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Photograph: (the sootr)
योगेंद्र योगी @ जयपुर
यूं तो राजस्थान की भजनलाल सरकार जनहित के मुद्दों पर समय-समय पर फैसले ले रही है, लेकिन बहुत सारे मामलों में ऐसी स्थिति आई है, जब सरकार ने राजस्थान हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर ही काम किया है। भजनलाल सरकार ने सोमवार को अपने कार्यकाल के दो साल पूरे किए हैं।
जिस तरह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने जनहित के मामलों पर लगातार निर्देश दिए हैं, उससे यही प्रतीत होता है कि सरकार सिर्फ कोर्ट के निर्देशों पर ही काम कर रही है।
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डबल इंजन की सरकार का नारा
राजस्थान में 2023 में जब विधानसभा चुनाव हुए, तब भाजपा की तरफ से डबल इंजन की सरकार का नारा दिया गया। दावा यह किया गया कि केंद्र और राज्य की सरकार मिलकर राजस्थान के विकास को पंख लगा देंगी। इसलिए राजस्थान में भाजपा का सत्ता में आना जरूरी है।
मतदाताओं ने चुनाव में भाजपा पर भरोसा जताकर उसे सत्ता की चाबी सौंप दी। जनहित के मामलों में कोर्ट के लगातार निर्देशों से यही संदेश जा रहा है कि दो साल बीतने के बाद भी सत्ता की इस चाबी से विकास का दरवाजा खोलने की जद्दोजहद चल रही है।
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आवारा कुत्तों व जानवरों पर प्रसंज्ञान
हाई कोर्ट के जस्टिस कुलदीप माथुर और जस्टिस रवि चिरानिया की खंडपीठ ने स्वतः संज्ञान याचिका पर आवारा कुत्तों को लेकर सख्त फैसला लेते हुए नगर निकायों को निर्देश जारी किए। कोर्ट ने नगर निकायों से कहा कि वे शहर की सड़कों से आवारा कुत्तों और अन्य जानवरों को हटाए और सुनिश्चित करें कि उन्हें न्यूनतम शारीरिक नुकसान पहुंचे।
कोर्ट ने कहा कि यदि कोई भी व्यक्ति नगर निकायों को आवारा पशुओं को हटाने से रोकता है, तो निकाय ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा। शीर्ष कोर्ट ने सड़कों और हाईवे पर घूम रहे आवारा पशुओं को लेकर सख्त रुख अपनाया और सभी राज्यों के लिए निर्देश जारी किए।
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सड़क हादसों में मौतों पर प्रसंज्ञान
राजस्थान में लगातार हो रही सड़क दुर्घटनाओं और इनमें लोगों की मौतों पर हाई कोर्ट ने नवंबर में स्वत: संज्ञान लिया। कोर्ट ने राज्य व केंद्र सरकार से विस्तृत जवाब और रोड सेफ्टी एक्शन प्लान मांगा। मामला सिर्फ दुर्घटनाओं का नहीं, बल्कि नागरिक के जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) से जुड़ा हुआ है।
सड़क हादसों पर अदालत ने सख्त रुख अपनाया और जल्द ही ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए। इसमें अवैध ढाबों और हाईवे पर रात में खड़े वाहनों पर कार्रवाई के निर्देश भी शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी फलोदी में हुए भीषण सड़क हादसे (15 लोगों की मौत) पर भी स्वत: संज्ञान लिया।
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प्रदेश में न सड़क सुरक्षित, ना स्कूल
झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में जुलाई में सरकारी स्कूल की छत गिरने से 7 मासूम बच्चों की मौत हो गई थी। हाई कोर्ट की खंडपीठ ने प्रदेश में स्कूलों के जर्जर भवनों पर लिए गए स्वप्रेरित प्रसंज्ञान मामले में मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा था कि सरकारी स्कूल व अस्पताल में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है।
स्थिति यह है कि निजी स्कूलों में भीड़ है, जबकि सरकारी स्कूलों में बच्चों की कमी है। आमजन पढ़ाई-दवाई और कमाई के लिए बाहर जाता है। झालावाड़ स्कूल हादसे के बाद सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारने का काम कर रही है, लेकिन हादसे से पहले इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम क्यों नहीं किया गया। राजस्थान सरकार की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में 5,667 स्कूल जर्जर हालत में मिले। इनमें 86,934 कमरे जर्जर मिले थे।
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सरकार देखती रही, इको जोन में होटल बनते रहे
सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी के सख्त निर्देशों के बाद सरिस्का के आसपास बने अवैध होटलों और गतिविधियों पर कार्रवाई हो रही है। कोर्ट ने इको-सेंसिटिव जोन के नियमों को लागू करने और अवैध निर्माणों को बंद करने का आदेश दिया है। इस पर स्थानीय प्रशासन अब कार्रवाई कर रहा है, जिसमें कई होटलों को सील किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरिस्का के आसपास अवैध खनन और अनधिकृत निर्माणों (होटल-रिसॉर्ट) को रोकने के निर्देश दिए हैं, क्योंकि यह क्षेत्र इको-सेंसिटिव जोन के तहत आता है। इन निर्देशों के बाद अलवर जिला प्रशासन ने अवैध होटलों और व्यावसायिक गतिविधियों को बंद करने के लिए नोटिस जारी करना शुरू कर दिया है। कुछ होटलों को सील भी किया गया है।
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सरकार की नाक के नीचे प्रदूषण
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में जयपुर की जल महल झील में प्रदूषण को लेकर हेरिटेज नगर निगम को फटकार लगाई है। शीर्ष कोर्ट ने टिप्पणी की कि झील को नुकसान पहुंचाकर जयपुर स्मार्ट सिटी कैसे बनेगा।
राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संस्थान को झील के जीर्णोद्धार और प्रदूषण रोकने की विस्तृत रिपोर्ट देने का आदेश दिया है। साथ ही झील के पास रात्रि बाजार और वेंडिंग गतिविधियों पर रोक लगा दी है, क्योंकि सीवरेज का पानी और अन्य गंदगी झील में जा रही है। यह मामला एनजीटी के आदेशों को चुनौती देने के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।
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