ACB का ढुलमुल रवैया : राजनेट के 500 टेंडर की जांच आगे नहीं बढ़ी, आखिर क्या रही होगी मजबूरी?

राजस्थान के सूचना और प्रौद्योगिकी विभाग के 500 टेंडरों की जांच में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं, लेकिन अब तक जांच में कोई प्रगति नहीं हो पाई है। एसीबी का ढुलमुल रवैया चिंता का विषय बन गया है।

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Amit Baijnath Garg
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मुकेश शर्मा @ जयपुर

राजस्थान का सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीओआईटी) पिछले कई साल से घोटालों को लेकर जब-तब घिरता ही रहा है। ऐसे ही एक मामले की सुनवाई के दौरान एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के तत्कालीन डीजी रविप्रकाश मेहरड़ा ने पिछले साल 6 सितंबर को राजस्थान हाई कोर्ट को डीओआईटी में पिछले 500 टेंडरों में भ्रष्टाचार के दृष्टिकोण से जांच का आश्वासन दिया था, लेकिन अभी तक एसीबी की जांच में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है।

यह हाल तो तब है, जब वर्ष 2023 में डीओआईटी के दफ्तर से ढाई करोड़ नगद और एक किलो सोना बरामद किया था। यह नगदी व सोना संयुक्त निदेशक वेद प्रकाश यादव ने ही ऑफिस की अलमारी में छिपा रखा था। इसके आधार पर ईडी ने डीओआईटी में टेंडर वाली फर्मों के जयपुर स्थित 12 ठिकानों पर छापे मारे थे। इनसे जुड़ी एक फर्म से 5.3 किलो सोना बरामद किया था। 

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ऐसे बढ़ा मामला

डीओआईटी ने 2017 में 160 करोड़ रुपए की कीमत करीब 15000 वाई-फाई डिवाइस लगाने का टेंडर मांगा था। बाद में टेंडर की कीमत 240 करोड़ रुपए कर दी और वाई-फाई डिवाइस बढ़ाकर 22,500 कर दिए थे। टेंडर की शर्त थी कि टेंडर में सफल कंपनी को उसके गोदाम में वाई-फाई डिवाइस आने पर ही 60 फीसदी भुगतान कर दिया जाएगा जोकि किया गया। 

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पीआईएल हुई थी दायर

मई, 2020 में एडवोकेट टीएन शर्मा की आरटीआई पर विभाग ने मात्र 1750 डिवाइस लगना बताया था। यह भी बताया कि टेंडर शर्त के अनुसार 1750 डिवाइस का शेष बचे 40 फीसदी भुगतान में से 30 फीसदी भुगतान भी कर दिया है। हालांकि 1750 में से मात्र 1632 डिवाइस ही कार्यरत बताई थीं। शर्मा ने इस मामले में वर्ष 2020 में ही एक पीआईएल दायर की थी। हाई कोर्ट ने इसे भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत जांच के लिए जरूरी राजस्थान सरकार की अनुमति नहीं मिलने के आधार पर निपटा दिया था। 

जांच की अनुमति देने से इनकार

अदालत के इस आदेश के खिलाफ रिव्यू पिटिशन की, तो अदालत ने सरकार को दो महीने में जांच की अनुमति देने के बिंदु पर फैसला लेने को कहा था। आदेश की पालना नहीं होने पर अवमानना याचिका दायर की, तो सरकार ने जांच की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।

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दो साल बाद भी कोई प्रगति नहीं

शर्मा ने बताया कि वर्ष 2022 में सरकार ने मात्र 5460 वाई-फाई डिवाइस लगना बताया था। जुलाई, 2025 में आरटीआई में दी जानकारी में भी 10 जुलाई तक 5,460 डिवाइस लगना ही बताया है। 

शिकायत पर एसीबी का छापा, फिर एफआर

शर्मा ने बताया कि दिसंबर, 2019 में उनकी शिकायत पर एसीबी ने राजनेट के अधिकारी कुलदीप यादव के ठिकानों पर छापा मारा था। यादव वाई-फाई डिवाइस टेंडर की प्रक्रिया में शामिल था। हालांकि बाद में एसीबी ने मामले में एफआर लगा दी थी और एसीबी कोर्ट ने भी इसे स्वीकार कर​ लिया था। 

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हाई कोर्ट में चुनौती

एफआर स्वीकार करने के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने एसीबी के डीजी को बुलाया था। तत्कालीन डीजी एसीबी रविप्रकाश मेहरड़ा 6 सितंबर, 2024 को कोर्ट में हाजिर हुए थे। इस दौरान ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता टीएन शर्मा के सुझाव को स्वीकार करते हुए एसीबी को डीओआईटी में पिछले पांच साल में हुए टेंडरों में भ्रष्टाचार के एंगल से जांच करने के आदेश दिए थे। 

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500 टेंडरों की होनी है जांच

इसके बाद 24 अप्रैल, 2025 को सुनवाई के दौरान अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सुनील सिहाग कोर्ट में हाजिर हुए थे। उन्होंने राजस्थान डीओआईटी विभाग के 500 टेंडरों की जांच करने व इसके लिए एसआईटी गठित होने की जानकारी देते हुए रिपोर्ट पेश करने के लिए 8 सप्ताह का समय मांगा था, लेकिन इसके बाद भी अब तक मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है।

FAQ

1. एसीबी की 500 टेंडरों की जांच में क्या प्रगति हुई है?
अभी तक इस जांच में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है। एसीबी ने समय मांगा है, लेकिन जांच में कोई ठोस परिणाम नहीं आए हैं।
2. क्या सरकार ने कंवरलाल मीणा की सजा कम करने के लिए कदम उठाया है?
सरकार ने कंवरलाल मीणा की सजा कम करने के लिए राज्यपाल से सकारात्मक टिप्पणी की है, लेकिन यह मामला अभी पूरी तरह सुलझा नहीं है।
3. क्या एसीबी ने किसी आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की है?
एसीबी ने कुलदीप यादव के ठिकानों पर छापे मारे थे, लेकिन बाद में इसे एफआर (फाइनल रिपोर्ट) के साथ बंद कर दिया गया।

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