राजस्थान हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, सरकार को 15 अप्रैल तक निकाय-पंचायत चुनाव करवाने के दिए आदेश

राजस्थान हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को 31 दिसंबर तक परिसीमन प्रक्रिया पूरी करने के दिए निर्देश। वहीं 15 अप्रैल तक निकाय-पंचायत चुनाव करवाने के कहा। बार-बार चुनाव की तारीख आगे बढ़ाने से नाराज था हाई कोर्ट।

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Rakesh Kumar Sharma
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Photograph: (the sootr)

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Jaipur. राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले से राजस्थान में निकाय और पंचायत चुनावों की तस्वीर साफ हो गई है। हाई कोर्ट ने राजस्थान सरकार को आदेश दिया है कि वह 15 अप्रैल तक निकाय और पंचायत के चुनाव सम्पन्न करवाए। साथ ही 31 दिसम्बर तक परिसीमन प्रक्रिया को पूरी कर ली जाए। 

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चुनाव के लिए बड़ा फैसला

हाई कोर्ट का निकाय और पंचायत चुनाव के लिए बड़ा फैसला माना जा रहा है। इससे राजस्थान में करीब 6,759 पंचायतों और 55 नगरपालिकाओं में चुनाव हो सकेंगे। हाई कोर्ट ने आदेश में कहा है कि सरकार पंचायत और निकाय चुनाव एक साथ करवाए। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एसपी शर्मा की खंडपीठ ने गिरिराज सिंह देवंदा और पूर्व विधायक संयम लोढ़ा की जनहित याचिका सहित अन्य याचिकाओं पर फैसला सुनाया।

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फैसला सुरक्षित रखा था

हाई कोर्ट ने पंचायतों के पुनर्गठन और परिसीमन से जुड़ी करीब 450 याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करते हुए 12 अगस्त, 2025 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब तीन महीने बाद फैसला सुनाया है। याचिकाओं में बताया गया है कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के खिलाफ पांच साल में चुनाव नहीं करवा रही है। सरकार ने अवैध और मनमाने तरीके से पंचायत व निकाय चुनाव को स्थगित किया है।

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एक दिन भी स्थगित नहीं रख सकते

हाई कोर्ट में याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता प्रेमचंद देवंदा ने बहस करते हुए कहा था कि राज्य सरकार ने 16 जनवरी, 2025 को अधिसूचना जारी करके इन पंचायतों के चुनावों को स्थगित कर दिया। जो संविधान के अनुच्छेद 243 ई, 243 के और राजस्थान पंचायत राज अधिनियम 1994 की धारा 17 का उल्लंघन है। सरकार ने प्रजातंत्र की सबसे छोटी इकाई और ग्रामीण संस्थाओं को अस्थिर करते हुए चुनाव पर रोक लगाई है। वहीं निजी व्यक्ति को नियमानुसार पंचायतों में प्रशासक नहीं लगाया जा सकता है।

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मनमानी कर लगाए प्रशासक

पूर्व विधायक संयम लोढ़ा की याचिका पर बहस करते हुए उनके अधिवक्ता पुनीत सिंघवी ने कहा कि राज्य सरकार ने बिना अधिकार ही प्रशासक लगा दिए हैं। सरकार ने इस तरह से मनमाना रवैया अपनाकर संवैधानिक प्रावधानों का खुला उल्लंघन किया है। सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि प्राकृतिक आपदाओं के अलावा स्थानीय निकायों के चुनाव नहीं टाले जा सकते हैं। यहां सरकार अपने संवैधानिक कर्तव्य को पूरा करने में विफल हो गई है।

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तीन बिंदुओं पर मांगा जवाब

हाई कोर्ट ने इस मामले में सरकार से जवाब मांगा। इस पर राज्य सरकार ने अपने जवाब में कहा था कि प्रदेश में वन स्टेट वन इलेक्शन की अवधारणा का परीक्षण प्रस्तावित है। इसके लिए उच्च स्तरीय समिति का भी गठन किया जाना है। समिति द्वारा धन, श्रम और समय की बचत के साथ ही नगरीय निकाय और पंचायती राज संस्थाओं के सशक्तीकरण के लिए वन स्टेट वन इलेक्शन की अवधारणा का परीक्षण प्रस्तावित है।

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परिसीमन का काम अधूरा

राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में जवाब में कहा कि पिछली सरकार ने कई नए जिले बना दिए थे। इनमें से हमने 9 जिलों को समाप्त कर दिया है। ऐसे में जिलों की सीमाओं के निर्धारण के साथ ही प्रदेश में पंचायतों के पुनर्गठन और नगर निकायों के परिसीमन का काम चल रहा है, इसलिए सरकार ने इन पंचायतों के चुनाव स्थगित किए हैं। परिसीमन प्रक्रिया पूरी होते ही चुनाव करवा लिए जाएं।

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सरकार को प्रशासक लगाने का अधिकार

हाई कोर्ट में सरकार ने जवाब में कहा कि जिन पंचायतों के चुनाव स्थगित किए गए हैं, उनमें सरकार को प्रशासक लगाने का अधिकार है। हमने राजस्थान पंचायत राज अधिनियम 1994 की धारा 95 के तहत प्रशासक लगाए हैं। अधिनियम हमें प्रशासक लगाने का अधिकार देता है, लेकिन अधिनियम में कहीं भी यह नहीं बताया गया है कि किसे प्रशासक लगाया जाए और किसे नहीं।

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यूडीएच मंत्री का बयान, मई में चुनाव संभव

यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने मीडिया में बयान दिया है कि वन स्टेट वन इलेक्शन के तहत मई में निकाय और पंचायत चुनाव करवाए जा सकेंगे। खर्रा ने बयान दिया कि चुनाव संबंधित पूरी तैयारी है, लेकिन निर्वाचन आयोग के एसआईआर कार्यक्रम के चलते अभी चुनाव करवाना संभव नहीं है। मई में ही चुनाव करवाए जा सकते हैं।

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चुनाव को लेकर कांग्रेस हमलावर

पंचायत और निकाय चुनाव नहीं होने को लेकर कांग्रेस लगातार हमलावर हो रही है। कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत अन्य नेता भाजपा सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि सरकार संविधान के विपरीत कार्य कर रही है। बार-बार चुनाव तारीखों की घोषणा सरकार कर रही है, लेकिन हार के डर से चुनाव करवाने से डर रही है।

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