सरिस्का टाइगर रिजर्व : 13 शावक तलाशेंगे अपना नया इलाका, एक की टेरिटरी 40 किमी की, रिजर्व पड़ेगा छोटा

राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व में 21 शावक हैं, जिसमें 13 शावक इस साल के अंत या नई साल की शुरुआत में अपनी मां से अलग होकर अपना एरिया तलाशेंगे। इनके लिए सरिस्का भी छोटा पड़ सकता है, क्योंकि टेरिटरी करीब 40 किमी की होती है।

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Amit Baijnath Garg
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Photograph: (the sootr)

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Alwar. राजस्थान के अलवर जिले में स्थित सरिस्का टाइगर रिजर्व में जवान होते 13 शावक अपनी टेरिटरी बनाने के लिए निकलेंगे। सरिस्का में टाइगर के 21 शावक हैं, जिसमें 13 शावक इस साल के अंत या नई साल की शुरुआत में अपनी मां से अलग होकर अपना एरिया तलाशेंगे। इनके लिए सरिस्का भी छोटा पड़े, क्योंकि एक टाइगर की टेरिटरी करीब 40 से 50 किमी होती है। 

सरिस्का में इस वक्त 50 टाइगर हैं, जिसमें 11 मेल हैं, 18 फीमेल हैं और 21 शावक हैं। सरिस्का में बसे गांव को भी शिफ्ट किया जाना है, लेकिन राजनीतिक दखलअंदाजी और मुआवजे के कारण सरिस्का जंगल में बसे गांव का विस्थापन आशा के अनुरूप नहीं हो पा रहा है, क्योंकि वर्ष 2008 से ही विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है। 

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अपने स्वतंत्र घर में रहेंगे

सरिस्का में 13 शावक जवानी की दहलीज को पार कर अपने स्वतंत्र घर में रहेंगे। जब यह शावक अपना स्वतंत्र घर बनाएंगे, तो सरिस्का प्रशासन द्वारा इनका विधिवत नामकरण भी किया जाएगा। अभी हाल में ही अलवर शहर के समीप बाला किला एरिया में बाघिन ने दो शावकों को जन्म दिया था। बाघ विशेषज्ञों के अनुसार, करीब 2 साल के शावक होने पर यह अलग होकर अपनी नई टेरिटरी बनाते हैं।

कई बार संघर्ष की स्थिति

बाघिन एसटी 12 ने 13 मार्च, 2024 को ताल वृक्ष रेंज में चार शावकों को जन्म दिया था। इसी तरह एसटी 27 ने 29 मई, 2024 को टहला रेंज में दो शावकों को जन्म दिया था। अकबरपुर रेंज में 11 जून, 2024 को एसटी 17 ने 3 शावकों को जन्म दिया था। यह सभी शावक जवान हो गए हैं। 

टेरिटरी बनाने के चलते कई बार बाघों में संघर्ष की स्थिति भी पैदा हो जाती है। वर्ष 2004-05 में सरिस्का बाघ विहीन हो गया था। 2008 में यहां बाघों का पुनर्वास रणथंभौर से किया गया। 17 साल में यहां बाघों की संख्या 50 पहुंच गई। वर्ष 2012-16 के बीच ऐसी स्थिति भी आई जब सरिस्का से कोई खुशखबरी सामने नहीं आई।

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विस्थापन प्रक्रिया में आखिर देरी क्यों?

सरिस्का सीटीएच में 29 गांव हैं, जिनमें 11 गांव को पहले चरण में विस्थापित करने के लिए वर्ष 2008 से 2011 के मध्य सर्वे कराया गया था। इनमें से उमरी पानी ढाल, रोटक्याला, भगानी और डाबली विस्थापित हो चुके हैं। हरिपुरा, क्रॉसका, काकवाड़ी, सुकोला और देवरी का विस्थापन अटका हुआ है। सरकार ने पहले मुआवजे के रूप में जमीन और चार लाख रुपए नगद दिए थे। इसमें 21 साल के व्यक्ति को एक यूनिट मानकर मुआवजा दिया गया था। 

राजनीतिक दखलअंदाजी जारी

अब रोक लगी हुई है, क्योंकि मुआवजे में जमीन नहीं दी जा रही है। सिर्फ 15 लाख रुपए नगद देने का निर्णय लिया गया है, जिसे लेकर ग्रामीण विस्थापन प्रक्रिया से दूर जा रहे हैं। ग्रामीणों का मानना है कि जैसे प्रथम चरण में मुआवजा दिया गया था, उसी तरह से मुआवजा दिया जाए। वर्ष 2022 में पहले चरण में दिए गए मुआवजे पर रोक लगा दी गई थी। मुआवजे के कारण विस्थापन प्रक्रिया अटकी हुई है। वर्ष 2013 से 2018 के बीच में भाजपा सरकार के दौरान विस्थापन प्रक्रिया न के बराबर हुई थी, क्योंकि राजनीतिक दखलअंदाजी हुई थी।

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महंगी जमीन के कारण हटा ऑप्शन

वर्ष 2008 में जब विस्थापन प्रक्रिया को लाया गया था, उस दौरान जमीनों के भाव ज्यादा नहीं थे। सरकार के पास जमीन भी थी। बहरोड़ का रूंध एरिया था, जहां सरिस्का से विस्थापित परिवारों को बसाया जा सकता था। अब जिले के गांवों के विस्तार के चलते जमीन छोटी पड़ने लगी।

अचानक प्रॉपर्टी में बूम आया और भाव करोड़ों में पहुंच गए। ऐसे में सरकार ने जमीन के ऑप्शन को हटा दिया और नगद मुआवजा देने का ऐलान किया। पूर्व में दिए गए जमीन मुआवजे की बात मानें तो 6 बीघा जमीन ही आज कई करोड़ रुपए की है। अब ग्रामीणों की शर्त यह है कि जमीन देने पर ही हम विस्थापित होंगे।

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विस्थापन नहीं, रोजगार मिले

हालांकि राजस्थान सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्री संजय शर्मा गांव के विस्थापन के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने वन मंत्री बनने के बाद कहा था कि सरिस्का राजस्थान का सबसे बड़ा बाघ अभ्यारण है और बड़ा वन क्षेत्र है। ऐसे में वह सरिस्का के आसपास रहने वाले या अंदर रहने वाले ग्रामीणों के विस्थापन के पक्ष में नहीं हैं।

जिस तरीके से गुजरात में वन्य जीव अभयारण्य के आसपास रहने वाले लोगों को वहीं रोजगार मिल रहा है, उसी तरह राजस्थान में भी ऐसे गांवों में पेइंग गेस्ट के आधार पर काम करने का मौका ग्रामीणों को मिलना चाहिए। इससे पर्यटक आएंगे, उन्हें सुविधा मिलेगी और ग्रामीणों को रोजगार। 

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नीति बनाने पर जोर

उन्होंने कहा था कि मेरी सोच यह है कि जंगल से ग्रामीणों का विस्थापन नहीं हो और वहीं उनके रोजगार के साधन उपलब्ध हों। इससे उनके सामने आजीविका का संकट पैदा नहीं होगा, क्योंकि ग्रामीण जंगल की भी रक्षा करेंगे और वन्यजीवों की भी रक्षा करेंगे। ग्रामीणों का वन्यजीवों से पुराना नाता है। इस संबंध में वह मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से बात करेंगे और एक नीति बनाएंगे, जिससे ग्रामीण हित सुरक्षित रह सकें।

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