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Photograph: (the sootr)
Jaipur. राजस्थान के जयपुर की कमर्शियल कोर्ट का वह फैसला फिर चर्चा में है, जिसमें अडानी समूह की कंपनी के राजस्थान सरकार से अवैध रूप से 1400 करोड़ रुपए वसूलने का खुलासा हुआ था। कमर्शियल कोर्ट में यह फैसला लिखने वाले जज दिनेश कुमार गुप्ता को दो बार ट्रांसफर किए जाने के पश्चात अब एपीओ कर दिया गया है।
फैसले के दिन ही तबादला
फैसले के दिन ही 5 जुलाई को जज दिनेश कुमार गुप्ता का ब्यावर प्रिंसिपल डीजे के पद पर ट्रांसफर किया गया था। फिर उनको दो दिसंबर को ब्यावर से जालोर भेज दिया गया। ट्रांसफर से परेशान होकर वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जहां उनके ट्रांसफर मामले में सहानुभूतिपूर्वक विचार करने को कहा। अब उन्हें एपीओ करने से अडानी समूह का यह मामला फिर चर्चा में है।
सरकार ने कहा, इसलिए दे दी रकम
सुनवाई के दौरान सरकार ने कोर्ट में कहा कि कोयला सप्लाई बंद होने और इससे बिजली उत्पादन में अड़चन से राज्य को होने वाले आर्थिक नुकसान के भय के कारण उसे पीकेसीएल को परिवहन के 1400 करोड़ रुपए दिए यानी अडानी एंटरप्राइजेज की बहुमत वाली इस कंपनी ने सरकार की कंपनी आरआरयूएनएल से बांह मरोड़कर एग्रीमेंट के विपरीत वसूली की।
पीकेसीएल अडानी समूह व आरआरवीयूएनएल की संयुक्त कंपनी है। इसमें अडानी के शेयर 50 फीसदी से अधिक हैं।
आखिर पूरा मामला है क्या
राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को जून, 2007 में छत्तीसगढ़ के परसा ईस्ट व कांटे बेसिन कोयले की खान आवंटित हुई। अगस्त, 2007 को निगम का अडानी एंटरप्राइजेज से कोयला खनन करने व इसे राजस्थान के थर्मल पॉवर प्लांट तक पहुंचाने का एग्रीमेंट हुआ।
एग्रीमेंट के अनुसार अडानी एंटरप्राइजेज को कोयला खनन करने से लेकर ट्रांसपोर्टेशन व उत्पादन निगम के थर्मल प्लांट तक पहुंचाने का काम करना था। इसके लिए अडानी एंटरप्राइजेज (AAL) व राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने पारसा कांटे कोयलिरी लिमिटेड (PKCL) नाम की संयुक्त कंपनी बनाई। इसमें मेजर शेयर होल्डर अडानी समूह है।
एग्रीमेंट के तहत PKCL को माइन डवलपर और ऑपरेटर (MDO) के रूप में काम करना था। एमडीओ मॉडल के तहत पीकेसीएल खनन संचालन कार्य संभालती और आरआरवीयूएनएल को कोयला सप्लाई करती। इसके बदले आरआरवीयूएनएल हर टन कोयले के लिए तय मूल्य के आधार पर भुगतान करता। अडानी को केवल खनन और सप्लाई का जिम्मा दिया था।
एग्रीमेंट के अनुसार, खनन से निकला कोयला नजदीकी रेलवे लाइन तक पहुंचाना पीकेसीएल की जिम्मेदारी है। इसके लिए खदान से लेकर निकटतम रेलवे स्टेशन तक रेलवे स्लाइडिंग तैयार होनी थी। हालांकि मार्च, 2013 में खनन शुरू होने पर रेलवे लिंक तैयार नहीं था। इस कारण दोनों पक्षों ने अस्थायी रूप से रोड ट्रांसपोर्ट से रेलवे स्टेशन तक कोयला पहुंचाना तय किया था। 2013 से कोयला इसी प्रकार से सप्लाई होने शुरू भी हो गया।
हालांकि ओरिजनल एग्रीमेंट में रोड ट्रांसपोर्टेशन का कोई जिक्र नहीं था। पीकेसीएल ने आरआरवीयूएनएल से भाडे का पुनर्भुगतान मांगा। आरआरवीयूएनएल ने करीब 1400 करोड़ रुपए का भुगतान किया भी। इस भाड़े को पीकेसीएल और आरआरवीयूएनएल के बीच कई सालों तक बात होती रही, लेकिन अंतिम नतीजे तक नहीं पहुंची।
पुनर्भुगतान करने में देरी
अडानी के नेतृत्व वाली पीकेसीएल ने कहा कि आरआरवीयूएनएल ने रोड ट्रांसपोर्ट का भाड़े के पुनर्भुगतान करने में देरी की है। इस पर कंपनी को अपनी कर्ज ली गई पूंजी से भुगतान करना पड़ा। इस कारण उसे ब्याज का भारी नुकसान हुआ है। पीकेसीएल ने आरआरवीयूएनएल से करीब 65 करोड़ रुपए ब्याज के मांगे और नहीं देने पर कमर्शियल कोर्ट में दावा किया। आरआरवीयूएनएल ने एग्रीमेंट में रोड ट्रांसपोर्टेशन के भाड़े के पुनर्भुगतान में देरी पर ब्याज देने का प्रावधान नहीं होने पर मामले को रद्द करने की गुहार की।
कोर्ट का अडानी के खिलाफ फैसला
कोर्ट ने 105 पेज के 502 पैराग्राफ में डिटेल फैसला लिखाया है। कोर्ट ने कहा है कि जनता के पैसे पर बोझ डालने वाले ऐसे अविवेकपूर्ण सौदों को न तो अनदेखा किया जा सकता है और ना बिना जवाबदेही के छोड़ा जा सकता है। रिकॉर्ड से साफ है कि माइन हैड लोडिंग प्वाइंट से लेकर कमालपुरा, करांजी व रामानुजनगर रेलवे स्टेशन तक रोड ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा आरआरवीयूएनएल ने दिया है।
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फैसले में यह भी कहा गया
फैसले में कहा है कि स्वीकृत तथ्य है कि पीकेसीएल को ही खनन, वॉशिंग, ट्रांसपोर्ट व डिलीवरी के काम करके भाड़ा भुगतान आधार पर कोयला रेल से आरआरवीयूएनएल के थर्मल प्लांट तक पहुंचाना था। रेलवे साइडिंग का निर्माण पीकेसीएल या अडानी माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड को ही करना था।
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अडानी माइनिंग की जिम्मेदारी
कोर्ट ने भुगतान के प्रारूप, ट्रांसपोर्ट कंपनी के अडानी माइनिंग के नाम से जारी बिल, आरआरवीयएनएल की ओर से पीकेसीएल को अक्टूबर, 2013 तक रामानुज नगर और अप्रैल, 2015 तक कोल ब्लॉक तक कॉमन रेलवे कॉरिडोर के निर्माण की मॉनिटरिंग करने और हर महीने इस काम की प्रोग्रेस रिपोर्ट भेजने के पत्र को परखा। इससे यह साबित हुआ कि रेलवे साइडिंग निर्माण की जिम्मेदारी पीकेसीएल या अडानी माइनिंग की थी, ना कि आरआरवीयूएनएल की।
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कोयले की डिलीवरी से बच कैसे सकता था
कोर्ट ने कहा है कि यह कल्पना से परे है कि जब पीकेसीएल खदान से लेकर निकटतम रेलवे स्टेशन तक रेलवे साइडिंग का निर्माण करने में फेल रहा, तो वह कोयला डिलीवरी से कैसे बच सकता था। कैसे वह अपनी गलती को अनदेखा करके रोड ट्रांसपोर्ट का खर्चा उठाने से बच सकता था।
पीकेसीएल ने सीएमडीए ही नहीं किया पेश
कोर्ट ने फैसले में कहा है कि पीकेसीएल ने सुनवाई के दौरान कोल माइनिंग व डिलीवरी एग्रीमेंट यानी कोयला सीएमडीए ही पेश नहीं किया, जबकि इस एक दस्तावेज से ही यह पता चलता कि आरआरवीयूएनएल को रोड ट्रांसपोर्ट का भाड़ा देना था या नहीं।
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भुगतान की शर्त मंजूर नहीं
आरआरवीयूएनएल ने कभी भी रोड ट्रांसपोर्टेशन के भुगतान की समय-सीमा तय करने व देरी पर ब्याज का भुगतान की शर्त को मंजूर नहीं किया। अपने ही एक पार्टनर के खिलाफ ब्याज वसूली के लिए पीकेसीएल ने बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की मीटिंग में कोई प्रस्ताव पारित होने, आरआरवीयूएनएल के प्रतिनिधि डायरेक्टर की ओर से विरोध दर्ज करवाने, उनके विरोध को बहुमत आधार पर दरकिनार करने और कोर्ट में दावा करने के लिए अधिकृत व्यक्ति से संबंधित मीटिंग के मिनट्स और पारित प्रस्ताव आदि पेश नहीं किए हैं।
कोर्ट ने इस बात पर भी आश्चर्य जताया है कि आरआरवीयूएनएल ने इस संबंध में कोई मुद्दा नहीं बनाया। आरआरवीयूएनएल ने दावे के विरुद्ध प्रभावशाली तरीके से पैरवी नहीं की। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने माना कि अडानी की कंपनी ने बांह मरोड़कर वसूले 1400 करोड़ रुपए।
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गलत तरीके से राशि प्राप्त की
कोर्ट ने कहा कि पीकेसीएल ने खदान से रेलवे स्टेशन तक सड़क परिवहन के लिए 1400 करोड़ रुपए लिए, लेकिन वित्तीय खातों का ओरिजनल रिकॉर्ड पेश नहीं किया। फैसले में कहा है कि पीकेसीएल ने गलत तरीके से 1,400 करोड़ से अधिक की राशि प्राप्त की है। कोर्ट ने कंपनी पर 50 लाख रुपए का जुर्माना लगाने के साथ राज्य सरकार को मामले की सीएजी यानी CAG से स्पेशल जांच करवाने को कहा था।
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हाई कोर्ट से हुआ स्टे
पीकेसीएल ने कमर्शियल कोर्ट के 5 जुलाई के फैसले के खिलाफ राजस्थान हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट ने 18 जुलाई को 50 लाख रुपए के जुर्माने तथा जांच करवाने के निर्देश पर रोक लगा दी है। मामले में अगली सुनवाई 27 जनवरी को होगी।
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