कांग्रेस जिलाध्यक्षों की दौड़ में पूर्व और वर्तमान विधायक भी शामिल, राहुल गांधी की योजना से बढ़ी ताकत

राहुल गांधी की योजना के तहत राजस्थान कांग्रेस के जिलाध्यक्षों की दौड़ में विधायक, पूर्व विधायक और वर्तमान जिलाध्यक्ष शामिल हुए हैं। यह कदम संगठन में नई ऊर्जा देने और जिलाध्यक्षों को अधिक ताकतवर बनाने के लिए उठाया गया है।

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Amit Baijnath Garg
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur. संगठन सृजन अभियान के तहत राजस्थान में कांग्रेस जिलाध्यक्षों की दौड़ में पूर्व और वर्तमान विधायकों सहित वर्तमान जिलाध्यक्ष भी शमिल हो गए हैं। ऐसा राहुल गांधी की जिलाध्यक्षों को ज्यादा ताकतवर बनाने की मुहिम के चलते हुआ है। राहुल गांधी की योजना है कि सभी प्रकार के चुनाव में उम्मीदवारों के चयन में जिलाध्यक्षों की भूमिका सबसे ज्यादा प्रभावी होने के साथ ही उनकी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष तक सीधी पहुंच होनी चाहिए।

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किसी भी कीमत पर जुगाड़

राजस्थान में जल्दी ही नगर पालिकाओं के चुनाव होने हैं। इन चुनावों के टिकट बंटवारे में विधायक, पूर्व विधायक, विधायक प्रत्याशी, बड़े नेताओं सहित भावी टिकटार्थियों और प्रदेश पदाधिकारियों का दखल रहता ही है। टिकट बांटने की यह अधिकारिता ही नेताओं को जिलाध्यक्ष बनने को प्रेरित कर रही है। नए दावेदारों के साथ ही वर्तमान जिलाध्यक्ष किसी भी कीमत पर एक और टर्म अध्यक्ष बने रहने की जुगाड़ में लगे हुए।  

रायशुमारी अंतिम चरण में

एआईसीसी ने जिलाध्यक्षों के चयन के लिए राजस्थान के 50 जिलों में केंद्रीय पर्यवेक्षक लगाए थे। इनमें से अधिकांश ने कांग्रेस नेताओं सहित समाज के विभिन्न वर्गों से मुलाकात करके जिलाध्यक्ष के संभावित नाम जाने हैं। कुछ जिलों में यह काम अंतिम चरण में है और जल्दी ही यह पर्यवेक्षक 6-6 नामों के पैनल बनाकर देंगे। 

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दखल नहीं होने पर विश्वास मुश्किल 

कांग्रेस आलाकमान ने जिलाध्यक्षों के चयन में सांसद, विधायक या बड़े नेता की सिफारिश या दखल नहीं होने के निर्देश दिए हैं। इस नई व्यवस्था से प्रदेश के कई बड़े नेता चिंता में हैं। इन नेताओं को अब तक अपनी मर्जी का जिलाध्यक्ष बनाने की आदत पड़ चुकी है। इस निर्देश पर एकबारगी विश्वास करना मुश्किल लग रहा है। 

सबको चाहिए पद

विधायक व सांसदों सहित स्थापित नेता अपने जा​तीय आधार सहित राजनीतिक समीकरणों में कोई सेंध नहीं चाहते। इसलिए विधायक और सांसद नियुक्तियां अपने राजनीतिक समीकरण के अनुसार करवाते थे। कांग्रेस पार्टी के इतिहास को देखते हुए इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है कि बड़े नेता जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में कोई दखल नहीं देंगे। यही कारण है कि कई विधायक, पूर्व मंत्री और पूर्व प्रत्याशी स्वयं ही जिलाध्यक्ष बनने की दौड़ में शामिल हो गए हैं। 

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केंद्र को भेजी जाएगी 6 नामों की लिस्ट

केंद्रीय पर्यवेक्षक हर जिले में कम से कम सात दिन रहकर कार्यकर्ताओं, प्रबुद्धजनों और स्थानीय नागरिकों से संवाद कर रहे हैं। इस प्रक्रिया के बाद पर्यवेक्षक छह नामों की अनुशंसा करते हुए अपनी रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को सौंपेंगे। इसके बाद प्रदेश में जिलाध्यक्षों की औपचारिक घोषणा की जाएगी। 

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नई ऊर्जा देना है उद्देश्य

प्रदेश कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि पार्टी को नई ऊर्जा देने की शुरुआत जिलाध्यक्षों से की जा रही है। इसी मकसद से प्रदेश कांग्रेस कमेटी और केंद्रीय पर्यवेक्षक मिलकर इस चयन प्रक्रिया को पारदर्शी और सहभागी बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। 

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जिलाध्यक्षों की राय होगी अहम

राहुल गांधी के फॉर्मूले के तहत इस बार जिलाध्यक्षों को संगठन में अधिक ताकतवर बनाकर पार्टी के मुख्य आधार के तौर पर तैयार किया जाएगा। इसका उद्देश्य यह भी है कि भविष्य में जिलाध्यक्ष अपने विचार सीधे हाईकमान तक पहुंचा सकें। भविष्य में लोकसभा और विधानसभा प्रत्याशियों के चयन में भी जिलाध्यक्ष की राय अहम मानी जाएगी। इसलिए ही जिलाध्यक्षों को न केवल पार्टी की रणनीति में केंद्र में रखा जाएगा, बल्कि उन्हें लंबे समय तक संगठन की रीढ़ के समान तैयार किया जाएगा।

FAQ

1. राहुल गांधी का जिलाध्यक्षों को ताकत देने का उद्देश्य क्या है?
राहुल गांधी का उद्देश्य जिलाध्यक्षों को पार्टी संगठन में अधिक ताकतवर बनाना है, ताकि वे उम्मीदवारों के चयन में अहम भूमिका निभा सकें और उनका सीधा संपर्क पार्टी हाईकमान से हो।
2. कांग्रेस में जिलाध्यक्षों के चयन की प्रक्रिया कैसे चल रही है?
कांग्रेस आलाकमान ने जिलाध्यक्षों के चयन के लिए 50 जिलों में केंद्रीय पर्यवेक्षकों को भेजा था। पर्यवेक्षक कार्यकर्ताओं से मुलाकात करके छह नामों का पैनल तैयार कर रहे हैं, जो केंद्रीय नेतृत्व को भेजा जाएगा।
3. क्या कांग्रेस में जिलाध्यक्षों के चयन में नेताओं का दखल बंद हो जाएगा?
कांग्रेस आलाकमान ने जिलाध्यक्षों के चयन में नेताओं के दखल को रोकने के निर्देश दिए हैं। हालांकि, कई बड़े नेता चिंतित हैं क्योंकि वे आम तौर पर अपनी मर्जी से जिलाध्यक्ष नियुक्त करते रहे हैं।

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