हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी : आमजन को न्याय व्यवस्था में तभी विश्वास होगा, जब केवल सत्य जीतेगा

राजस्थान हाई कोर्ट ने पार्टी के फर्जी दस्तावेज पेश करने पर अधीनस्थ अदालत द्वारा जांच करवाने के फैसले को ठहराया सही। कोर्ट ने कहा कि आमजन को न्याय व्यवस्था में तभी विश्वास होगा, जब केवल और केवल सत्य की जीत होगी।

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Mukesh Sharma
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur. राजस्थान हाई कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि जब सत्य विफल होता है, तो न्याय भी विफल हो जाता है। लोगों का न्यायिक व्यवस्था में विश्वास तभी होगा, जब सत्य की ही जीत होगी। जस्टिस अनूप ढंड की अदालत ने यह टिप्पणी सुंदर सिंह व अन्य की याचिका को खारिज करते हुए की है।

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सत्य के सभी रास्ते तलाशें

अदालत ने आदेश में कहा कि अदालतों से सत्य की खोज में सक्रिय भूमिका निभाने की अपेक्षा की जाती है। सभी हितधारकों का यह कर्तव्य है कि वे इस खोज में सक्रिय भूमिका निभाएं और सत्य की खोज में अदालत की सहायता करें। अदालतों को भी सत्य की खोज के लिए सभी उपलब्ध रास्ते तलाशने चाहिए।

यह था पूरा मामला

दरअसल, डीग एडीजे-एक कोर्ट ने एक सिविल विवाद में याचिकाकर्ताओं की ओर से जाली डॉक्यूमेंट पेश करने पर जांच के आदेश दिए थे। इस आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट में अपील की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने पार्टी के फर्जी दस्तावेज पेश करने पर अधीनस्थ अदालत द्वारा जांच करवाने के फैसले को ठहराया सही। 

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डॉक्यूमेंट की जांच की जरूरत

हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि अदालत में किसी तथ्य पर विवाद हुआ है, तो उस विवादित तथ्य की जांच सही लेवल पर अवश्य होनी चाहिए। यदि अदालत का आदेश लेने के लिए रिकॉर्ड पर कोई फर्जी दस्तावेज पेश किया है, तो किसी भी केस लड़ने वाले को ऐसा करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। 

अदालत के साथ धोखाधड़ी

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह पता लगाने के लिए कि दस्तावेज नकली है या नहीं, जांच की जरूरत है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि झूठे दस्तावेज दायर करना एक गंभीर मामला है, जिसे अदालत के साथ धोखाधड़ी माना जा सकता है। इससे केस करने वालों को कानूनी नुकसान हो सकता है।

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सात साल में जांच पूरी नहीं हुई

एडवोकेट दिनेश कुमार गर्ग ने बताया कि इस मामले में याचिकाकर्ता और दूसरी पार्टी के बीच एक प्रॉपर्टी को लेकर साल 2000 में इकरारनामा हुआ था, लेकिन सामने वाली पार्टी ने इकरारनामे के आधार पर प्रॉपर्टी का विक्रय नहीं किया। इस पर याचिकाकर्ताओं ने स्पेसिफिक परफॉर्मेंस का दावा पेश किया। 

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इकरारनामे की जांच के आदेश

दावे की सुनवाई के दौरान किसी तीसरे पक्ष ने गवाही दी कि याचिकाकर्ता जिन दो व्यक्तियों के साथ इकरारनामा होना बता रहे हैं, उन दोनों व्यक्तियों की मौत काफी साल पहले हो चुकी है। इस पर एडीजे कोर्ट ने दावा खारिज करते हुए साल 2018 में इस इकरारनामे की जांच के आदेश दिए थे। 

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जांच में तेजी लाएं

वहीं हाई कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि सात साल से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद आज तक मामला फाइनल नहीं हुआ है। संबंधित अथॉरिटी से उम्मीद की जाती है कि वे जांच में तेजी लाएं और निचली कोर्ट द्वारा जारी किए गए निर्देशों का सख्ती से पालन करते हुए जांच की रिपोर्ट कोर्ट में करें।

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