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Photograph: (the sootr)
Jaipur. राजस्थान के जयपुर जिले के चाकसू स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा की जिम्मेदारी और व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। यहां के प्रधानाध्यापक ने बच्चों से झूठे बर्तन धुलवाने के मामले को न केवल स्वीकार किया, बल्कि इसे एक सामान्य कार्य बता दिया। यह घटना बाल श्रम के कानूनों का उल्लंघन होने के साथ-साथ शिक्षा के संस्थान के लिए एक शर्मनाक घटना बन गई है।
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प्रधानाध्यापक का गैर-जिम्मेदाराना तर्क
प्रधानाध्यापक अनवर अली से सवाल पूछने पर उनका जवाब चौंकाने वाला था। उन्होंने कहा कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी महिला की तबीयत खराब थी और वह दो दिनों से स्कूल नहीं आई थी। बच्चे केवल पाइप से पानी डाल रहे थे, बर्तन नहीं धो रहे थे।
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कोई तो करेगा न काम सर
जब उनसे यह पूछा गया कि क्या बच्चों को पढ़ाई के लिए भेजा गया है या बर्तन धोने के लिए, तो उन्होंने जवाब दिया कि कोई तो करेगा न काम सर। हम भी पानी डालते रहते हैं पाइप से। लंच पीरियड में होता है, काम पूरे दिन में नहीं होता है।
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शिक्षा के मंदिर में मजदूरी का शर्मनाक दृश्य
यह घटना तब सामने आई, जब वायरल वीडियो में दिखाया गया कि बच्चों के हाथों में झूठे बर्तन हैं, जो मिड-डे मील के बाद के थे। यह दृश्य न केवल शर्मनाक था, बल्कि यह सरकारी शिक्षा योजनाओं की विफलता को भी उजागर करता है।
जिस संस्थान को ज्ञान का मंदिर माना जाता है, वहां बच्चों को शिक्षा लेने के बजाय श्रम करने पर मजबूर किया गया। इस घटना ने सरकारी दावों की सच्चाई को उजागर किया और बाल श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन किया गया।
सरकार की भूमिका पर सवाल
राजस्थान सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों को आदर्श विद्यालय मानकर उन्हें सरकारी प्रचार का हिस्सा बनाया जाता है, लेकिन जब उन विद्यालयों में बाल श्रम जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, तो यह सवाल उठता है कि राज्य सरकार और शिक्षा विभाग अपनी योजनाओं को कितना प्रभावी तरीके से लागू कर पा रहे हैं। क्या यह राज्य सरकार के दावों की वास्तविकता को छुपाने की कोशिश है? क्या यहां शिक्षा का उद्देश्य केवल पुस्तकों तक सीमित रहकर श्रमिकों को तैयार करना है?
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शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठ रहे
इस घटना ने राजस्थान की शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त कमी और भ्रष्टाचार को सामने ला दिया है। अगर विद्यालयों में शिक्षा के बजाय मजदूरी कराई जाती है, तो यह बच्चों के भविष्य के साथ एक गंभीर खिलवाड़ है। यह घटना सरकारी शिक्षा व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता को और भी मजबूत बनाती है। शिक्षकों और शिक्षा अधिकारियों के लिए यह गंभीर चेतावनी है कि उन्हें बच्चों के अधिकारों और उनकी शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए।
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जवाबदेह ठहराना जरूरी
इस पूरे मामले में मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री को इस घटना पर जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। जब तक सरकारी स्कूलों में शिक्षा के उद्देश्य के बजाय श्रम के कार्यों में बच्चों को लगाया जाएगा, तब तक बाल श्रम का प्रचलन बढ़ेगा और शिक्षा व्यवस्था में सुधार की कोई उम्मीद नहीं होगी।
मुख्य निर्णय और पहलू
- झूठे बर्तन धोने की घटना बाल श्रम कानून का उल्लंघन है।
- प्रधानाध्यापक का गैर-जिम्मेदाराना बयान शिक्षा व्यवस्था के संकट को दर्शाता है।
- बाल श्रम की यह घटना सरकार की नीतियों की विफलता को बयां करती है।
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