अडानी के खिलाफ फैसला लिखने वाले जज को मिली नियुक्ति, दो ट्रांसफर के बाद हुए एपीओ

राजस्थान के जयपुर में कमर्शियल कोर्ट में अडानी समूह के खिलाफ फैसला देने वाले जज दिनेश कुमार गुप्ता को नई पोस्टिंग मिल गई है। उन्हें जयपुर मेट्रोपॉलिटन द्वितीय की लेबर कोर्ट नंबर 1 का जज बनाया गया है।

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Mukesh Sharma
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur. अडानी समूह के खिलाफ फैसला देने वाले जज दिनेश कुमार गुप्ता को नई नियुक्ति मिल गई है। उन्हें फैसला देने के बाद दो बार ट्रांसफर करने के पश्चात एपीओ कर दिया था। जयपुर की कमर्शियल कोर्ट ने अडानी समूह की कंपनी के राजस्थान सरकार से अवैध रूप से 1400 करोड़ रुपए लेने का खुलासा किया था। अडानी के खिलाफ फैसला लिखने वाले जज को मिली नियुक्ति।

यह फैसला जज दिनेश कुमार गुप्ता ने पांच जुलाई, 2025 को लिखा था। उन्होंने अपने फैसले में अडानी समूह की कंपनी पीकेसीएल पर 50 लाख रुपए का हर्जाना भी लगाया। साथ ही सीएजी या अन्य एजेंसी से जांच कराने को कहा। यह कंपनी राजस्थान सरकार को कोयला सप्लाई करती है।

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जज गुप्ता जयपुर में संभालेंगे लेबर कोर्ट 

जज गुप्ता को 5 जुलाई को ही ट्रांसफर कर ब्यावर प्रिंसिपल डीजे नियुक्त कर दिया था। इसके बाद उन्हें दो दिसंबर को ब्यावर से जालोर ट्रांसफर कर दिया। ट्रांसफर होने पर वह परेशान होकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। 

फिर उन्हें जालोर से एपीओ कर दिया गया। राजस्थान हाई कोर्ट की ओर से 30 दिसंबर को जारी आदेश में जज गुप्ता को जयपुर मेट्रोपॉलिटन द्वितीय की लेबर कोर्ट नंबर वन का जज बनाया है। उनकी नियुक्ति जज अनिल दाधीच की जगह हुई है। जज दाधीच को अलवर में फैमिली कोर्ट नंबर वन का जज बनाया गया है। 

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जज गुप्ता की सुप्रीम कोर्ट ने की तारीफ

ट्रांसफर होने पर जज गुप्ता सुप्रीम कोर्ट की शरण में पहुंचे थे। इस पर सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जॉयमाला बागची और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की बेंच ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि जज गुप्ता प्रतिभाशाली हैं। इसलिए उन्हें जेडीए में विधि निदेशक और विधिक सेवा प्राधिकरण में पोस्टिंग दी गई थी। दोनों पोस्टिंग को सजा के तौर पर नहीं माना जा सकता। 

शीर्ष कोर्ट ने जज गुप्ता की गंभीर सेहत के कारण जयपुर में निरंतर इलाज चलने, रिटायरमेंट में 10 महीने बचने और टीचर पत्नी के रिटायरमेंट में कम समय होने के आधार पर उनके प्रतिवेदन पर दो सप्ताह में सहानुभतिपूर्वक विचार करने को कहा।

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अडानी को करनी थी कोयला सप्लाई

दरअसल, राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम (आरआरवीयूएनएल) जून, 2007 में छत्तीसगढ़ के परसा ईस्ट व कांटे बेसिन कोयले की खान आवंटित हुई थी। उसने कोयले का खनन करने व इसे राजस्थान के थर्मल पॉवर प्लांट तक पहुंचाने का अडानी समूह के साथ एग्रीमेंट किया। 

इसके लिए आरआरवीयूएनएल ने अडानी के साथ परसा कांटे कोयलिरी लि. (पीकेसीएल) नाम की संयुक्त कंपनी बनाई। इसमें मेजर शेयर होल्डर अडानी एंटरप्राइजेज है। पीकेसीएल पर खदान से निकला हुआ कोयला नजदीकी रेलवे लाइन तक पहुुंचाने की जिम्मेदारी थी। इसके लिए खदान से लेकर निकटतम स्टेशन तक रेलवे साइडिंग तैयार होनी थी। कंपनी ने यह तैयार नहीं की। दोनों पक्षों ने अस्थायी रूप से रोड ट्रांसपोर्ट से रेलवे स्टेशन तक कोयला पहुंचाना तय किया।

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जज गुप्ता की कोर्ट में आया मामला

ओरिजनल एग्रीमेंट में रोड ट्रांसपोर्टेशन का कोई जिक्र नहीं था। पीकेसीएल ने इसके लिए आरआरवीयूएनएल से पुनर्भुगतान मांगा। उसे करीब 1400 करोड़ रुपए का भुगतान भी किया। पीकेसीएल का आरोप था कि आरआरवीयूएनएल ने भाड़े के पुनर्भुगतान करने में देरी की है। इस कारण कंपनी को अपनी कर्ज ली गई कैपीटल से भुगतान करना पड़ा और उसे ब्याज का भारी नुकसान हुआ है। 

पीएकेसीएल ने करीब 65 करोड़ रुपए का ब्याज मांगा और नहीं देने पर इसके लिए कमर्शियल कोर्ट में दावा किया। आरआरवीयूएनएल ने एग्रीमेंट में रोड ट्रांसपोर्टेशन के भाड़े के पुनर्भुगतान में देरी पर ब्याज देने का प्रावधान नहीं होने पर मामले को रद्द करने की गुहार की।  

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कोर्ट ने लगा दिया 50 लाख का हर्जाना

कमर्शियल कोर्ट ने अपने फैसले में माना कि रेलवे साइडिंग का निर्माण पीकेसीएल या अडानी माइनिंग प्रा. लि. को ही करना था, लेकिन उसने यह जिम्मेदारी नहीं निभाई। खदान से लेकर कमालपुरा, करांजी व रामानुजनगर रेलवे स्टेशन तक ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा आरआरवीयूएनएल ने दिया है। 

कोर्ट ने कहा कि जब पीकेसीएल खदान से लेकर निकटतम रेलवे स्टेशन तक रेलवे साइडिंग का निर्माण करने में फेल रहा, तो वह ट्रांसपोर्टेशन के साधन की परवाह किए बिना कोयले की डिलीवरी से कैसे बच सकता था। कोर्ट ने कहा है कि पीकेसीएल ने गलत तरीके से 1,400 करोड़ से अधिक की राशि प्राप्त की है।

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हाई कोर्ट से हो गया स्टे

कोर्ट ने कंपनी पर 50 लाख रुपए का जुर्माना लगाने के साथ सरकार को मामले की सीएजी से स्पेशल जांच करवाने को कहा था। पीकेसीएल ने कमर्शियल कोर्ट के 5 जुलाई के फैसले के खिलाफ राजस्थान हाई कोर्ट में अपील की थी। हाई कोर्ट ने 18 जुलाई को 50 लाख रुपए के जुर्माने तथा जांच करवाने के निर्देश पर रोक लगा दी थी। मामले में अगली सुनवाई 27 जनवरी को होगी।

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