सिंघाड़े की खेती पर मछलियां पड़ रहीं भारी, अलवर की सिलीसेढ़ झील का है मामला

राजस्थान के अलवर की सिलीसेढ़ झील में सिंघाड़े की खेती के दौरान मछलियों की खास प्रजाति ने किसानों के लिए संकट उत्पन्न कर दिया है। ठेकेदार पर आरोप है कि उसने जानबूझकर मछलियों की ऐसी प्रजातियां डालीं हैं, जो सिंघाड़े की फसल को बर्बाद कर रही हैं।

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Gyan Chand Patni
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सुनील जैन @अलवर

Alwar. अलवर में सिलीसेढ़ झील में होने वाली सिंघाड़े की खेती इस बार किसानों के लिए नुकसानदायक साबित हो रही है। इसका सबसे बड़ा कारण यहां की मछली की वह खास प्रजाति है, जो इस बार किसानों की सिंघाड़े की फसल को बर्बाद कर रही है। सिंघाड़ा उत्पादकों का आरोप है कि ठेकेदार ने जानबूझकर यहां मछलियों की ऐसी दो प्रजातियों को छोड़ रखा है, जो सिंघाड़े की फसल को नुकसान पहुंचा रही हैं।

सिलीसेढ़ में सिंघाड़े की खेती 

राजस्थान के अलवर से 15 किलोमीटर दूर सिलीसेढ़ में इन दिनों करीब 30 से 40 परिवार सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं। सिंघाड़े की खेती को 6 महीने लगते हैं। सर्दी की दस्तक के साथ ही इसमें सिंघाड़े की फसल बाजार में आना शुरू हो जाती है, लेकिन इस बार इस फसल से जुड़े हुए पुश्तैनी परिवार परेशान हो रहे हैं। 

मछलियों से फसल को नुकसान, ठेकेदार पर लगाया आरोप 

किसानों ने बताया कि इस बार ठेकेदार नेअलवर की सिलीसेढ़ झील पर मछली की ऐसी दो प्रजातियां पाली हैं जो कि सिंघाड़े की फसल को बर्बाद कर रही हैं।  ये  बाजार में भी महंगे दामों पर नहीं बिकतीं।

किसानों का आरोप है कि ठेकेदार ने सिंघाड़े की फसल को बर्बाद करने के लिए ही मछली की खास प्रजाति को यहां डाला है। सिंघाड़ा उत्पादक बाबूलाल ने बताया कि पिछली बार यहां सिंघाड़ा बोने नहीं आए थे। इस बार सिंघाड़े की फसल के लिए आए हैं।

 ठेकेदार ने जानबूझकर खास प्रजाति की मछली पाल रखी है। इस वक्त लागत भी नहीं निकल रही है, जिससे किसानों को बड़ी परेशानी हो रही है। उन्होंने कहा कि जो सिंघाड़े आ रहे हैं वह अलवर के मंडी के अलावा जयपुर सीकर के मंडी तक भी पहुंच रहे हैं।

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सिंघाड़े की खेती पर आता है भारी खर्च 

जिस तरीके से प्याज की फसल बोई जाती है उसी तरीके से सिंघाड़े की फसल बोई जाती है। दवा का छिड़काव किया जाता है। करीब 1600 रुपए क्विंटल इसकी पौध आती है। एक बीघा पर करीब ₹200000 का इसका खर्चा आता है। अब पूरी लागत भी नहीं निकल पा रही है।

सिंघाड़े की फसल गहरे पानी में नहीं बोई जाती। करीब 5 से 7 फुट गहरे पानी में फसल बोई जाती है। इसमें मेहनत भी पूरी लगती है लेकिन इस बार फायदे का सौदा नहीं है। उन्होंने बताया कि वह सिंघाड़े की फसल बोने के साथ-साथ सिंघाड़े की पौध भी सप्लाई करते हैं। इससे थोड़ा काम चल जाता है।

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जान पर खेल कर करते हैं सिंघाड़े की खेती

अलवर में सिंघाड़े की खेती करने वाले किसानों को न केवल मछलियों से नुकसान हो रहा है, बल्कि यहां के खतरे और भी ज्यादा हैं।  सिलीसेढ़ झील में मगरमच्छ भी पाए जाते हैं और किसान अपनी जान जोखिम में डालकर इस खेती को करते हैं। इसके बावजूद, सिंघाड़े की फसल को बाजार तक पहुंचाने में कठिनाई आ रही है और पूरी लागत भी नहीं निकल पा रही है।

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