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Photograph: (TheSootr)
राजस्थान में दवाओं पर जीएसटी (GST) स्लैब कम होने के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि मरीजों को दवाओं की कीमतों में कमी देखने को मिलेगी। लेकिन असलियत कुछ और ही थी। पड़ताल में यह सामने आया है कि कुछ दवा कंपनियों ने नियमों का उल्लंघन करते हुए दवाओं की पुरानी अधिकतम खुदरा कीमत (MRP) काटकर नई अधिक कीमतें चिपका दी हैं। इससे जीएसटी का लाभ मरीजों तक नहीं पहुंचा, बल्कि दवाइयां और महंगी हो गईं।
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दवाओं पर जीएसटी स्लैब में की गई कमी
चलिए पहले समझते हैं कि जीएसटी स्लैब में कमी का क्या प्रभाव था। भारतीय सरकार ने दवाओं पर जीएसटी स्लैब को घटाकर मरीजों के लिए राहत देने की योजना बनाई थी। इसका उद्देश्य था कि मरीजों को सस्ती दवाएं मिलें और दवाओं की कीमतों में कमी आए। इसके साथ ही दवा कंपनियों को भी उत्पादों की कीमतें घटाने का निर्देश दिया गया था।
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दवा कंपनियों द्वारा नियमों का उल्लंघन
हालांकि, दवा कंपनियों ने इस मौके का गलत फायदा उठाया। जीएसटी में कमी के बाद सरकार ने यह छूट दी थी कि कंपनियां साल में 10 फीसदी तक कीमतें बढ़ा सकती हैं, लेकिन यह छूट केवल नए उत्पादों के लिए लागू होती है, जो 1 सितंबर 2025 के बाद लॉन्च किए गए हों। कुछ कंपनियों ने इस नियम का गलत तरीके से पालन किया।
इन कंपनियों ने पहले दवाओं की कीमतों में 10 फीसदी की बढ़ोतरी की, फिर उस पर जीएसटी (GST) की गणना इस प्रकार से की कि कीमतें घटने के बजाय और बढ़ गईं। इस प्रक्रिया ने ना केवल दवाओं की कीमतों को महंगा किया, बल्कि मरीजों को मिलने वाला लाभ भी छीन लिया।
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दवाओं पर नई एमआरपी का इस्तेमाल
पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ दवा कंपनियों ने दवाओं के पैकेटों पर पुरानी एमआरपी (MRP) काटकर नई एमआरपी चिपका दी है। इन पैकेटों पर निर्माण की तिथि सितंबर 2025 से पहले की अंकित है, जबकि नई एमआरपी के साथ उन्हें बाजार में बेचा जा रहा है। यह एक सीधी धोखाधड़ी (Fraud) है और यह मरीजों के अधिकारों का उल्लंघन करता है।
फार्मा सेक्टर के विशेषज्ञों का मत
फार्मा सेक्टर से जुड़े विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सीधे तौर पर मरीजों के साथ धोखाधड़ी है। उनका कहना है कि अगर कोई दवा 1 सितंबर 2025 से पहले बनाई गई थी, तो उस पर 10 फीसदी की बढ़ोतरी करना अवैध है। इसके बावजूद, कुछ कंपनियों ने इस नियम का उल्लंघन करते हुए दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी की और उसे जीएसटी स्लैब में बदलाव के कारण सही ठहराने की कोशिश की। इससे मरीजों को महंगी दवाइयों के बोझ तले दबा दिया गया।
कंपनियों की चालाकी से महंगी हुई दवाएं
सरकार ने दवाओं पर जीएसटी स्लैब में कमी के बाद यह आश्वासन दिया था कि मरीजों को सस्ती दवाइयां मिलेंगी। लेकिन दवा कंपनियों ने इस अवसर को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया। यह कदम आम जनता के साथ धोखा है। जहां एक ओर इलाज का खर्च बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर इस तरह की चालाकियों ने मरीजों की जेब को और ढीला कर दिया है।
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कंपनियों द्वारा की गई बढ़ोतरी के कारण बढ़ी महंगाई
फार्मा कंपनियों की चालाकी से दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी ने न केवल मरीजों को मुश्किल में डाला, बल्कि आम आदमी के लिए इलाज का खर्च और अधिक बढ़ा दिया। सरकार ने जीएसटी स्लैब में कमी कर लोगों को सस्ता इलाज देने का वादा किया था, लेकिन कंपनियों की इस गलत चाल ने इस योजना को विफल कर दिया। इसके अलावा, इन कंपनियों द्वारा की गई मूल्य बढ़ोतरी ने फार्मा (Pharma) क्षेत्र की पारदर्शिता को भी प्रश्नचिह्नित कर दिया है। एक तरफ जहां सरकार की योजनाओं का उद्देश्य था कि दवाइयों के दाम घटाए जाएं, वहीं दूसरी ओर कंपनियों ने इसे उल्टा करके मरीजों को भारी नुकसान पहुंचाया।
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क्या सरकार दवा कंपनियों की धोखाधड़ी पर कार्रवाई करेगी?
अब यह सवाल उठता है कि सरकार इस धोखाधड़ी पर कैसे कार्रवाई करेगी। फार्मा सेक्टर के विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कोई दवा 1 सितंबर 2025 से पहले बनाई गई थी, तो उस पर मूल्य बढ़ोतरी का अधिकार नहीं लिया जा सकता। इसके बावजूद, कंपनियों ने यह बढ़ोतरी की है, और यह पूरी तरह से अवैध है। सरकार को चाहिए कि वह इस मुद्दे पर सख्त कार्रवाई करें और कंपनियों के खिलाफ जांच शुरू करे, ताकि मरीजों के साथ हो रहे इस धोखाधड़ी को रोका जा सके। इसके अलावा, मरीजों को सस्ती दवाइयां मिलें, इसके लिए सरकार को उचित कदम उठाने होंगे।
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