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Photograph: (the sootr)
Jaipur. बिना अनुमति और बिना लैंड कंवर्जन कराए चल रहे मैरिज गार्डन अब बंद होंगे। ऐसे मैरिज गार्डन को पहले लैंड कंवर्जन कराना होगा, वो भी मास्टर प्लान के नियमों के तहत। लैंड कंवर्जन कराए बिना अब जेडीए व दूसरे निकाय मैरिज लाइसेंस जारी नहीं कर सकेगा। साथ ही बिना अनुमति के चल रहे मैरिज गार्डनों पर गाज गिरेगी। ऐसे विवाह स्थलों को बंद कराया जाएगा।
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सबसे पहले जांच करो
राजस्थान हाई कोर्ट ने जयपुर मास्टर प्लान के विपरीत चल रहे मैरिज गार्डन और बिन लैंड कंवर्जन चल रहे विवाह स्थलों पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने जयपुर विकास प्राधिकरण को कहा कि वह पहले जांच करे कि मैरिज गार्डन मास्टर प्लान और कानूनी प्रावधानों के अनुसार चल रहे हैं या नहीं? साथ ही प्रावधानों की अवहेलना कर संचालित हो रहे मैरिज गार्डन पर कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं।
अधिकारियों की जवाबदेही तय होगी
हाई कोर्ट ने आदेश में सख्त लहजे से कहा है कि नियमों की अवहेलना करके संचालित मैरिज गार्डनों पर कार्रवाई में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाएगी।
जेडीसी पर भी कार्रवाई
चुनिंदा तरीके से कार्रवाई करने पर जोन अधिकारी के साथ ही जेडीसी पर भी कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। अदालत ने मामले में दायर याचिका को खारिज कर दिया है। जस्टिस समीर जैन की एकल पीठ ने यह आदेश जगदीश प्रसाद शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।
व्यावसायिक गतिविधियां चलाना गैरकानूनी
हाई कोर्ट ने आदेश में कहा कि जेडीए भले ही सिविल कोर्ट के रूप में नामित न हो, लेकिन वह न्यायिक काम करती है और उसे सिविल कोर्ट की शक्तियां प्राप्त हैं। इसलिए ऐसे मामलों में अनुच्छेद 227 के तहत हाई कोर्ट को सुपरवाइजरी क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
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227 के तहत होगी सुनवाई
जेडीए से जुड़े मामलों की सुनवाई अनुच्छेद 226 के तहत नहीं, बल्कि 227 के तहत की जाएगी। कृषि भूमि का भू-उपयोग रूपांतरण किए बिना व्यावसायिक गतिविधियां चलाना गैरकानूनी है। यदि किसी अन्य व्यक्ति ने बिना अनुमति ऐसे गार्डन संचालित कर रखे हैं, तो इस आधार पर दूसरा ऐसा नहीं कर सकता।
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याचिकाकर्ता की संपत्ति सील की थी जेडीए ने
जेडीए ने 12 मार्च 2025 को याचिकाकर्ता की संपत्ति सील करने की कार्रवाई की थी, जिसे याचिकाकर्ता ने जेडीए की मनमानी बताते हुए जेडीए अधिकरण के गत 15 जुलाई के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें अधिकरण ने संपत्ति की सील को बरकरार रखते हुए याचिकाकर्ता को भूमि रूपांतरण करने का आदेश दिया था।
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एएसजी ने किया विरोध
इसका विरोध करते हुए एएसजी भरत व्यास ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर की है, जबकि मामले में अनुच्छेद 227 के तहत ही याचिका दायर हो सकती है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए जेडीए को निर्देश दिए हैं। उसने जेडीए से कड़ी कार्रवाई करने के लिए कहा है।
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