Assets) के बढ़ने का है, जिससे वे मुद्रा ऋण देने से बचते हैं। इसका असर छोटे व्यापारियों को मिलने वाली पूंजी पर पड़ता है।
5. सरकार को मुद्रा लोन के कम वितरण की स्थिति को लेकर क्या कदम उठाने चाहिए?
सरकार को बैंकों को सक्रिय करने के लिए और अधिक कठोर लक्ष्यों को निर्धारित करना चाहिए, ताकि मुद्रा ऋण वितरण प्रक्रिया को तेज किया जा सके और छोटे व्यापारियों को मदद मिल सके।

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