भ्रष्टाचार से घिरे अफसर को हाई कोर्ट से मिली राहत, सरकार का सुप्रीम कोर्ट जाने से इनकार

राजस्थान सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों में हाई कोर्ट से राहत पाने वाले अफसर राकेश मीणा के मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने से किया इनकार। सरकार की नीयत पर उठे सवाल।

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Amit Baijnath Garg
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Photograph: (the sootr)

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लगता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ राजस्थान सरकार का जीरो टॉलरेंस का नारा फुस्स हो गया है। सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों में हाई कोर्ट से राहत पाने वाले गृह विभाग के  सेक्शन अधिकारी के मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील करने से इनकार कर दिया है।

हाई कोर्ट ने मार्च, 2025 में राकेश कुमार मीणा के खिलाफ एसीबी में दर्ज एफआईआर, अभियोजन स्वीकृति और टेलीफोन टैपिंग की अनुमति को रद्ध करते हुए एसीबी कोर्ट में चल रहे मुकदमे को भी निरस्त कर दिया था।  

एसीबी ने इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए मामला राज्य सरकार को भेजा था। विधि विभाग ने 18 जुलाई को एसीबी के डीजी को पत्र भेजकर सूचित किया है कि मामले में सक्षम स्तर पर हाईकोर्ट के सात मार्च, 2025 के आदेश के खिलाफ एसएलपी नहीं करने का फैसला लिया गया है।

पक्ष में टिप्पणी के लिए मांगता था रिश्वत

गृह विभाग के ग्रुप-11 में सेक्शन अधिकारी राकेश कुमार मीणा के खिलाफ 2019 में तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह राजीव स्वरूप ने डीजी एसीबी को लिखित में शिकायत की थी। शिकायत में बताया ​था कि विभिन्न आरोपों में दोषी पाए जाने पर पुलिसकर्मियों को नियमों के तहत सजा दी जाती है। इसके खिलाफ यह पुलिसकर्मी राज्यपाल के समक्ष पुर्नविचार याचिका दायर करते हैं। इन याचिकाओं पर राज्यपाल सचिवालय गृह विभाग से टिप्पणी मांगता है। राकेश कुमार मीणा पर दोषी पुलिसकर्मियों के पक्ष में टिप्पणी देने के लिए खुद और अधिकारियों के नाम पर रिश्वत, शराब व अन्य सामान मांगने के आरोप थे। 

एसीएस के एक्शन को हाईकोर्ट में दी चुनौती

राजीव स्वरूप ने एसीबी के मांगने पर राकेश कुमार मीणा के मोबाइल फोन टैपिंग की अनुमति भी दे दी थी। इस मामले में एफआईआर दर्ज हुई और उसे गिरफ्तार किया गया। चार्जशीट और ​अभियोजन स्वीकृति के बाद एसीबी कोर्ट में सेक्शन अधिकारी पर आरोप भी तय हो गए थे। राकेश कुमार मीणा ने एफआईआर व अभियोजन स्वीकृति को हाई कोर्ट में चुनौती देकर रद्द करने की गुहार की। 

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हाई कोर्ट ने दी राहत

हाई कोर्ट ने माना कि शिकायत करने वाले एसीएस गृह राजीव स्वरूप थे। उन्होंने ही बाद में मुख्य सचिव के तौर पर अभियोजन स्वीकृति भी दी थी, जबकि कोई भी व्यक्ति अपने ही मामले में जज नहीं हो सकता। राज्यपाल सचिवालय को भेजी जाने वाली टिप्पणियों पर संयुक्त सचिव सीमा सिंह के दस्तखत होते थे। यह बात राजीव स्वरूप ने अपनी शिकायत में भी लिखी थी। 

इस काम में राकेश कुमार मीणा सिर्फ संयुक्त सचिव सीमा सिंह की सहायता करता था। इसके बावजूद एसीबी के सीमा सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं करने सहित अन्य आधार पर राकेश कुमार मीणा के खिलाफ दर्ज एफआईआर और अभियोजन स्वीकृति को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने मीणा के मोबाइल फोन टैपिंग की अनुमति को गैर-कानूनी बताते हुए टेप की गई बातचीत और मैसेज आदि को नष्ट करने के आदेश दिए थे। 

एसीबी ने पूरे मामले की विस्तृत रिपोर्ट बनाकर सरकार से हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करने की अनुमति मांगी थी, लेकिन सरकार ने सक्षम स्तर की अनुमति के बाद मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने से इनकार कर दिया है। अब सवाल यह है कि क्या न्यायिक निर्णय हो पाएगा?

FAQ

1. राजस्थान सरकार ने भ्रष्टाचार के मामले में क्यों सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं की?
राज्य सरकार ने राकेश कुमार मीणा के खिलाफ हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने से इनकार कर दिया है। इसके बाद यह सवाल उठता है कि क्या सरकार का भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ का नारा असफल हो गया है।
2. राकेश कुमार मीणा पर कौन से आरोप थे?
राकेश कुमार मीणा पर आरोप था कि उन्होंने पुलिसकर्मियों के खिलाफ पक्ष में टिप्पणी करने के लिए रिश्वत, शराब और अन्य सामान मांगे थे। यह शिकायत राज्यपाल सचिवालय को भेजी गई थी।
3. हाई कोर्ट ने इस मामले में क्या फैसला दिया?
हाई कोर्ट ने राकेश कुमार मीणा के खिलाफ दर्ज एफआईआर और अभियोजन स्वीकृति को रद्द कर दिया। साथ ही, मीणा के मोबाइल फोन की टैपिंग को भी गैर-कानूनी घोषित किया और टैप की गई बातचीत को नष्ट करने का आदेश दिया।

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