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Photograph: (the sootr)
राजस्थान में गिद्धों के संरक्षण के लिए एक अनूठी पहल की शुरुआत हुई है। भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और बयाना की पहाड़ियों को गिद्धों के सुरक्षित आशियाने (Safe Habitat) के रूप में विकसित करने के लिए वन विभाग (Forest Department) और वर्ल्ड वाइड फंड (WWF) ने मिलकर पांच साल का विशेष संरक्षण अभियान शुरू किया है। इस पहल का उद्देश्य गिद्धों की घटती संख्या को बचाना, पर्यावरण (Environment), जैव विविधता (Biodiversity) और स्वास्थ्य (Health) के लिए संतुलन बनाए रखना है।
गिद्धों का महत्व : प्रकृति का सफाईकर्मी
गिद्धों को प्रकृति का सफाईकर्मी (Nature's Scavenger) कहा जाता है। ये मृत पशुओं के शवों को खाकर सड़न, संक्रमण और बीमारी फैलने से रोकते हैं। यदि गिद्धों की संख्या घटती रही, तो खुले में पड़े पशु शव संक्रामक रोगों का कारण बन सकते हैं। इस प्रकार गिद्धों का संरक्षण न केवल पर्यावरण, बल्कि मानव स्वास्थ्य की रक्षा से भी जुड़ा हुआ है।
केवलादेव और बयाना : आदर्श गिद्ध आवास
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और बयाना की पहाड़ियों को गिद्धों के लिए आदर्श स्थान माना जाता है। यहां हिमालयन गिद्ध (Himalayan Vulture), इंडियन गिद्ध (Indian Vulture) और इजिप्शियन गिद्ध (Egyptian Vulture) की तीन प्रमुख प्रजातियां नियमित रूप से देखी जाती हैं। इन क्षेत्रों की ऊंचाई, शांत वातावरण, पशुपालन की परंपरा और खुले मैदान गिद्धों के लिए भोजन और सुरक्षित आवास प्रदान करते हैं।
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संरक्षण अभियान का पहला चरण
गिद्ध संरक्षण अभियान के पहले चरण में वन विभाग और WWF की टीम बयाना क्षेत्र में गिद्धों की नेस्टिंग साइट्स, उड़ान क्षेत्र और उनकी संख्या का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करेंगी। इन आंकड़ों के आधार पर संरक्षण की रणनीति तय की जाएगी। मॉनिटरिंग की प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जाएगा, ताकि गिद्धों की गतिविधियों और आवास की स्थिति पर निरंतर नजर रखी जा सके।
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मॉनिटरिंग सेंटर : ज्ञान का केंद्र
इस अभियान के तहत केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में एक आधुनिक मॉनिटरिंग सेंटर स्थापित किया जाएगा, जहां प्रशिक्षित कर्मी गिद्धों के स्वास्थ्य, गतिविधियों और आवास की लगातार निगरानी करेंगे। यह केंद्र भविष्य में गिद्ध संरक्षण से जुड़ी जानकारी साझा करने का मुख्य आधार बनेगा और भरतपुर सहित पूरे प्रदेश में संरक्षण प्रयासों को गति देगा।
जनभागीदारी की आवश्यकता
किसी भी संरक्षण अभियान की सफलता के लिए जरूरी है कि स्थानीय लोग इसे अपनाएं। इस उद्देश्य से अभियान का दूसरा चरण ग्रामीणों, पशुपालकों और युवाओं को जागरूक करने पर केंद्रित होगा। स्कूलों में पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम, ग्राम सभाओं में कार्यशालाएं, जन-जागरुकता शिविर और पोस्टर अभियानों के जरिए लोगों को गिद्धों के महत्व के बारे में बताया जाएगा।
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गिद्धों की घटती संख्या के कारण
गिद्धों की घटती संख्या के कई कारण हैं। मवेशियों को दी जाने वाली दर्द निवारक दवाएं उनके लिए घातक साबित हो रही हैं, क्योंकि शव का मांस खाने से गिद्धों की मौत हो रही है। इसके अलावा, शहरीकरण, खनन और पेड़ों की कटाई से उनकी नेस्टिंग साइट्स कम हो गई हैं। खुले में शव छोड़ने की परंपरा घटने से भोजन की कमी हो गई है। इन सभी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए अभियान में विशेष रणनीतियां अपनाई जाएंगी।
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संरक्षण के बाद स्थायी योजना
यह परियोजना पांच वर्षों तक चलेगी। इसके बाद इसे वन विभाग द्वारा स्थायी रूप से संभाला जाएगा। इस अभियान से न केवल भरतपुर, बल्कि आसपास के जिलों में भी गिद्धों की संख्या बढ़ाने और पर्यावरण संतुलन को मजबूत करने की दिशा में काम किया जाएगा। यह प्रयास गिद्धों की सुरक्षा और जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए एक प्रेरणादायक कदम होगा।
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न्यू अपडेट्स और महत्वपूर्ण कदम
जनभागीदारी बढ़ाना : आगे चलकर स्थानीय ग्रामीणों और अन्य समुदायों को इस अभियान से जोड़ने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
स्मार्ट मॉनिटरिंग सिस्टम : मॉनिटरिंग सेंटर और स्मार्ट ट्रैकिंग सिस्टम से गिद्धों की गतिविधियों पर सतत नजर रखी जाएगी।
वृद्धि की दिशा में कदम : इस पहल से गिद्धों की संख्या में वृद्धि की उम्मीद जताई जा रही है, जो जैव विविधता के संरक्षण में अहम साबित होगा।